आमतौर पर अखबारों-चैनलों में छंटनी के मुद्दे पर सारे ट्रेड यूनियन वाले चुप रहते हैं क्योंकि वे बोलेंगे तो हो सकता है उनकी भविष्य की बोलती फिर कभी चैनलों-अखबारों ने न दिखे न छपे. पर कुछ लोग जीवट होते हैं. वे डरते नहीं. सच को सच कहने से हिचकते नहीं. जेएन तिवारी भी इसी श्रेणी के शख्स हैं. उन्होंने पत्रकारों को नौकरी से निकाले जाने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है.
शासन द्वारा मान्यता प्राप्त राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने हिंदुस्तान अखबार में भयंकर छंटनी की आलोचना करने का रिस्क उठाया है. उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हिंदुस्तान अखबार में छंटनी का उल्लेख करते हुए इस मामले में दखल देने और पत्रकारों को न्याय दिलाने की मांग की है.
जेएन तिवारी ने योगी को भेजे पत्र की एक कापी भड़ास के पास भी मेल की है जिसे नीचे दिया जा रहा है-
दिनांक 6 सितंबर 2020
सेवा में
माननीय मुख्यमंत्री जी उत्तर प्रदेश
विषय:- लखनऊ से प्रकाशित होने वाले हिंदी समाचार पत्र “हिंदुस्तान”के कर्मचारियों की छटनी किए जाने के संबंध में।
पूज्यवर,
कृपया उपरोक्त विषयक संदर्भ में संज्ञान में आया है कि लखनऊ से प्रकाशित होने वाले हिंदी समाचार पत्र “हिंदुस्तान” में काम करने वाले कर्मचारियों की व्यापक स्तर पर छटनी का कार्यक्रम चल रहा है। ज्ञात हुआ है कि हिंदी अखबार के संपादकीय, रिपोर्टिंग, बिजनेस, एडवरटाइजिंग, मैट्रिमोनियल एवं अन्य विभागों में कार्यरत 46 से भी अधिक कर्मचारी विगत 1 सप्ताह के अंदर बिना किसी नोटिस के निकाले जा चुके हैं। निकाले गए कर्मचारी वर्षों से अखबार की सेवा कर रहे थे।
यह उम्रदराज कर्मचारी भी हैं। 50-52 वर्ष के कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने के कारण इन कर्मचारी के सामने सर्वाइवल की समस्या खड़ी हो गई है ।
सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों को निकाले जाने का कारण कोविड-19 के कारण अखबार का सरकुलेशन कम होना एवं खर्चे बढ़ जाना बताया जा रहा है।
यह प्रकरण अत्यंत ही संवेदनशील है। पत्रकारिता क्षेत्र को अपना व्यवसाय बनाने वाले व्यक्ति धन अर्जित करने के लिए नौकरी नहीं करते हैं बल्कि वह समाज में जागरूकता लाने एवं शासन तथा जनता के बीच समन्वय स्थापित करते हुए सामाजिक समरसता के लिए काम करते हैं। समाचार पत्रों के कर्मचारी अपने व्यवसाय के प्रति पूरे निष्ठावान एवं ईमानदार होते हैं ।उनके जोखिम भरे कार्यों उत्तरदायित्व एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को देखते हुए कर्मचारियों को वेतन भी बहुत मामूली ही मिलता है। rs 10000 से ₹15000 तक का वेतन पानी वाला रिपोर्टर आर्थिक संपन्नता के लिए अखबार की नौकरी नहीं करता है बल्कि वह अपना पूरा टैलेंट, अपनी प्रतिभा अखबार के माध्यम से समाज तक पहुंचाने में लगा देता है। रिपोर्टर के लिए काम करने का कोई घंटा निर्धारित नहीं है। इतना कम वेतन पर काम करने वाला रिपोर्टर का उत्तरदायित्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों एवं बड़े-बड़े राजनेताओं के विकास योजनाओं के संबंध में साक्षात्कार लेकर अखबार के माध्यम से जनता तक पहुंचाना होता है, जिससे अखबार की टीआरपी बढ़ती है।
कई बार रिपोर्टिंग के दौरान कर्मचारियों पर जानलेवा हमले भी हो जाते हैं। विगत दिनों में कई अखबार कर्मी हमलों के शिकार हो चुके हैं। हमलो में शिकार हुए पत्रकारों के इलाज अथवा उनकी मृत्यु हो जाने पर उनके परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी अखबार नहीं उठाता है बल्कि पत्रकार के परिवार को जीवन यापन के लिए एकमुश्त धनराशि सरकार मुहैया कराती है एवं संसाधनों की व्यवस्था भी करती है। सरकार पत्रकारों के लिए सरकारी आवास की व्यवस्था करती है, उनको अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था करती है। ऐसे में इनकी नौकरी में अगर कोई व्यवधान उत्पन्न होता है तो उसमें हस्तक्षेप करना भी सरकार का दायित्व बनता है ।
