महिला मीडियाकर्मी का यह इस्तीफानामा दैनिक भास्कर के पाखंड को तार-तार करता है… आप भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़वाएं….
दिनांक: 26/10/
सेवा में
सुश्री अक्षता करंगुटकर
एजीएम- एचआर एंड एडमिन
दैनिक भास्कर (डी. बी. कॅार्प लि.)
मुंबई- 400051
विषय : इस्तीफानामा
महोदया,
मुझे विश्वास है कि आज पहली बार मेरे इस पत्र का विषय पढ़ कर आपको दिली खुशी मिली होगी… मिलनी भी चाहिए, क्योंकि अब कंपनी में आप खुद का नंबर बढ़वाने में सफल जो हो जाएंगी… बधाई! जी हां मैडम, मैं आपको बधाई ही दे सकती हूं… शुभकामनाएं तो कतई नहीं। इसका कारण बड़ा स्पष्ट है… आपके मनगढ़ंत-झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोपों के चलते मुझे ट्रांसफर के अपने मुकदमे में इंडस्ट्रियल कोर्ट से भले ही पराजय का सामना करना पड़ा हो, किंतु मैं जानती हूं कि ऊपरवाला हमारे साथ है और वह आप जैसे फर्जी लोगों को सबक जरूर सिखाएगा!
मुझे पता है कि आप तो मेरा ट्रांसफर तभी कर देने वाली थीं, जब मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक, अपने वेतन व बकाए को लेकर क्लेम करने वाले हमारे दो सहयोगियों- श्री धर्मेन्द्र प्रताप सिंह (प्रिंसिपल करेस्पॅान्डेंट- एंटरटेनमेंट) और सुश्री लतिका आत्माराम चव्हाण (रिसेप्शनिस्ट) का आपने / संस्थान ने तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर कर दिया था। लेकिन चूंकि उन दोनों ने आपके तुगलकी फरमान के विरोध में अदालत की शरण ले ली थी, इसलिए उनके केस को कमजोर करने के लिए तब मेरे ट्रांसफर के मामले को आपने ‘प्रतीक्षा’ की सूची में डाल दिया था। आगे चलकर श्री सिंह और सुश्री चव्हाण ने अदालत में जब यह कहा कि उनका ट्रांसफर केवल मजीठिया क्लेम करने की वजह से किया जा रहा है, तब आपकी ओर से यही तर्क दिया गया था कि क्लेम तो आलिया (मैं) ने भी किया है, मगर उनका तो ट्रांसफर नहीं किया गया है। अब जबकि मैं आपकी उक्त केस के लिए आवश्यक नहीं रही तो आपने वही किया, जो अक्टूबर, 2016 में मेरे साथ मजबूरीवश नहीं कर पाई थीं !
मेरे इन कथनों की भी ठोस वजह है… यूं तो आप लोग दावा करते हैं कि हम देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय अखबार में काम कर रहे हैं, परंतु इस अखबार की हकीकत यह है कि इस संस्थान में बतौर रिसेप्शनिस्ट 6 वर्ष से अधिक समय से काम करने के बावजूद मेरे हाथ में आने वाला वेतन अब भी 14,000/- का आंकड़ा छू नहीं पाया है ! जहां तक विश्वसनीय अखबार होने की बात है, इसकी विश्वसनीयता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि हमारे जिस समूह संपादक (श्री कल्पेश याग्निक) की मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया और ‘दैनिक भास्कर’ ने इस खबर को अपने अधिकतम संस्करणों के मुख्य पृष्ठ पर जगह दी, वह असल में आत्महत्या थी !! आश्चर्य की बात है कि श्री याग्निक ने इंदौर स्थित ‘दैनिक भास्कर’ के दफ्तर से ही कूद कर आत्महत्या की, फिर भी अखबार ने न जाने क्यूं, सच्चाई को छिपाते हुए आनन-फानन में उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बता दिया !!!
