जेएनयू और रोहित वेमुला के मसले पर एबीवीपी के नेताओं के इस्तीफ़ा-पत्र का हिन्दी अनुवाद
मित्रों,
हम लोग, प्रदीप, संयुक्त सचिव एबीवीपी, जे एन यू यूनिट, राहुल यादव , अध्यक्ष सामाजिक अध्ययन संसथान एबीवीपी यूनिट, जे एन यू, और अंकित हंस , सचिव, सामाजिक अध्ययन संसथानएबीवीपी यूनिट, जे एन यू, एबीवीपी से इस्तीफा दे रहे हैं और खुद को एबीवीपी के अगले किसी भी एक्टिविटी से अलग करते है. हम यह निर्णय निम्नांकित कारणों से ले रहे हैं.
1. जेएनयू के हालिया घटनाक्रम
2. संगठन के साथ रोहित वेमुला और मनुस्मृति जैसे मुद्दों पर लम्बे समय से असहमति
9 फरवरी को कैम्पस में राष्ट्रविरोधी नारे बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद थे. जो भी इस कृत्य के लिए दोषी है उसे क़ानून के अनुसार सजा दी जानी चाहिए, लेकिन एनडीए सरकार का पूरे मुद्दे से निपटने के तरीके, शिक्षकों को प्रताड़ित करने और मीडिया तथा कन्हैया पर बार-बार कोर्ट परिसर में हमले किये जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. हम समझते हैं कि सवाल किये जाने और किसी विचारधारा को दबाने या पूरे वामपंथ को देशद्रोही सिद्ध करने के बीच बहुत बड़ा अंतर है.
लोग ‘शटडाउन जेएनयू’ की मुहिम चला रहे हैं. पर हमें लगता है कि उन्हें ‘शटडाउन जी न्यूज’ का मुहिम चलाना चाहिए, जिसने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान को अप्रतिष्ठित किया है. पूर्वग्रह से ग्रस्त ‘जी न्यूज’ मीडिया ने कुछ लोगों के द्वारा किये गये कृत्य का सामान्यीकरण किया है और उसे पूरे जेएनयू के छात्र समुदाय से जोड़ दिया है.
जेएनयू प्रगतिशील और लोकतांत्रिक संस्थानों में से एक माना जाता है जहां हम निम्न से लेकर उच्च आय वर्ग के लोगों को समता के साथ आपस में घुलते-मिलते देखते हैं. हम लोग ऐसी सरकार के प्रवक्ता नहीं हो सकते जिसने विद्यार्थी समुदाय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. या ओपी शर्मा जैसे विधायक के प्रवक्ता नहीं हो सकते. या फिर ऐसी सरकार के हिमायती नहीं हो सकते, जिसने पटियाला कोर्ट और और जे एन यू नार्थ गेट के सामने दक्षिणपंथी फासीवादी ताकतों के कृत्यों को उचित ठहराया है. हम प्रतिदिन देख रहे हैं कि लोग भारतीय झंडे के साथ जेएनयू के में गेट के सामने हम विद्यार्थियों को पीटने के लिए इकट्ठे हो रहे हैं. यह गुंडागर्दी है, न कि राष्ट्रवाद. आप राष्ट्र के नाम पर कुछ भी नहीं कर सकते हैं. राष्ट्रवाद और गुंडागर्दी में बड़ा अंतर है.
राष्ट्रवाद विरोधी नारे कैम्पस या देश के किसी भी हिस्से में बर्दाश्त नहीं किये जा सकते हैं. जे एन यू एस यू और कुछ वामपंथी संगठन कह रहे हैं कि कैम्पस में कुछ भी नहीं हुआ है, लेकिन हम यहाँ जोर देकर कहना चाहते हैं कि कुछ पर्दाधारी लोगों ने डी एस यू के पूर्व सदस्यों के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘भारत तेरे टुकडे होंगे’ के नारे लगाये थे. इसके ठोस सबूत वीडियो में हैं भी. इसलिए हम मांग करते हैं कि नारा लगाने वालों को क़ानून के अनुसार सजा दी जानी चाहिए. इसी क्रम में हम मीडिया ट्रायल की भी निंदा करते हैं, जो धीरे-धीरे देश भर में जे एन यू विरोधी भावनाओं में तब्दील हो गया.
आज हम सब को जे एन यू को बचाने के लिए एक साथ खडा होना चाहिए, जिसने हमें पहचान दी है. हम सबको पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इस संस्थान की प्रतिष्ठा बचाने के लिए , जे एन यू समुदाय के भविष्य को बचाने आगे आने चाहिए, क्योंकि 80 % से अधिक विद्यार्थी किसी राजनीतिक संगठन से सम्बद्ध नहीं है.
हम सब जे एन यू संस्कृति को बचाने के लिए इकट्ठे हों!
वन्दे मातरम् !
जय भीम !!
जय भारत !!!
सोशल एक्टिविस्ट Sanjeev Chandan के फेसबुक वॉल से.
