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सियासत

साइनाइड ढूंढते ढूंढते उनमें प्यार हो गया और मरने का कार्यक्रम कैंसिल कर आपस में विवाह कर लिया

Sanjay Sinha : मैने ये कहानी कब, कहां और कैसे पढ़ी है मुझे जरा भी याद नही। कहानी भी लगता है कुछ कुछ ही याद है। लेकिन जितनी कहानी याद है उससे मेरी आज की बात पूरी हो जाएगी। कहानी इस तरह है – एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में धोखा खाकर ज़िंदगी से निराश हो गया। उसे लगने लगा कि अब ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं, और मन ही मन तय कर लिया कि अब मर जाना चाहिए। उसने मरने की सबसे आसान विधा के बारे में पढ़ा और ये समझ पाया कि अगर पोटैशियम साइनाइड जैसा जहर कहीं से मिल जाए तो मौत बेहद आसान हो जाएगी। पोटैशियम साइनाइड मतलब जुबां पर रखो और सबकुछ सदा के शांत।

<p>Sanjay Sinha : मैने ये कहानी कब, कहां और कैसे पढ़ी है मुझे जरा भी याद नही। कहानी भी लगता है कुछ कुछ ही याद है। लेकिन जितनी कहानी याद है उससे मेरी आज की बात पूरी हो जाएगी। कहानी इस तरह है - एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में धोखा खाकर ज़िंदगी से निराश हो गया। उसे लगने लगा कि अब ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं, और मन ही मन तय कर लिया कि अब मर जाना चाहिए। उसने मरने की सबसे आसान विधा के बारे में पढ़ा और ये समझ पाया कि अगर पोटैशियम साइनाइड जैसा जहर कहीं से मिल जाए तो मौत बेहद आसान हो जाएगी। पोटैशियम साइनाइड मतलब जुबां पर रखो और सबकुछ सदा के शांत।</p>

Sanjay Sinha : मैने ये कहानी कब, कहां और कैसे पढ़ी है मुझे जरा भी याद नही। कहानी भी लगता है कुछ कुछ ही याद है। लेकिन जितनी कहानी याद है उससे मेरी आज की बात पूरी हो जाएगी। कहानी इस तरह है – एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में धोखा खाकर ज़िंदगी से निराश हो गया। उसे लगने लगा कि अब ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं, और मन ही मन तय कर लिया कि अब मर जाना चाहिए। उसने मरने की सबसे आसान विधा के बारे में पढ़ा और ये समझ पाया कि अगर पोटैशियम साइनाइड जैसा जहर कहीं से मिल जाए तो मौत बेहद आसान हो जाएगी। पोटैशियम साइनाइड मतलब जुबां पर रखो और सबकुछ सदा के शांत।

लड़के ने बहुत जगह ढूंढा लेकिन उसे कहीं पोटैशियम साइनाइड नहीं मिला। उसने बहुत सोचा और एक कॉलेज की केमेस्ट्री लैब में उसने नौकरी करनी शुरू कर दी। उसे पूरी उम्मीद थी कि यहां उसे साइनाइड नामक ज़हर मिल जाएगा।

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जब सारे बच्चे और स्टाफ घर चले जाते तो वो अक्सर लैब में साइनाइड ढूंढता। एकदिन उसने देखा कि सबके घर चले जाने के बाद भी एक लड़की उसी लैब में कुछ तलाश रही है। वो लड़की के पास गया और उसने उससे पूछा कि तुम इतनी देर लैब में क्या कर रही हो? पहले तो लड़की घबरा गई, फिर उसने बहुत हिम्मत करके उसे बताया कि वो यहां साइनाइड की तलाश कर रही है।

लड़का बहुत हैरान हुआ। उसने पूछा कि तुम साइनाइड का क्या करोगी?

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लड़की ने कहा कि वो किसी के प्रेम में धोखा खा चुकी है, और अब उसे जीने की इच्छा नहीं रही। मरने के लिए सबसे आसान तरीका उसने जो ढूंढा है, वो साइनाइड जहर ही है।

लड़के ने कहा कि ये भी खूब रही। उसने आगे बताया कि वो भी साइनाइड ही ढूंढ रहा है। उसे भी प्रेम में धोखा मिला है, और वो भी जीना नहीं चाहता।

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दोनों की कहानी एक जैसी थी। दोनों ने तय कर लिया कि अब दोनों मिल कर मरने के लिए इस ज़हर को ढूंढेंगे। दोनों हर शाम अकेले उस लैब में रुक कर साइनाइड ढूंढते। कई दिन बीत गए। धीरे-धीरे साइनाइड ढूंढते-ढूंढते उनमें आपस में प्यार हो गया। और फिर एक दिन दोनों ने मरने का कार्यक्रम कैंसिल कर आपस में विवाह कर लिया।

इस तरह सूंढ़ और पूंछ का मिलन हुआ और दोनों के मिलन से बना हाथी।

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यही है रिश्तों का फलसफा। अगर हर आदमी मिल कर, एक दूसरे का साथ देते हुए किसी काम को अंजाम देता है तो उसकी ताकत से जिसका जन्म होता है वो हाथी होता है। मतलब एकता की थोड़ी सी ताकत भी हाथी जितनी शक्ति को जन्म दे सकती है। मैं चाहता हूं कि 15 अगस्त का मौका देख कर आज इस कहानी को राजनीति के अखाड़े में कूदा दूं, अपने और अपने पड़ोसी देश, दोनों को ये संदेश दे दूं हूं कि तुम भी साइनाइड ही ढूंढ रहे हो, हम भी साइनाइड ही ढूंढ रहे हैं, तुम उस साइनाइड को हमें मिटाने के लिए ढूंढ रहे हो, हम उस साइनाइड तो तुम्हें मिटाने के लिए ढूंढ रहे हैं, तो क्यों नहीं हम आपस में मिल जाएं और नफरत की साइनाइड को रिश्तों के अमृत में बदल दें।

बहुत साल हो गए। करीब 68 साल हो गए हैं। हमें अपनी ताकत दिखाते, तुम्हें अपनी ताकत दिखाते। अब और कितनी ताकत देखेंगे और दिखाएंगे?

