Sanjaya Kumar Singh
भक्ति रिपोर्टिंग का शानदार नमूना है यह खबर…. एक शिक्षिका ने कह दिया कि बनवास भोगने के लिए थोड़े लिखकर दिया है तो मुख्यमंत्री भड़क गए। शिक्षिका के साथ मुख्यमंत्री के इस तानाशाही पूर्ण व्यवहार की हर ओर निन्दा हो रही है। पर हिंदुस्तान अखबार, देहरादून के एक भक्त पत्रकार ने मुख्यमंत्री के पक्ष में भी खबर लिखी है। उन्हें दिक्कत यह है कि जनप्रतिनिधियों के साथ अभद्रता के मामले पहले भी हुए हैं। पूर्व में सरकारें ऐसे मामलों की अनदेखी करती आई हैं। इसलिए हालात गंभीर होते जा रहे हैं।
शिक्षक संगठनों ने मुख्यमंत्री के साथ अमर्यादित व्यवहार का समर्थन नहीं किया। पर मामला यह है कि शिक्षक संगठनों की औकात होती तो मुख्यमंत्री शिक्षिका के साथ सार्वजनिक रूप से ऐसा व्यवहार कर पाते। यही नहीं, शिक्षिका को मुख्यमंत्री के दरबार में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। शिक्षक संगठनों की ही नालायकी है कि मुख्यमंत्री की पत्नी खुद वर्षों से राजधानी में तैनात हैं और दूसरी शिक्षिका के साथ यह सलूक। पर खबर लिखने वाले (मुख्य) संवाददाता को इसकी खबर ही नहीं है।
यही नहीं, जब कोई महिला कह रही है कि वह पति के निधन के बाद अपने बच्चों को अनाथ छोड़कर तैनाती की जगह पर नहीं जा सकती है तो इसका मतलब यही है कि वह वहां नहीं है। आप चाहें तो इसका मतलब लगा सकते हैं कि वह छुट्टी लेकर जनता दरबार में अपनी बात रखने आई होगी पर अगर कोई भारतीय समाज में किसी महिला के पति की मौत और मुश्किल जगह पर तैनाती के साथ बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ने जैसी बातों का मतलब समझता है तो वह यही होगा कि ऐसी महिला नौकरी नहीं कर पाएगी और उसकी चिन्ता यही होगी कि वह नौकरी करे और तनख्वाह मिले।
छुट्टी खत्म होने के बाद अगर कोई लंबे समय तक नौकरी पर नहीं जाएगा तो उसे वेतन नहीं मिलेगा और यह शिकायत का भाग ही है। अगर संवाददाता को यह बड़ी बात लग रही थी तो उसे लिखना चाहिए था कि शासन ने इस मामले में क्या किया है औऱ क्या कार्रवाई की है। अगर कोई ड्यूटी पर नहीं आ रहा है, वेतन नहीं ले रहा है और उससे पूछा नहीं जा रहा है तो खबर सारी बातों की बनेगी या सिर्फ गैरहाजिर होने की? अफसोस यह कि खबर किसी लल्लू संवाददता की नहीं बल्कि मुख्य संवादादाता की है। शर्मनाक। पता नहीं रिपोर्टर किस दुनिया में जीता है।
इस मामले का वीडियो देखना चाहें तो ये रहा….
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
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