डिजिटल इंडिया या भूखा इंडिया : आधार के निराधार फरमान से दम तोड़ता भूखा हुआ झारखंड
विशद कुमार, रांची
सिमडेगा की 11 वर्षीय बच्ची संतोषी की भूख से हुई मौत पर हंगामा अभी थमा भी नहीं है कि राज्य के धनबाद जिले का कोयलांचल क्षेत्र का झरिया में एक 40 वर्षीय रिक्शा चालक की मौत ने रघुवर सरकार के आधार के निराधार फरमान की हवा निकाल दी है। उल्लेखनीय है कि सिमडेगा जिला अन्तर्गत जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गांव की कोयली देवी की 11 वर्षीय बेटी संतोषी कुमारी की मौत भात—भात रटते रटते हो गई थी। उसे कई दिनों से खाना नहीं मिल पाया था और उसके परिवार का राशन कार्ड इसलिए रद्द हो गया था कि राज्य की रघुवर सरकार द्वारा साढ़े 11 लाख अवैध राशन कार्ड रद्द कर दिए गए, जिसमें से एक राशन कार्ड कोयली देवी का भी था। ठीक उसी तरह झरिया के बैद्यनाथ दास के घर में भी कई दिनों से अनाज का एक दाना नहीं था क्योंकि बैद्यनाथ दास का गरीबी रेखा से नाम हट गया था और राशन कार्ड भी रद्द हो गया था।
वह भाड़े का रिक्शा चलाता था मगर आटो रिक्शा की भरमार के कारण उसे सवारियां कम मिल पाती थीं। किसी किसी दिन फांका भी हो जाया करता था। ऐसे में वह काफी कमजोर हो चुका था। इसी फांकाकसी ने उसे इतना कमजोर कर दिया था कि कई दिनों से बिस्तर पड़ा था। इस तरह अंतत: बैद्यनाथ दास ने दम तोड़ दिया। बताते चलें कि पिछले 27 मार्च को राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने वीडियो कांफ्रेन्सिन्ग के माध्यम से राज्य के तमाम पदाधिकारियों को कड़ा निर्देश दिया था कि जिन जिन राशन कार्डों में आधार नंबर का जिक्र ना हो उन्हें रद्द कर दिया जाय। उन्होंने भारत सरकार की अधिसूचना का हवाला देते हुए तीन के अंदर बिना आधार नंबर वाले राशन कार्डों को रद्द करने का निर्देश दिया था। 29 मार्च को मुख्य सचिव के निर्देशों से संबंधित प त्र भी जारी किया गया था। जिसका अनुपालन करते हुए राज्य के साढ़े 11 लाख राशन कार्ड रद्द कर दिए गए। बैद्यनाथ दास भी राज्य के उन्हीं साढ़े 11 लाख अभागा राशन कार्डधारियों में से एक था जिनका राशन कार्ड ‘आधार के निराधार फरमान’ की बलिवेदी शहीद हो गया है।
बता दें कि बैद्यनाथ दास भाड़े पर रिक्शा चला कर परिवार के सात सदस्यों सहित अपना पेट पालता था। अपना राशन कार्ड बनवाने के लिए कई महिनों से सरकारी कार्यालयों एवं पार्षद के यहां चक्कर लगा रहा था। आन लाइन आवेदन भी दिया था मगर उसका आवेदन स्वीकृत नहीं हुआ था। वैसे उसके बड़े भाई जागो दास का नाम बीपीएल सूची में दर्ज था अत: बीपीएल कार्ड के आधार पर उन्हें सरकारी राशन मिल जाया करता था, मगर बड़े भाई की मौत के बाद बीपीएल सूची से उसका नाम हट गया जिसे अपने नाम पर चढ़वाने की काफी जद्दोजहद के बाद भी बैद्यनाथ का नाम बीपीएल सूची में दर्ज नहीं हो सका।
तीन बेटियां और दो बेटों सहित पत्नी व उसकी रोटी का सहारा मात्र भाड़े का रिक्शा ही था। वह भी इस रफ्तार की दुनिया में टिक इसलिए नहीं पा रहा था कि लोग कम समय में अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिये आटो रिक्शा को ज्यादा महत्व देते थे। दो नाबालिग बेटों व दो नबालिग बेटियों सहित जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी बड़ी बेटी की चिन्ता भी उसे मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर कर चुकी थी। अंतत: पेट की भूख ने उसकी जान ले ली।
इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के लिये इससे ज्यादा भद्दा मज़ाक और क्या हो सकता है कि भूख से मरने के बाद मरने वाले के घर भोजन की व्यवस्था की सारी औपचारिकताएं पूरी करने की कबायद शुरू होने लग जाती है, दूसरी तरफ मरने वाले के परिवार वालों पर ऐसे एहसानों के साथ यह दबाव बनाया जाता है कि वे बयान दे कि मौत भूख से नहीं बीमारी से हुई है। जैसा कि सिमडेगा की संतोषी की मां कोयली देवी के साथ हो रहा है। वही प्रक्रिया बैद्यनाथ के परिजनों के साथ भी दोहरायी जा रही है। थोड़ी देर के लिए हम मान भी लें कि ऐसी मौतें भूख से नहीं बीमारी से होती हैं तो यह भी साफ दिखता है कि ऐसी बीमारी भी कुपोषण के कारण ही होतीं हैं। तो क्या कुपोषण भूख से अलग कोई प्रक्रिया है? इस बड़े सवाल पर शासन या प्रशासन का क्या जवाब है, वह बताएगा?