एक बात और… आप लोग खुद का उल्लू सीधा करने के लिए अक्सर हमें एक विशाल परिवार का सदस्य होने का झुनझुना दिखाते रहते हैं ! इसकी भी असलियत सुन लीजिए… श्री श्रवण गर्ग ने इंदौर के संस्करण सहित बाद के दिनों में ‘दैनिक भास्कर’ के तमाम संस्करणों को मजबूती प्रदान की और इसे देश का सबसे ज्यादा ‘बिकने वाला’ अखबार बना दिया… इसके परिणामस्वरूप संस्थान ने उन्हें समूह संपादक के सम्मानित पद से गौरवान्वित भी किया, बाद में उन्हें ही एक झटके से संस्थान के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जाहिर है कि संस्थान यदि हमें वाकई में अपने परिवार का सदस्य ही समझता तो परिवार के ‘बुजुर्ग’ के साथ इस तरह का अपमानजनक व्यवहार तो हरगिज नहीं किया जाता। क्या आपको पता है कि संस्थान के इस मतलबी फैसले का असर यह हुआ कि श्री गर्ग को उस ‘नई दुनिया’ में जाकर नौकरी करनी पड़ी, जिसे उन्होंने ‘दैनिक भास्कर’ (इंदौर) को स्थापित करने के लिए अपनी काबिलियत से कभी लगभग ‘बर्बाद’ कर दिया था !
श्री याग्निक के साथ तो और भी बुरा हुआ। अखबार ने पहले तो उनकी मृत्यु की वजह छिपाई (आत्महत्या का कारण शायद बताने लायक नहीं था), फिर हद यह कर दी कि देश के किसी भी दफ्तर में उनके नाम पर दो मिनट का शोक / मौन भी नहीं रखा गया… वाह रे हमारा परिवार और हमारे इस का परिवार का पारिवारिक दर्शन ! यह परिवार (डी बी कॅार्प लि) न तो भारत सरकार की अधिसूचना को मान्यता देता है और न ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करता है !! कुछ कर्मचारियों से जून, 2014 में तारीख डलवाए बिना एक कागज पर जबरन दस्तखत करवा लेता है कि वह हमें मजीठिया वेज बोर्ड द्वारा की गई सिफारिशों से भी ज्यादा सुविधाएं दे रहा है, परंतु यह पूर्णतया असत्य होता है… हैरानी है कि अदालत की कार्यवाही के दौरान वही कागज जब कर्मचारियों के समक्ष लाया जाता है, तब वह नवंबर, 2011 का निकलता है !
मैडम, आपने भले ही मेरी नौकरी छीन ली हो… यह नौकरी छीनना ही है, क्योंकि मैं अपने बूढ़े माता-पिता की इकलौती सहारा हूं और मुंबई में उन्हें बेसहारा छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाने की अपनी बात के ही कारण मुझे यह त्याग-पत्र देना पड़ रहा है। फिर भी मैं दुआ करूंगी कि आपकी गलतफहमी बरकरार रहे… आपको संस्थान आखिरी समय तक ‘बर्दाश्त’ करे, क्योंकि आप नहीं रहेंगी तो मजीठिया वेज बोर्ड का क्लेम लगाने वालों को प्रताड़ित करने का बीड़ा जो आपको सौंपा गया है, उसे अंजाम तक कौन पहुंचाएगा ? नौकरी लेने से कहीं बड़ा होता है नौकरी देने वाला… इसलिए अपनी कुर्सी को मजबूती से पकड़ कर रखिएगा, क्योंकि आपके अत्याचार से पीड़ित लोग आपको बद्दुआएं देने में कंजूसी नहीं करेंगे !
आखिर में इतना ही कहूंगी कि मजीठिया के मेरे क्लेम का मामला अभी विचाराधीन है। इसलिए मेरा यह त्याग-पत्र अविलंब स्वीकार करके मुझे संस्थान से मुक्ति दीजिए, साथ ही मेरा शेष बकाया (पीएफ व ग्रेच्युटी आदि) मुझे शीघ्र प्रदान किया जाए। इसके लिए जो भी औपचारिकता होगी, मैं उसे पूरा करने के लिए सहर्ष तैयार हूं ! जहां तक मजीठिया का प्रश्न है, अब मेरा फोकस इसी पर होगा तो अपने इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए मैं दोगुनी ऊर्जा से सक्रिय होऊंगी… इसके लिए मैं ‘दैनिक भास्कर’ के साथ-साथ आपको भी वचन देती हूं:
जब देखा है सपना तो पूरा भी हम करेंगे!
आ जाएं मुश्किलें जितनी भी; पीछे नहीं हटेंगे!
मिल जाए ना मंजिल जब तक, आगे हम बढ़ेंगे!
धन्यवाद सहित,
आलिया इम्तियाज़ शेख
रिसेप्शनिस्ट
एम्प्लाई कोड: 23230
दैनिक भास्कर (डी बी कॅार्प लि)
माहिम (प.), मुंबई- 16
ई-मेल: [email protected]
प्रतिलिपि:
(1) श्री गिरीश अग्रवाल
(2) सुश्री रचना कामरा