अनिल जैन-
सन 1970-80 के दशक के धाकड़ पत्रकार और संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एसपी सिंह की आज 25वीं पुण्यतिथि है (4 दिसंबर 1948 – 27 जून 1997)। इस मौके पर याद आ रहा है उनसे जुडा एक किस्सा, जिसके जरिए जाना जा सकता है कि उनकी और उस दौर की पत्रकारिता कैसी थी और अब उसकी क्या गत हो गई है।
बात 1983 की है। केंद्र और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं। मध्य प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर कांग्रेस विधायक यज्ञदत्त शर्मा ने इंदौर में एक बड़े जमीन घोटाले को अंजाम दिया था।
घोटाले की पूरी कथा इंदौर के ही दो पत्रकारों वसंत पोत्दार और सुभाष रानडे Subhash Ranade ने लिखी थी, जो उस समय कोलकाता से प्रकाशित होने वाली हिंदी की चर्चित साप्ताहिक पत्रिका रविवार में छपी थी। उन दिनों रविवार की ख्याति भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की बलि लेने वाली पत्रिका के रूप में थी।
बहरहाल वह कथा छपने के बाद यज्ञदत्त शर्मा ने मध्य प्रदेश में रविवार के उस अंक की प्रतियां बाजार से गायब करवाने का प्रपंच रचा, अपने गुर्गों के जरिए दोनों पत्रकारों को देख लेने की धमकी भी दी और स्पीकर हैसियत से रविवार के संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह को विशेषाधिकार हनन का नोटिस देकर विधानसभा में हाजिर होने को कहा।
एसपी सिंह ने उस नोटिस का जो विस्तृत जवाब विधानसभा स्पीकर को भेजा उसे नोटिस के साथ ही रविवार के अगले अंक में छापा भी। एसपी सिंह के जवाब का शीर्षक था, ”स्पीकर खुदा नहीं होता और हम भ्रष्ट खुदा के भी खिलाफ हैं।’’
उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और यह पूरा वाकया उनके संज्ञान में भी आ चुका था। उनके दफ्तर से यज्ञदत्त शर्मा को दिल्ली तलब किया गया। चूंकि यज्ञदत्त शर्मा का इंदिराजी से सीधा संपर्क था, इसलिए उनको भरोसा था कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा।
लेकिन दिल्ली पहुंचने पर उन्हें स्पीकर पद से इस्तीफा देने का निर्देश मिला। उसके बाद एक तरह से उनकी राजनीतिक जीवनलीला समाप्त हो गई। बाद में वे अपनी दुर्गति कराने के लिए भाजपा में भी गए और वहीं पड़े-सड़े रहते हुए धरती का बोझ कम कर गए।