Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

मोदी इंटरव्यू से चर्चित स्मिता प्रकाश को राहुल गांधी ने ‘Pliable’ कहा, मचा बवाल

Manoj Malayanil : जिस पत्रकार ने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया उनके लिए राहुल गांधी ने pliable शब्द इस्तेमाल किया है…यानी ऐसा व्यक्ति जिसे आसानी से वश में किया जा सकता है, जो बहुत लचीला हो। pliable किसे कहते हैं, इस शब्द के मतलब को राहुल गांधी ने ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में क़रीब एक दशक तक क़रीब से एक्सप्लोर किया है। शायद इसीलिए Pliable शब्द राहुल गांधी ही नहीं सोनिया गांधी के दिल के भी क़रीब हो।

Prakash K Ray : हँगामा है क्यूँ बरपा! एक पत्रकार के बारे में राहुल गाँधी द्वारा प्रयुक्त विशेषण पर बवाल को देखकर आश्चर्य हो रहा है. मेरा मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष उस विशेषण के प्रयोग से भले ही बच सकते थे, किंतु वह अपमानजनक कतई नहीं है. वह एक केंद्रीय मंत्री द्वारा प्रयुक्त अपशब्द नहीं है और न ही अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह पत्रकार को लोगों का दुश्मन बताया गया है. इसे उस साक्षात्कार की आलोचना के रूप में लिया जाना चाहिए और इस आलोचना का अधिकार राहुल गाँधी को भी है. क्या इराक़ पर अमेरिकी हमले के समय रिपोर्टिंग कर रहे पश्चिमी पत्रकारों को embedded नहीं कहा गया था? क्या ऐसा कहना ग़लत था? क्या दुनियाभर में विभिन्न चैनल और अख़बार पक्षधरता या प्रोपैगैंडा नहीं करते?

Advertisement. Scroll to continue reading.

क्या हमारे देश में प्लांटेड या पेड न्यूज़ के मसले नहीं हैं? क्या ख़बरें दबाने या उठाने की परंपरा नहीं है? क्या मीडिया ने सरकारों की आलोचना करने और ज़रूरी मुद्दों को ठीक से उठाने की जवाबदेही निभाई है? क्या मीडिया संस्थान सरकार या दलों से निकटता नहीं रखते? कोई पूछे अरूण जेटली से कि किसकी शह पर तीन दशक पहले इंडियन एक्सप्रेस में राष्ट्रपति की ‘फ़र्ज़ी’ चिट्ठी पहले पन्ने पर छपी थी और एस गुरुमूर्ति को गिरफ़्तार होना पड़ा था! चिट्ठी फ़र्ज़ी थी या कुछ और मामला था, यह भी उन्हें पता होगा.

राहुल गाँधी पर जेटली ने प्रतिक्रिया देते हुए ‘डीएनए’ शब्द का इस्तेमाल किया है. यह इस्तेमाल सिर्फ़ एक शब्द का इस्तेमाल नहीं है, बल्कि एक तरह की मानसिकता को इंगित करता है. बिहार के चुनाव में प्रधानमंत्री ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था. ध्यान रहे, हिटलर के नाज़ीवाद में भी डीएनए की अवधारणा नहीं थी, यह मुसोलिनी के फ़ासीवाद में मिलता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह भी अजीब है कि दिल्ली स्थित पत्रकारों और संपादकों के संगठनों ने तुरंत राहुल गाँधी के बयान पर प्रतिक्रिया दे दी, लेकिन केरल में पत्रकारों पर हमले की उन्हें कोई चिंता नहीं रही. शजीला की तस्वीर देखें इन संगठनों के शीर्ष लोग, वह रो रही है, पर अपना काम कर रही है. पत्रकारिता यह है. बहरहाल, आम लोग दब्बू, जुगाड़ु, सेट, बिका हुआ तथा निडर, ईमानदार, सुलझे हुए, तेज़, खोजी और बहादुर जैसी संज्ञाएँ और विशेषण पत्रकारों के लिए ख़ूब इस्तेमाल करते रहे हैं.

पिछले कुछ साल से एक चुटकुला सोशल मीडिया पर बहुत चलता है-

Advertisement. Scroll to continue reading.
  • क्या काम करते हैं?
  • पत्रकार हूँ.
  • अच्छा! किस पार्टी के?

पत्रकार द्वय मनोज मनियानिल और प्रकाश के रे की एफबी वॉल से.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement