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उपेंद्र राय ने शुरू किया सहारा मीडिया में बदलाव, बनारस संस्करण के संपादक स्नेह रंजन बर्खास्त

सहारा मीडिया से सूचना है कि नए बने ग्रुप एडिटर उपेंद्र राय ने बदलाव शुरू कर दिया है. राष्ट्रीय सहारा अखबार के वाराणसी संस्करण के संपादक स्नेह रंजन को बर्खास्त कर दिया गया है. गाजीपुर के ब्यूरो चीफ आशीष कुमार सिंह को प्रमोट करके बनारस में राष्ट्रीय सहारा का नया यूनिट मैनेजर बनाया गया है. शशि प्रकाश को नया एडिटोरियल हेड तैनात किया गया है. चर्चा है कि बदलाव का यह काम दूसरी यूनिटों में भी चलेगा. इसको लेकर सहारा कर्मी आशंकित हैं. सहारा में सेलरी संकट बना हुआ है. सेलरी न मिलने से पूरा सहारा मीडिया आटो मोड में चला गया है.

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0 Comments

  1. G.P. Sing

    November 16, 2015 at 2:53 am

    Snah Madhur ji to 6-7 maheeno se pioneer Hindi ke vristha karyakari sampadak hain. kya ye 2-2 jagah ek sath kam kar rahe thay ?

  2. पितामह भीष्म

    November 14, 2015 at 3:09 am

    सहारा की यूनिटों से ऐसे लोगों को बाहर का रस्ता दिखाना चाहिए जी बिना कार्य वेतन ले रहे हैं और जिनका कार्य में योगदान शून्य हैं।
    उपेन्द्र जी के आने से कार्य प्रगति होगी ऐसा दिखाई दे रहा हैं बस वेतन नियमित हो जाये और बकाया किस्तो में मिल जाये।

  3. iNSAF

    November 18, 2015 at 9:21 pm

    SHASHI RAI SARIKHE LOGON NE BRITISH RAJ KI ITIHAS TAJA KAR DI HAI. BHARAT GULAMI KI ORE HAI. DEKHTE HAI UPENDRA RAI IS BAAR NISHPAKSHA KAAM KARTE HAI YA FIR JAATIWAD KE JAAL ME FANS JAATE HAI. UNKI KAAMYABI NISHPAKSHTA AR BHI NIRBHAR HAI.

  4. jayprakash kumar

    November 19, 2015 at 7:35 am

    सबसे जरूरी है पटना यूनिट को सुधारने की मुझे लगता है की कभी ५५००० पिंट छपने के बाद आज दो स्थिति ओ काफी दुर्भाग्य पूर्ण है ,बावजूद उसके इस यूनिट के अधिकारी अपने क्रिया कलाप प्र नाज करते है साथ ही मुझे लगता है इस यूनिट में जितना ट्रांसपर हुवा उतना किसी यूनिट में नही

  5. कुमार कल्पित

    November 17, 2015 at 5:56 am

    क्या ऐसा कभी हुआ है , सुना है या संभव है कि किसी आंदोलनकारी को या यूनियन के पदाधिकारी को प्रबंधन अपनी ” गोद” में बैठा ले । क्या यह संभव है किसी सरकारी/अर्ध सरकारी/निगम या स्वायत्त शासी संस्था में वेतन न मिलने के विरोध में आंदोलन हो और नेतृत्व करने वाले को किसी शाखा का मुखिया बना दिया जाए । मसलन एक एक आंदोलनकारी शिक्षक नेता को निदेशक/अपर निदेशक या उप निदेशक बना दिया जाए । शायद क्या निश्चित रूप से नहीं । लेकिन ऐसा हो सकता है क्या हुआ है । विश्व के सबसे सबसे भावनात्मक परिवार सहारा इंडिया ने अपने नियंत्रण में निकलने वाले अखबार राष्ट्रीय सहारा के वाराणसी संस्करण की कमान प्रक्रियाधीन यूनियन के स्वघोषित अध्यक्ष के हवाले कर दी ।
    इस घटना ने अनायास ही हार की जीत नामक कहानी कि याद दिला दी । कहानी लगभग सभी ने पढी होगी । फिर भी …. कहानी में डाकू खडग सिंह को बाबा भारती का घोडा पसंद आ जाता है । वह बाबा भारती से मांगता है , न मिलने पर साधु का भेष धारण कर धोखे से घोडा हासिल कर लेता है । घोडा ले जाते समय बाबा भारती डाकू खडग सिंह से यही कहते हैं कि इस घटना का जिक्र किसी न करना वरना साधुओं से लोगों का विश्वास उठ जाएगा ।
    कुछ ऐसा ही राष्ट्रीय सहारा आंदोलन के कथित छद्मधारी यूनियन के पदाधिकारी शशि प्रकाश राय को वाराणसी संस्करण का स्थानीय संपादक बनाने की घोषणा से हुआ । वैसे भी आज के समय का संपादक मालिकान का ” चिंटू ” होता है । ऐतराज श्री राय को संपादक बनाने से नहीं है । वैसे भी कुछ माह पूर्व हिंदी दैनिक आज के मालिक शार्दूल विक्रम गुप्त कह चुके हैं कि ” हम चाहें तो एक रिक्शा वाले को संपादक बना सकते हैं । राष्ट्र रत्न रहे शिव प्रसाद गुप्त के यशेस्वी पुत्र शार्दूल ने कुछ भी नहीं कहा कि उसकी हाय तौबा की जाए । ब्यूरो में कार्य करने वाले एक साधारण से रिपोर्टर रणविजय सिंह तमाम वरिष्ठतों की वरिष्ठता को लांघते हुए लखनऊ जैसे यूनिट के स्थानीय संपादक और जूनियर क्राइम रिपोर्टर स्वतंत्र मिश्र यूनिट हेड हो सकते हैं तो श्री राय क्यों नहीं । हम राय के विरोधी नहीं हैं । हम विरोध करते हैं किसी आंदोलन के मुखिया को प्रशासनिक पद सौंपे जाने का । बनाए जाने के तरीके का । अब तक आंदोलन को कुचलने का तरीका नेता को पैसे से खरीद लेने का रहा है । पत्रकारिता जगत के आंदोलनों का शायद यह पहला उदाहरण है उत्पीड़न का विरोध करने वाले समूह के मुखिया को उत्पीडक बना दो ।
    आंदोलनकारी समूह का मुखिया के संपादक बनने से पदाधिकारी की भूमिका पर सवालिया निशान नहीं लगते क्या ? श्री राय का पद स्वीकारना इस बात की ओर इशारा करता है कि जुलाई १५ में हुए आंदोलन को कमजोर करने के लिए वे आए थे । प्रबंधन आंदोलनकारियों में दो फूट डलवाने के लिए उन्हें लाया था । आंदोलन समाप्त होने के आंदोलनकारियों में गुटबाजी की खबर भी भडास पर आई थी । श्री राय के संपादक बनने ने भडास के खबर की पुष्टि कर दी है ।

    कुमार कल्पित

  6. SUNIL SINGH

    November 22, 2015 at 7:00 am

    ISHWAR KHUD DHARTI PAR NHI ATAT HAI..VO KAB KISKO KIS ROOP ME JEEVANODHHAR KE LIYE BHEJ DE KAHA NHI JA SAKTA HAI.. Desh me modi ke aane se achhe din ki ummid jaagi hai to..SAHARA ME MANNIY sir ke aane se sabhi “kaam karne walon ko” ummid jagi hai….

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