AMIT
February 20, 2016 at 7:40 am
KYUN BHAI UNIVERSITY KYA PAKISTAN ZINDABAD BOLNE KE LIYE HAI,,,EK CHANNEL JO SAHI REPORTING KAR RAHA HAI USSE TUMHARI GAND PHAT RAHI HAI,,,DHIKKAR HAI TUM PAR
sanjay
February 25, 2016 at 11:28 am
‘शटडाउन जी न्यूज’ का मुहिम तो सकता है चलानी पड़े परन्तु ‘शटडाउन जी पंजाब हरयाणा हिमाचल ‘ की मुहिम तो ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल के संपादक दिनेश शर्मा ने कब से शुरू की हुई है , दिनेश शर्मा ने “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” को बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड रखी , परन्तु ज़ी के मालिक सुभाष चंद्रा को सब दिखाई ही नही देता कि दिनेश सब बर्बाद कर रहा है | पता नही क्यों मालिक लोग आंखे मूंदे बैठे है , क्यों उनको दिखाई नही देता कि दिनेश शर्मा ने संपादक पद सँभालते ही पुराने स्टाफ को निकलना शुरू कर दिया | यह वो स्टाफ था जिस ने “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” को कामयाब करने के लिए ना दिन देखा – ना रात | पूरा किस्सा कुछ इस तरह है , जब ज़ी पंजाबी और पी टी सी न्यूज़ अलग लग हुए तो कई दिन ज़ी पंजाबी बंद रहा , ज़ी पंजाबी में काम करने वाले पुराने लोग भी पी टी सी न्यूज़ में थे , उनको वापिस बुला कर परवीन विक्रांत और नवल सागर जी की देख-रेख में ज़ी पंजाबी की शुरूआत की गई , कुछ ही दिनों में ज़ी पंजाबी अपनी पकड़ पंजाब और विदेश में बनाने लगा | पी टी सी न्यूज़ पंजाब की बादल सरकार का चैनल है , उसकी साख कम होने लगी तो बादल सरकार ने पंजाब में ज़ी पंजाबी को आफ एयर कर दिया , ज़ी पंजाबी केबल नेटवर्क पर पंजाब में दिखाई देना बंद हों गया , बेशक ज़ी पंजाबी पंजाब में बंद हों गया था और अढ़ाई साल तक बंद ही रहा परन्तु फिर भी ज़ी पंजाबी में काम करने वाले किसी भी स्टाफ के सदस्य , रिपोर्टर , पंजाब में काम करने वाले स्टिंगर ने ज़ी को ना छोड़ा , सब लगन से काम करते रहे , अढ़ाई साल बाद “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” पंजाब में केबल नेटवर्क पर चलना शुरू हुआ | संपादक संजे वोहरा , आउटपुट परवीन विक्रांत , इनपुट नवल सागर की देखरेख में “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” आगे ही बढ़ता गया , दूसरी तरफ एक तरफा हों कर पूरा दिन-रात बादल सरकार के गुणगान करने के कारण पी टी सी न्यूज़ की साख गिरती गई | वक्त बदला संजे वोहरा के स्थान पर ज़ी ग्रुप ने एक रिपोर्टर दिनेश शर्मा को “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” का संपादक बना , बन्दर के हाथ उस्तरा थमा दिया | दिनेश शर्मा ने ज़ी मालिकों से वादा किया कि एक साल में पन्द्रह करोड़ का बिज़नस ला कर दिखाऊंगा , उसी वादे कि साथ दिनेश शर्मा ने अपनी मनमानियां शुरू कर दी | सुभाष चंद्रा ने सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखे बंद रखी , क्योंकि उनको तो बस पैसे चाहिए था वो कैसे भी आये | दिनेश शर्मा ने स्टाफ को गन्दी गन्दी गालियां देना शुरू कर दिया , पुराने लोगों को निकलना शुरू कर दिया | रिपोर्टर जो पुराने समय से साथ थे उनको निकलना शुरू कर दिया , और तो और स्टिंगर जो लंबे समय से काम कर रहे थे उनको भी निकाल दिया | नया नाकाबिल स्टाफ भर्ती किया बस उनकी काबलियत ये कि वो दिनेश शर्मा के चहेते थे , चैनेल धीरे धीरे पंजाबी से हिन्दी होता जा रहा है , विदेशों में वसे पंजाबी दर्शकों ने अपना मुँह मोडना शुरू कर दिया | आप पार्टी के लोगों को अधिक दिखाया जा रहा है | काबिल लोग निकाल दिए , जिन को कसी कारण दिनेश शर्मा निकाल नही पाया उनको हररोज तंग किया जा रहा है , जिस से उनका दम घुट रहा है बस परिवार की मज़बूरी के चलते काम पे आ रहे है कुछ इस्तीफा दे के जा चुके है कुछ आने वाले दिनों में चले जाएगें , दिन रात अब स्टाफ वाले सुभाष चंद्रा को कोस रहे है कि जागो और “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” को बचा लो नही तो दिनेश शर्मा “ज़ी पंजाब हरयाणा हिमाचल” को फिर से शटडाउन करवाके छोडेगा |