कबीर के नाम से चर्चित एसके दत्ता उर्फ सुनील कुमार दत्ता आजमगढ़ की एक जानी-मानी शख्सियत हैं. साइकिल से करियर शुरू करने वाले दत्ता साहब दैनिक जागरण, टाइम्स आफ इंडिया, राष्ट्रीय सहारा से लेकर अमर उजाला तक में काम करते हुए कुछ बरस से मोपेड से चलने लगे हैं. जाहिर है, उनके जीवन में, उनकी नैतिकता में, उनके संस्कार में पैसे महत्वपूर्ण नहीं थे, न हैं. वे जीवन को संपूर्णता के साथ जीते-देखते हैं.
अच्छी खासी पढ़ाई-लिखाई करने वाले दत्ता साहब देश के उन चुनिंदा फोटो जर्नलिस्ट में हैं, जिनकी चेतना प्रगतिशील है. जो आम जन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और जमीन से जुड़ाव को हमेशा तवज्जो देते हैं. अपने समय को करीब से देखने-जानने-महसूस करने और उसे बिना लाग-लपेट कह देने वाले दत्ता जी से भड़ास के एडिटर यशवंत ने एक मुलाकात में पत्रकारिता, फोटोग्राफी, कैमरा, जीवन आदि को लेकर विस्तार से बात की.
दत्ता साहब बताते हैं कि उनकी मां को साहित्यिक किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. उन्हें किताब मुहैया कराने के क्रम में खुद भी वो पढ़ते गए. दत्ता जी की मुलाकात किस तरह लाल झंडे वालों से हुई, कैसे उन्होंने मैक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘मां’ को पढ़ा, यह सब उन्होंने विस्तार से बताया. साथ ही उन्होंने अपने कैमरे के जरिए किए गए कुछ प्रयोगों से रुबरु कराया. दर्जन भर से ज्यादा पुरस्कारों से नवाजे जा चुके दत्ता जी को हाल ही में अंतरराष्ट्रीय भारत नेपाल मैत्रीय सम्मेलन में सम्मानित किया गया.
देखें एसके दत्ता उर्फ कबीर का इंटरव्यू…
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bhadasadmin
April 15, 2018 at 6:03 am
waah. bahut khoob. salam dada.