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68 साल बहुत होते हैं, नफरत की लकीर के मिट जाने के लिए, कई पीढ़ियों के मिट जाने के लिए। आओ हम दोनों मिल कर एक हो जाएं, और पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी की दीवार जैसे तोड़ दी गई, नफरत की साइनाइड जैसे अमृत रस में बदल गया वैसे ही हम भी एक दूसरे को गले लगा लें। हमें तुमसे मिलने के लिए अटारी की सीमा पर सैनिकों के बूट की आवाज़ की जगह तुम्हारी खिलखिलाहट सुनाई पड़नी चाहिए, और तुम्हें हमारी खिलखिलाहट।

मैं संजय सिन्हा, मैंने दिल्ली में चांदनी चौक पर कराची का हलवा खाया है, मैं संजय सिन्हा, अब कराची आकर वहां का हलवा सीधे खाना चाहता हूं। तुम्हें भी चांदनी चौक में पराठे वाली गली के पराठे के स्वाद याद होंगे, तुम भी आओ पराठे के साथ दही खाओ हमारे साथ।

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छोड़ो भी अब उस बात को, किसने किसे धोखा दिया। हम प्यार में धोखा खा कर मरने मारने पर उतारू थे, तुम भी प्यार में धोखा खाकर ही मरने मारने पर उतारू थे।

अब भूलो उस बात को। जैसे साइनाइड ढूंढता वो लड़का मरना भूल गया, जैसे साइनाइड ढूंढती वो लड़की भी मरना भूल गई।

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आओ मिल कर हम हाथी बनें। दुनिया को दिखा दें कि हमने भी जर्मनी की दीवार की तरह अपनी कंटीली तारों को उखाड़ फेंका है। हम अब बकरी नहीं रहे। हम मिल कर हाथी बन गए हैं। ऐसा मुमकिन हुआ है, सूंढ़ और पूंछ के मिलन से।
आओ, सोचो, करो। क्या पता मेरी ये कल्पना हकीकत में ही तब्दील हो जाए।

क्या पता तुम्हारे घर के आपसी रिश्तों में भी कहीं कड़ावाहट हो तो भी खत्म हो जाए।

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सुनो। दुनिया का हर कारोबारी अपने ‘बिल बुक’ पर लिखता है, भूल-चूक लेनी देनी माफ हो।

आज हम सब अपने रिश्तों के ‘दिल बुक’ पर लिख देते हैं, भूल-चूक लेनी देनी माफ हो। और इस माफीनामे को आकार दें रिश्तों की ‘सूंढ़ और पूंछ’ को मिला कर एक ताकतवर ‘हाथी’ की कल्पना को साकार करके।

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टीवी टुडे ग्रुप में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार संजय सिन्हा के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. सिकंदर हयात

    August 16, 2014 at 5:12 am

    सिन्हा जी भारत पाक महासंघ बनाना हे तो पूरी ताकत से हिन्दू मुस्लिम एकता में जुटिये जितनी अधिक भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता होगी उतनी ही अधिक कमजोरी पाक के भारत विरोधी तत्वों में आएगी यकीं मानिये मेने इस विषय का बहुत गहन अध्ध्य्यन किया हुआ हे

  2. Shyam Singh Rawat

    August 16, 2014 at 10:23 am

    संजय जी,
    काश, आपकी यह कल्पना हकीकत में तब्दील हो पाती। आपको शायद मालूम होगा कि एक अमेरिकी विज्ञान लेखक की कोरी कल्पना पर आधारित उपन्यास ने सोवियत संघ के सोयूज-19 तथा अमेरिका के अपोलो-CSM-111अंतरिक्ष यानों का 17 जुलाइ, 1975 के दिन अंतरिक्ष में मिलन संभव हो पाया था। ठीक इसी तरह की कहानी आपने भी लिखी है। धीरज रखिये वह सुबह कभी तो आयेगी।

  3. Ravish kumar

    September 18, 2018 at 6:21 pm

    Behtar hoga ki aap congress me chale jaye wahi apko secular k chamche ‘kathmulle’ milenge or apki daal b waha gal jayegi… Jo 18 baar attack kr sakta hai hamare upar.. Jo paida hi dusre dharm ko mitane k liye hota hai us se gale milne ka sirf or sirf 1 hi matlab hota hai apne desh dharm ki ma chodna… Isme koi shanka nahi ki is desh me jaychand paida hote rahe hai, vartman me hi aap dekh le digvijay & pappu’s company aur ab siddhu…. 1 aur badh jane se koi fark nahi padega congress ka dwar aap jaise logo k liye hamesha khula rahta hai
    Jai hind jay bharat

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