कल एक फेसबुक मित्र से हाय हैलो हुयी. पहले वो रियल4न्यूज मे काम करती थीं. उसके बाद कल हालचाल पूछा तो पता चला कि जिया न्यूज में है. मैंने पूछा किस स्टोरी पर क़ाम चल रहा है तो बोलीं- फिलहाल रेस्ट पर हूं. मैंने कहा- कब तक. बोलीं- पता नही. मजाक में मैंने कहा- आफिसियल हालीडे. वो बोलीं- नो. मैंने कहा- शादी या प्रेग्नेन्सी. बोलीं- नहीं. फिर दिलचस्पी ली. एक और कयास लगाया की शूट के दौरान घायल? उसने कहा- हां.
मैंने कहा कब तक बेड रेस्ट. बोलीं- उम्र भर. माथा ठनका और सीरियसली पूछा तो पता चला की मेहसाना (अहमदाबाद) में ट्रेन पर शूट के दौरान पटरियों पर गिर गयीं थीं और दोनों टांगें कट गयी. चार महीने से घर पर हैं. सात-आठ लाख रुपये खर्च हो चुके हैं मगर आज तक आफिस ने एक रुपया नहीं दिया. रेलवे प्रशासन भी टाल मटोल कर रहा है. मां-बाप की इकलौती सहारा हैं इसलिये कुछ लिख पढ़ कर काम चला रही हैं.
समाचार चैनल से पंगा नही ले रहीं कि शायद उन चैनल वालों का दिल पसीज जाय. रातों को दर्द के मारे सो नहीं पातीं. ये खबर क्या किसी ने किसी समाचार पत्र या चैनल में पढ़ा / सुना है? क्या दूसरों के लिये न्याय का भोंपू बजाने वाला हमारा किन्नर समाज इस दिशा में कुछ कर सकता है? युवा पत्रकार की उम्र महज 27 साल है और नाम उसकी सहमति से उजागर कर रहा हूं. उनका नाम है Snehal Vaghela. मित्रों, अगर कुछ मदद हो सकती है हक की लडाई में तो साथ जरूर दें. मैं आर्थिक मदद की अपील करके अपने धंधे को और उनके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.
सिद्धार्थ झा के फेसबुक वॉल से.
निखिल सिन्हा
November 3, 2014 at 2:00 pm
बेहद दुखद घटना है। चूंकि घटना कार्य के दौरान हुई है इसलिए इलाज का पूरा खर्च और हर्जाना कम्पनी की ज़िम्मेदारी है। लेकिन इसके लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पडेगा। किसी भी वकील से मिलकर आसानी से सारी जानकारी ली जा सकती है। इस केस में तत्काल हर्जाना और इलाज का पूरा खर्च मिलेगा। लेकिन कोर्ट तो जाना पडेगा न्याय तभी मिलेगा। कम्पनी की तरफ से कोई बीमा पालिसी कराई गयी हो तो उससे भी कुछ राहत मिल सकती है। इसके अलावा रेलवे से भी हर्जाने की रकम बनती है। रेलवे के अस्पताल में मुफ्त इलाज और अनुकम्पा नियुक्ति मिल सकती है। इसके लिए आवेदन करना होगा और रेलवे मिनिस्टर से गुजारिश की जा सकती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और पत्रकारिता संगठनों से भी मदद की अपील की जानी चाहिए। फेसबुक के ज़रिये फौरी राहत के लिए रकम जुटाई जा सकती है।
Amit Rawat
November 5, 2014 at 2:44 am
ऐसे चैनल मालिकान के खिलाफ हल्ला बोलना चाहिए ये लोग महज अपने फायदे के लिए और पैसो की भूख के चलते इंसानियत भी भूल चुके है ,,,,दोस्तों वक़्त आ गया है और खुल कर बोलो ऐसे प्रबंधन के खिलाफ ……ये तो एक घटना है जो सबके सामने आ गयी लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे संस्थान है जो अपने करम चारियो के खिलाफ ज्यादती करते है .
jai prakash tripathi
November 5, 2014 at 9:08 pm
धनमीडिया के बघेरों से क्यों जनमीडिया जैसी उम्मीदें करना