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उत्तर प्रदेश

श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और विशेष सचिव की गिरफ्तारी की सजा पर रोक

लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने एक आदेश में इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल दो के द्वारा श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और विशेष सचिव को एक माह की सजा दिए जाने संबंधी आदेश पर रोक लगा दी है। इस मामले में सम्बंधित समस्त रिकॉर्ड तलब करते हुए अगली सुनवाई 15 दिसम्बर को नियत की है। न्यायमूर्ति डॉ देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अदालत ने प्रमुख सचिव श्रम राजेंद्र कुमार तिवारी एवं विशेष सचिव श्रम परसुराम प्रसाद को सुनाई गई सजा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज यह आदेश दिए। प्रमुख सचिव और विशेष सचिव की ओर से राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता संजय भसीन ने बहस की।

<p>लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने एक आदेश में इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल दो के द्वारा श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और विशेष सचिव को एक माह की सजा दिए जाने संबंधी आदेश पर रोक लगा दी है। इस मामले में सम्बंधित समस्त रिकॉर्ड तलब करते हुए अगली सुनवाई 15 दिसम्बर को नियत की है। न्यायमूर्ति डॉ देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अदालत ने प्रमुख सचिव श्रम राजेंद्र कुमार तिवारी एवं विशेष सचिव श्रम परसुराम प्रसाद को सुनाई गई सजा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज यह आदेश दिए। प्रमुख सचिव और विशेष सचिव की ओर से राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता संजय भसीन ने बहस की।</p>

लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने एक आदेश में इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल दो के द्वारा श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और विशेष सचिव को एक माह की सजा दिए जाने संबंधी आदेश पर रोक लगा दी है। इस मामले में सम्बंधित समस्त रिकॉर्ड तलब करते हुए अगली सुनवाई 15 दिसम्बर को नियत की है। न्यायमूर्ति डॉ देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अदालत ने प्रमुख सचिव श्रम राजेंद्र कुमार तिवारी एवं विशेष सचिव श्रम परसुराम प्रसाद को सुनाई गई सजा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज यह आदेश दिए। प्रमुख सचिव और विशेष सचिव की ओर से राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता संजय भसीन ने बहस की।

ज्ञात हो कि इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल लखनऊ ने शुक्रवार को श्रम विभाग के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी और विशेष सचिव परशुराम प्रसाद को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए एक माह के कारावास की सजा सुनाई. इस संबंध में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ ने दोनों अधिकारियों को 2 दिसंबर से पूर्व गिरफ्तार करके अदालत में पेश करने के आदेश एसएसपी लखनऊ को जारी कर दिए हैं.  दरअसल हाईकोर्ट के निर्देश पर एक केस की सुनवाई इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल, लखनऊ में हो रही थी, जिसकी अंतिम सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था, लेकिन अंतिम सुनवाई के 1 हफ्ते बाद दोनों अधिकारियों ने केस को कानपुर बेंच में ट्रांसफर कर दिया, जबकि श्रम विभाग के मुख्य सचिव को ऐसा करने की कानूनी शक्ति नहीं है, ये काम सिर्फ लेबर कमिश्नर कानपुर ही कर सकते हैं।

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इसीलिए इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल, लखनऊ ने दोनों अधिकारियों को अवमानना का नोटिस जारी किया, लेकिन दोनों अधिकारी ने तय वक्त पर अदालत में पेश होना तो दूर की बात है, उल्टे केस के प्रेसाइडिंग ऑफिसर जस्टिस एस जेड सिद्दीकी को इलाहाबाद ट्रांसफर करने का आदेश कर दिया। जबकि कानून की किताबों में किसी प्रेसाइडिंग अफसर के तबादले का प्रावधान नहीं है। इसके बाद ट्रिब्यूनल ने दोनों अधिकारियों को अवमानना का दोषी ठहराते हुए एक महीने कैद की सजा सुनाई है। यहां ये जानना भी जरूरी है कि इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल्स की स्थापना साल 1957 में हुई थी, और तब से लेकर अबतक, ये पहला मामला है जिसमें इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल ने अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए किसी को सजा सुनाई। अब इन दोनों अफसरों ने राहत पाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद उन्हें फौरी तौर पर राहत मिल गई है।

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0 Comments

  1. san

    November 30, 2016 at 7:45 pm

    samoochey desh me Labour office ka bura haal hai, khas kar UP ka to bhagwan hi malik hai. Lucknow ko hi le-len. Yahan ke DLC sab ko na to supreme court ka darr hai aur na hi bhagwan ka. Majithia wageboard ke mamle me inhone to hadd hi kar di.. Rupaya khakar Fake reporting ker inhoney LC, Kanpur ko report bheji aur wahi report S.C. me attach hua… Ye log bhool jatey hain ki inka appointment hi workers ke liye hua hai. Lekin chand Rupayon ke laalach me apna zameer tak bech diya hai inhoney…

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