देश में असहिष्णुता का जो माहौल है, वह लगातार बद से बदतर होता जा रहा है. लेखकों के बाद अब पत्रकारों को सीधे तौर पर निशाना बनाया जा रहा है. देश में असहिष्णुता और अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर छिड़ी बहस के बीच बुधवार को दो जाने-माने पत्रकारों पर अलग-अलग किस्म के हमले हुए. इलाहाबाद में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानि भाजपा के छात्र विंग एबीवीपी के कार्यकर्ता ने सीनियर जर्नलिस्ट सिद्धार्थ वरदराजन को बंधक बना लिया. उनके साथ यूनिवर्सिटी यूनियन की प्रेसिडेंट ऋचा सिंह भी बंधक थीं. दोनों को आधे घंटे तक वीसी आरएल हंगलू के ऑफिस में बंद रखा गया. पुलिस ने किसी तरह सिद्धार्थ और ऋचा को छुड़ाया. बाद में विश्वविद्यालय परिसर के बाहर स्वराज विद्यापीठ में यह गोष्ठी कराई गई और सिद्धार्थ वरदराजन ने छात्रों को संबोधित किया. इससे पहले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में योगी आदित्यनाथ को बुलाने को लेकर भी काफी विवाद हुआ था.
सिद्दार्थ स्टूडेंट यूनियन के सेमिनार में ‘डेमोक्रेसी, मीडिया और फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ के सब्जेक्ट पर में बोलने आए थे. एबीवीपी के नेताओं का कहना था कि, वरदराजन विवादास्पद लेख लिख चुके हैं. उनके यूनिवर्सिटी में आने से माहौल बिगड़ेगा, इसलिए हम उनका विरोध कर रहे थे. बुधवार को सेमिनार शुरू होने के पहले से ही एबीवीपी मेंबर्स यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे. वर्कर्स को जब उनके वीसी ऑफिस में होने की खबर मिली तो उन्होंने दफ्तर का घेराव कर लिया.
वरदराजन, इंडो-अमेरिकन जर्नलिस्ट और एडिटर हैं. वे द हिंदू के एडिटर रह चुके हैं. उन्होंने नाटो वॉर, अफगानिस्तान और ईराक वॉर कवर किया है. 2002 में गुजरात दंगों पर कई चर्चित आर्टिकल्स लिखे. वरदराजन लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ चुके हैं. एबीवीपी नेता विक्रांत सिंह ने बताया, ‘हम वरदराजन और इवेंट ऑर्गनाइजर के मुंह पर कालिख पोत कर जूते और अंडे बरसाने वाले थे, लेकिन ऐसा करने पर उन्हें और भी पब्लिसिटी मिलती, इसलिए हमने ऐसा न करते हुए वीसी ऑफिस का घेराव किया.’
यूनियन प्रेसिडेंट ऋचा ने क्हा कि एबीवीपी के नेताओं के दबाव की वजह से यूनिवर्सिटी ने सेमिनार कैंसल कर दिया. ऋचा के मुताबिक हम पर हमले का भी प्लान था. यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉ. के. एन उत्तम ने कहा कि विवाद न बढ़े इसलिए सीनेट हॉल में सेमिनार कैंसल कर दिया गया. ऐसा किसी ऑर्गनाइजेशन के दबाव में नहीं किया गया. इवेंट को खुद वीसी ने परमिशन दी थी, वे इसे अटेंड भी करने वाले थे.
उधर अहमदाबाद में 2002 के गुजरात दंगों पर किताब लिख रही स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल की दंगों के एक आरोप ने बातचीत के दौरान पिटाई कर दी. रेवती जनवरी 2015 से लगातार गुजरात का दौरा कर रही हैं और घटनास्थल पर जाकर पीड़ितों और आरोपियों से मुलाकात कर उस स्थिति को जानने का प्रयास कर रही है. इसी दौरान दंगों के एक आरोपी सुरेश रिचर्ड ने उनकी काफी पिटाई कर दी और उनके चेहरे पर पिटाई के निशान व चोट साफ तौर पर दिख रहे हैं. सुरेश 31 साल की जेल की सजा भुगत रहा है, हालांकि इन दिनों वह पैरोल पर बाहर आया है.
रेवती ने बताया कि वे 2002 से गुजरात का दौरा कर रही हैं और नरोडा पाटिया के थाड़ा नगर इलाके में कई बार गयी हैं और लोगों से बात की है. उन्होंने कहा कि इसी दौरान उनकी भेंट सुरेश रिचर्ड की पत्नी से हुई. दंगों के आरोपी सुरेश ने दंगों के दौरान कई महिलाओं से बलात्कार किया था और बयान दिया था कि मैंने औरतों से रेप किया और उनका अचार बन गया. रेवती ने बताया कि मैं उसके परिवार से कई बार मिली और एक बार उसकी पत्नी ने मुझे बुलाया और कहा कि उनके साथ एक हादसा हुआ है और वे यहां उनके अलावा किसी स्ट्रांग महिला को नहीं जानती हैं. सुरेश की पत्नी ने कहा कि उसके पति ने उसके साथ बलात्कार किया और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि वे पुलिस, कोर्ट में कैसे शिकायत करें.
रेवती के अनुसार, जब वे सुरेश से इन्हीं मामलों में बात कर रही थीं, तब पांच मिनट में ही वह उठा और उन्हें बेरहमी से पीटने लगा. रेवती ने आरोपी का पैरोल रद्द करने की मांग की है. रेवती लाल एक टीवी पत्रकार हैं और एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका से जुड़ी हैं. वे पिछले 16 सालों से डाक्यूमेंट्री फिल्मों का भी निर्माण करती हैं. उन्होंने गुजरात दंगों व असम की उल्फा समस्या पर उल्लेखनीय रिपोर्टिंग की है. वे राजनीतिक विषयों पर भी एक पत्रिका में लिखती हैं. वे वंचित बच्चों के लिए बनाये गये एनजीओ तारा की संस्थापक सदस्य भी हैं. आरोपी सुरेश को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया.
AMIT
January 22, 2016 at 5:32 am
भई क्या है ये डबल स्टैडर्ड,,, असहिष्णुता एक फर्जी मुद्दा है जोकि बार-बार भड़काया जा रहा है। दरअसल हमारे समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी नरेंद्र मोदी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे है। मालदा की घटना पर कोई नहीं बोलता, पुर्णिया में जो कुछ हुआ उस पर कोई नहीं बोलता,,,बोलते है देश में असहिष्णुता बढ़ गई है। मैं एक आम आदमी हूूूं और किसी पार्टी का समर्थक नहीं हूं। जिस तरह से झूठ को मीडिया की तरफ से सच बनाकर परोसा जा रहा है और एक तरफा खबर दिखाई जा रही है उससे मेरा विश्वास मीडिया पर खत्म हो रहा है।बंद करो ये बकवास,,,आम आदमी की कितनी समस्याएं है उससे किसी का कोई लेना-देना नहीं है।