अवगत करना है कि समाचार पत्र के प्रबंधन ने जिन कर्मियों को निकाला है उनको बिना किसी नोटिस के निकाला गया है। नियमत: उन्हें उन्हें 3 माह की नोटिस देने के बाद ही निकाले जाने की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।
“हिंदुस्तान”अखबार लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है और यह केवल अखबार ना होकर “इवेंट मैनेजर” का भी कार्य करता है। अखबार की जो इनकम दिखाई जाती है उसमे इवेंट मैनेजर की भूमिका में जो कार्य किया जाता है एवं उससे जो आय होती है, उसे दर्शाया ही नहीं जाता है।अखबार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार करोड़ों का विज्ञापन दे रही है। कोविड-19 संकटकाल में अखबार का विज्ञापन कहीं से कम नहीं किया गया है। सरकार ने यह भी घोषणा किया है कि कोविड-19 के दौरान किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला जाएगा, सब की रोजी-रोटी सुरक्षित रहेगी।ऐसे में हिंदुस्तान अखबार में 46 से भी अधिक कर्मचारियों के छटनी किए जाने का क्या औचित्य है?
यह संज्ञान में आ रहा है कि इसी तरह की कार्यवाही लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अन्य प्रतिष्ठित अखबारों में भी संभावित है। छटनी के माध्यम से निकाले गए पत्रकार आज रोजी रोटी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उम्रदराज हो जाने के कारण वह पत्रकारिता से अलग हटकर कोई अन्य कार्य भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता के क्षेत्र में ही खपा दिया है।
अनुरोध है कि कृपया हिंदुस्तान अखबार से निकाले गए उन सभी कर्मियों को जो बिना किसी नोटिस के, नियमों का अनुपालन किए बगैर प्रबंधन की मनमर्जी से निकाल दिए गए हैं, उन्हें वापस कार्य पर लिए जाने के संदर्भ में सरकार पहल करे।
सरकार अखबार को विज्ञापन के लिए धन उपलब्ध कराती है तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अखबार में कार्य करने वाले कर्मचारियों के बारे में विचार भी करे एवं कर्मचारियों के संदर्भ में श्रम नियमों का अनुपालन भी सुनिश्चित कराए। कोविड-19 संकटकाल में अखबारों के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर खबरों का आकलन कर रहे हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं, कोविड-19 के नियंत्रण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को अखबार के माध्यम से जनता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।
यदि समाचार पत्र में कार्य करने वाले कर्मियों की कमी हो जाएगी तो शहर से लेकर गांव के कोने-कोने तक सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार का कार्य भी धीमा पड़ जाएगा क्योंकि वह पत्रकार ही है जो खबरों की तह तक पहुंचकर, कोने कोने से खबरें निकालकर सरकार की योजनाओं को क्रियान्वित कराने , उन पर निगरानी रखने के सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रहा है।
मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि कृपया हिंदी समाचार “हिंदुस्तान” के प्रबंधन को निर्देशित करने की कृपा करें कि कोविड-19 संकट काल के दौरान बिना वैधानिक नोटिस दिए निकाले गए सभी कर्मियों को वापस नौकरी पर लेने की कार्यवाही तत्काल सुनिश्चित करें।
मैं आपका आभारी रहूंगा।
भवदीय
जे एन तिवारी
अध्यक्ष
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश
प्रतिलिपि निम्नलिखित को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित
१- मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ
२- अपर मुख्य सूचना उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ
३- भारतीय प्रेस परिषद नई दिल्ली।
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