सरकारी उद्घाटन, जनता का पैसा और चुने हुए नेता जो फिर चुने जाने के लिए लार टपकाते रहते हैं मनमानी करने से भी नहीं चूकते। उद्घाटन जैसे कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जैसी हस्ती को नहीं बुलाने की बेशर्मी केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार ने ही शुरू की है। उनकी नजर में मजबूत सरकार का यही मतलब होता है। ठीक है कि गलत का जवाब गलत नहीं होता पर जैसे को तैसा के लिए तैयार रहना चाहिए।
नहीं बुलाने पर राजनीति करनी हो तो वो भी करना चाहिए। और इसमें मार-पीट, धक्का मुक्की के लिए तैयार रहना सामान्य बात है। मुझे लगता है मनोज तिवारी घोषणा करके गए थे और तैयार भी थे। दिल्ली पुलिस का भरोसा भी रहा होगा। भले उन्हें धक्का मारा गया पर वह गिराने के लिए कम उनकी इच्छा पूर्ति के लिए ज्यादा रहा। और फिर इतना भी नहीं होता तो मनोज तिवारी “जीत” जाते जो उनका उद्देश्य था।
आम आदमी पार्टी को उनके जीतने से भले फर्क पड़ता हो या नहीं, हारना कौन चाहेगा? इसलिए बाकी लोग चाहे जो कहें मुझे आम आदमी पार्टी से किसी शालीनता और भलमनसाहत की उम्मीद नहीं थी। इसलिए मुझे पार्टी के तौर पर आम आदमी पार्टी का व्यवहार शालीन और नियंत्रित ही लगा। बेशर्मी तो मीडिया ने दिखाई और अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट करके उसकी अच्छी खबर ली।
प्रेस कांफ्रेंस से भागने वालों को इसका मतलब नहीं समझ में आएगा और सरकारी विज्ञापन के दम पर मीडिया को नियंत्रित करने की खुशफहमी पालने वाले नहीं समझेंगे कि मीडिया को सीधे चुनौती देने के लिए कैसी ताकत चाहिए होती है। वह 56 ईंची के गुब्बारे में नहीं हो सकती। मन की बात करके भी नहीं समझी जा सकती। पर मीडिया की बेशर्मी भी जानने, समझने, देखने और थूकने लायक है।
सरकारी एजेंसियों के खुलेआम दुरुपयोग से जब बड़े-बड़े नेता और उनके दल राजनीतिक गठजोड़ करने से डरते दिख रहे हैं, अंतरात्मा की आवाज अलार्म लगाकर सुनते हैं तो केजरीवाल में जो है वह भी दिख रहा है। देखना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की टिप्पणी। संपर्क : [email protected]