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और अब बंद हो चुके ‘प्रयुक्ति’ अखबार के संपादक मुकुंद भी हुए बागी! पढ़ें उनकी भड़ास

Mukund Mitr : पत्रकारिता… जी हां। दुनिया का सबसे अच्छा करियर। मगर अधिकांश अखबारी घरानों और नए नवेलो ने इसे शोषण की कब्रगाह में तबदील कर दिया है। दोस्तों, मैं बहुत जल्द 80 के दशक से अब तक की पत्रकारिता पर बहुत जल्द यहीं पर लिखूंगा… बहीखाता…

यकीं मानिये मैंने जिन जिन अखबारो में काम किया है उनके सच्चे अनुभव और बाकी अन्य अखबारी साथियों की सुनाई गई व्यथा होगी। आप लोग सोच रहे होंगे यह सब इस वक़्त ही क्यों तो दोस्तो अब सिर से पानी गुज़र चूका है। और अब लग रहा है पत्रकारिता कलंकित हो रही है। अगर इस वक़्त भो आँख बंद रही तो आने वाली पीढियां माफ़ नहीं करेंगी।

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दोस्तों, लाल सलाम। चार दिन की जद्दोजहद के बाद आज हक़ और हुक़ूक़ के सिलसिले को प्रयुक्ति के मालिक श्री सम्पत ने बाँट दिया। और मुझे खुद को साथियों के नेतृत्व से अलग कर अपने हक़ और हुक़ूक़ को लेने का ऐलान करना पड़ा। बहुत ही बाते हुई। किन किन का पैसा मारा गया। पी एफ काटा गया। जमा नही कराया गया। बहुतों का पी एफ अब तक नहो दिया गया। मैच के दौरान की इनके दौरान की गई गाली गलौच का भी जिक्र किया गया। यही नही एक बार तो प्रयुक्ति से जा चुके एक साथी को ठिकाने लगाने का इंतजाम तक किया गया।

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कितनी बार भरोसा तोडा गया। और प्रकाशन स्थल बदलने पर भी प्रिंट लाइन में करोल बाग के पुराने पते को छापना। प्रिंटर्स बदलने पर भी पुराने प्रिंटर्स का उल्लेख करना। और मार्च में छपने वाले डिक्लरेशन में आवास का पता गलत छापना। और अब भी यह तुर्रा की जितने दिन का अख़बार नहीं छपा। उसे किसी भी तरह छपवा कर आरएनआई और डी ए वी पी में जमा करवा दिया जायेगा। यह याद दिलाने पर की यह अपराध है। भारत सरकार के नियमों का उल्लंघन है। पर वही गर्मी की यह बातें अभी ही क्यों याद आ रही हैं। घर का पता मांगने पर यह कहना कि वकील से नोटिस भिजवाइए तब दूँगा।

आर एन आई के नियमों को तोड़ने पर गिरफ्तारी का प्रावधान है। मगर कोई डर नहीं। और आखिर में यह कहा जाना की मैं इस्तीफा लिख दूँ। मना करने पर फुल एन्ड फाइनल का लेटर देकर दो चेक दिए गए। एक वेतन का है और एक ऐसे पी एएफ का जो काटा तो गया पर जमा नही किया गया। इनके चेक पर सवाल उठाये गए। क्योंकि बहुतों के चेक बाउंस हुए हैं। तो कहा गया मैं चेक नहीं लगाऊंगा। वो पैसा मेरे खाते में डाल देंगे। मैं तब चेक लौटा दूँगा। तो यह है आज का बहीखाता।

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प्रयुक्ति… यह है बड़ा सच… दोस्तों… 30 नवम्बर 2018 से प्रकाशन के स्थगन की लिखित घोषणा खुद मालिक सम्पत जी ने की है। और अख़बार कब से नहीं छप रहा यह जान लीजिए। 6 सितम्बर 2018 को सभी ने अपना जुलाई और अगस्त का वेतन माँगा तो लम्बी मीटिंग की। कामकाज नहीं हुआ। और 7 सितम्बर का अख़बार नहीं छपा। इस रोज काम हुआ और 8 सितम्बर से 17 सितम्बर तक अख़बार छपा।

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17 सितम्बर को प्रसार विभाग के वेतन मांगने और हंगामे के अंदेशे से सम्पत जी ने खुद काम बंद करा दिया। इसके बाद से अब तक यानी 18 सितंबर से अब तक नवम्बर 2018 तक अख़बार नहीं छपा। और ऑफिस डी 33 सेक्टर 2 नोएडा से इसी सेक्टर में डी 52 में शिफ्ट किया गया। यहाँ 8 अक्टूबर से काम शुरू हुआ। सिर्फ ई पेपर बना। क्वार्क पर पेज तैयार हुए। पर अख़बार नहीं छपा। इसके अलावा इस दौरान भी कई बार काम नहीं हुआ और न तो ई पेपर बना और न ही क्वार्क पर पेज बने। लिख दिया ताकि सनद रहे।

मुकुंद

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स्थानीय सम्पादक प्रयुक्ति

चेक क्लियर होने तक क्योंकि फुल एन्ड फाइनल का हिसाब किताब तो किया गया है पर 30 नवम्बर और 15 दिसम्बर का चेक दिया गया है।

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प्रयुक्ति अखबार के संपादक मुकुंद मित्र की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. Lavlesh Jha

    November 5, 2018 at 2:18 am

    सच तो यह है कि मुकुंद ने प्रयुक्ति को धोखा दिया है। इसके कई चरित्र हैं। एक जमाने में यह मालिक का सबसे बड़ा चमचा हुआ करता था। आज बागी हो रहा है। अपने साथियों को धोखा देना और अपनी बात से पलट जाना इसकी फितरत है। इसकी भड़ास इसलिए है, क्योंकि अब ये चुक गया है… यह दारू कुछ भी कह सकता है, लिख सकता है। इसकी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है।

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