कहां है ‘जनता के लिए जनता द्वारा जनता का शासन’?
अजीब इत्तेफाक है कि सिमडेगा झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 150 कि0मी0 दूर है तो धनबाद का झरिया भी राजधानी रांची से लगभग वही दूरी तय करता है।
मजे की बात तो यह है कि संतोषी की मौत को जलडेगा प्रखंड का बीडीओ और सिमडेगा का जिलाधिकारी ने मलेरिया से मौत बताया है वहीं कारीमाटी गांव की एएनएम माला देवी ने साफ दावा किया है कि संतोषी को उसने देखा था उसे कोई बीमारी नहीं थी अलबत्ता उसके घर में खाना नहीं था और भूख से ही उसकी मौत हुई है। बता दे कि सच बोलने के पुरस्कार स्वरूप माला देवी को निलंबित कर दिया गया है। ठीक उसी तरह बैद्यनाथ की मौत को भी जिला प्रशासन बीमारी से ही मौत बता रहा है जबकि पास पड़ोस के लोगों का मानना है कि आर्थिक अभाव के कारण ही उसकी मौत भूख से हुई है।
उल्लेखनीय है कि रघुवर की सरकार अव्यवहारिक नीतियों का ही खामियाजा राज्य की गरीब, दलित, पीड़ित,आदिवासी जनता ही भुगत रही है। क्योंकि जो अवैध राशन कार्ड धारी थे उनकी सेहत पर सरकार की उक्त नीति का कोई असर नहीं पड़ा है, इससे संबंधित खबरें स्थानीय अखबारों में टूकड़े टूकड़े में आती रही हैं कि नेटवर्क नहीं रहने एवं आधार से लिंक नहीं होने के कारण अमुक गांव में उपभोक्ताओं को राशन नहीं मिल पा रहा है, यह कि फलां गांव के कई गरीब, दलित, आदिवासी परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया है, जिसे सरकारी स्तर से कोई तरजीह नहीं दी गई।
कहना ना होगा कि प्रशानिक लापरवाही एवं सरकारी अड़ियलपन का ही नतिजा है संतोषी कुमारी एवं बैद्यनाथ दास की मौत। इस तरह की मौतें रोज व रोज हो रही हैं, जो किन्हीं भी सूत्रों द्वारा सुर्खियों में आ गई तो उसे हम जान पाते हैं वर्ना ऐसे प्रभावित लोगों का दर्द उन्हीं तक सिमट कर रह जाता है। दिल को झकझोर देने वाली इन घटनाओं से जेहन में कई सवालों में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या सच में इंसानियत मर गई है। पीड़ित परिवारों का सरकारी राशन कार्ड सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह आधार से लिंक नहीं था।
उल्लेखनीय है कि झारखंड देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है, यहां गरीब परिवारों को प्रत्येक राशन कार्ड के बदले 35 किलोग्राम चावल देने का प्रावधान है। सरकार द्वारा आधार की अनिवार्यता पर मजदूर संगठन समिति के महासचिव बच्चा सिंह कहते हैं कि ‘लोकतंत्र के इन पुजारियों का यह कौन सा लोकतंत्र है कि वे न्यायपालिका तक के आदेश की अवहेलना करने में पीछे नहीं हैं।‘ वे बताते हैं कि- ‘सरकार द्वारा 2013 के बाद से जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार संख्या का अधिकार अनिवार्य नहीं किया जा सकता। विशेषकर सब्सिडी वाले अनाज खरीदने के लिए।‘
बच्चा सिंह बताते हैं कि – ‘भले ही लोगों के पास आधार कार्ड हों बावजूद अधिकारी उनके राशन कार्ड से लिंक करने में सक्षम नहीं हैं। क्योंकि इंटरनेट नेटवर्क अक्सर ख़राब रहता है, सर्वर काम नहीं करता है, तकनीकी ऑपरेटर अनुपस्थित रहते हैं, पोर्टल कुछ दिनों के बाद काम करना बंद कर देता है।’ वो कहते हैं कि — ‘राज्य में सार्वजनिक वितरण योजना के लाभार्थियों को इसलिए हटा दिया गया है क्योंकि राज्य सरकार को लक्ष्य हासिल करने की जल्दबाजी है।’
7 सितंबर को एक संवाददाता सम्मेलन में, खाद्य और नागरिक आपूर्ति के राज्य सचिव विनय चौबे ने घोषणा की थी कि झारखंड ने राशन कार्ड के साथ 100% आधार सीडिंग हासिल की है। इस प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने दावा किया था कि 11.6 लाख लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली सूची से हटा दिया गया है क्योंकि वे नकली या नकली राशन कार्ड रखे हुए थे। दूसरी तरफ 2.3 करोड़ झारखंड के नागरिक जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आते हैं, में सरकार के खुद के ऑनलाइन उपलब्ध आंकड़े दिखाते हैं कि केवल 1.7 करोड़ लोगों ने आधार संख्या में वरीयता दी है। तो फिर सवाल उठता है कि आधार के नहीं रहने से उपभेक्ताओं का राशन कार्ड क्यों रद्द हुआ? जाहिर है इस तरह की संवेदनहीनता की वजह प्रशासनिक अकर्मण्यता एवं लापरवाही है।
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