श्रीनगर( गढ़वाल, उत्तराखण्ड)। शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रीकोट में राज्य सरकार द्वारा एक मेडिकल कॉलेज खोला गया है जिसे वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान का बड़ा सा नाम भी दिया गया है। लेकिन लोगों के बेहतर इलाज के लिए खोला गया यह मेडिकल कॉलेज लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। घटना जुलाई महीने की ही है, हाथ पर लगी चोट के लिए इस मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में भर्ती हुए सुरेश को श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के करामाती डॉक्टरों ने हाथ की चोट के दर्द से नहीं बल्कि दुनिया से ही मुक्त कर दिया। यह अनोखा मेडिकल कॉलेज है जहां आदमी हाथ पर लगी चोट का इलाज कराने के दौरान मर जाता है।
12 जुलाई को सुरेश के हाथ का ऑपरेशन होना था। उसे निश्चेतक(एनेस्थीसिया) दिया गया और उसके बाद वह हमेशा के लिए ही चेतना गंवा बैठा। यानी ऑपरेशन थिएटर में सर्जन के हाथ लगाने से पहले ही सुरेश की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी खाल बचाने के लिए मेडिकल कॉलेज को कब्रगाह में तब्दील करने वाले कह रहे हैं कि सुरेश तो दिल का दौरा पड़ने से मर गया। लेकिन प्रश्न यह है कि ऑपरेशन के लिए मरीज को तमाम टेस्ट करने के बाद ही ले जाया जाता है। तब क्या सुरेश के दिल की हालत समेत ऐसे सभी टेस्ट नहीं किये गए थे। यदि किये गए थे तो फिर इन टेस्टों के परिणामों में सुरेश का दिल का मरीज होना क्यूँ नहीं सामने आया। या तो टेस्ट ठीक से नहीं हुए या फिर मरीज को मारने के बाद एनेस्थीसिया वाले डॉक्टर संजुल की खाल बचाने के लिए दिल के दौरे का बहाना गढ़ा जा रहा है।
इस मामले में संदेह की एक वजह यह भी है कि यदि सुरेश की मृत्यु 11 बजे सुबह ही हो चुकी थी। तो उसे मरने के बाद कई घंटों तक वेंटिलेटर पर क्यूँ रखा गया। खुलने के 5-6 सालों में पहली बार श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में वेंटिलेटर के उपयोग की बात सुनी गयी वरना तो आलम यह है कि कई बार महीनों-महीनों तक यहाँ रेडियोलॉजिस्ट तक का अता-पता नहीं होता। जिस अस्पताल में लोग अल्ट्रासाउंड के लिए तरसते हों वहां अचानक से वेंटिलेटर सामने आ जाए और आनन-फानन में उसका ऑपरेटर भी प्रकट हो जाए तो यह सुकून नहीं संदेह ही पैदा करता है। सुरेश की मृत्यु पर लोग सड़क पर उतरे घंटों तक यातायात बाधित भी हुआ पर इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा वाक़या श्रीनगर गढ़वाल के मेडिकल कॉलेज में फिर नहीं होगा।
यह कोई पहला वाक़या नहीं है बल्कि इस घटना के हफ्ता-दस दिन पहले एक और व्यक्ति की मृत्यु ऐसे ही ऑपरेशन टेबल पर सर्जन के हाथ लगाने से पहले ही हो गयी। आज से कुछ साल पहले एक लड़की मामूली से अपेंडिक्स के आपरेशन के बाद सिर्फ इस वजह से जान गँवा बैठी कि पुरुष नर्स ने फोन पर डाक्टर से दर्द निवारक दवा पूछी। डाक्टर ने घाव पर चिपकाने वाला दर्द निवारक बताया और नर्स ने बेहोशी वाले इंजेक्शन का भारी डोज दे दिया। उस समय भी किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ और इस बार भी किसी डाक्टर का कुछ बिगड़ेगा इसमें संदेह है।
जिस सूबे का मुख्यमंत्री हवाई जहाज में गर्दन पर गंभीर चोट खाने के बावजूद बेहतर इलाज मिलने के कारण अस्पताल से ना केवल सरकार चलाने और केंद्र को चिट्ठी लिखने के लिए रोज सुर्खियाँ बटोरता है। और अस्पताल से ही चुनावी सन्देश भी रिकॉर्ड करवा कर आये दिन अपने चुनाव क्षेत्र में भेजता है। उसी सूबे में अस्पताल से सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री के राज में सरकारी मेडिकल कॉलेज में लोग हाथ की चोट का इलाज कराने अपने पांवों पर चलते हुए जाते हैं और अर्थी पर लेट कर भस्म होने के लिए ही बाहर आते हैं। यह कैसी विडम्बना है!! मुख्यमंत्री का देश के सबसे बड़े अस्पताल से इलाज का उत्सवी फोटो और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से सामान्य मरीजों के मरने की ख़बरें एक साथ बाहर आ रही हैं। क्या हुक्मरानों के लिए ये चिंता का सबब बनेगा या फिर ये मेडिकल कॉलेज के नाम पर खुला हुआ कसाईखाना है जहाँ इलाज कराने जाने वाले गरीबों को अपनी अंतिम संस्कार की तैयारी करके ही वहां जाना चाहिए।
इन्द्रेश मैखुरी
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raju
August 13, 2014 at 7:35 am
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