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छत्तीसगढ़

बस्तर की बूटी से जर्मन कंपनी बनाएगी अल्जाइमर की दवा

बस्तर की रहस्यमयी बूटी से जर्मनी की कंपनी ऐसी दवा बनाएगी जिसे खाने के बाद आपका दिमाग आइंस्टाइन जैसा हो जाएगा। यानि, इसके बाद आप कभी कुछ भी जरूरी जानकारी नहीं भूलेंगे। हम जिन बूटियों की बात कर रहे हैं, इसका उपयोग लाइलाज बीमारी अल्जाइमर की दवा बनाने के लिए किया जाएगा। यह ऐसी बीमारी है, जिसमें इंसान उम्र बढऩे के साथ याददाश्त खोने लगता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों को इस बीमारी के निरोधक तत्व की खोज जिन जड़ी-बूटियों में की वह उन्हें बस्तर में मिली है।

बस्तर की रहस्यमयी बूटी से जर्मनी की कंपनी ऐसी दवा बनाएगी जिसे खाने के बाद आपका दिमाग आइंस्टाइन जैसा हो जाएगा। यानि, इसके बाद आप कभी कुछ भी जरूरी जानकारी नहीं भूलेंगे। हम जिन बूटियों की बात कर रहे हैं, इसका उपयोग लाइलाज बीमारी अल्जाइमर की दवा बनाने के लिए किया जाएगा। यह ऐसी बीमारी है, जिसमें इंसान उम्र बढऩे के साथ याददाश्त खोने लगता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों को इस बीमारी के निरोधक तत्व की खोज जिन जड़ी-बूटियों में की वह उन्हें बस्तर में मिली है।

एक वेबसाइट में इन जड़ी-बूटियों के बारे में जानने के बाद जर्मनी के एक्सीलेंस कम्पनी के वैज्ञानिक व मुख्य प्रबंध निदेशक डॉ गेरहार्ड, मुख्य सलाहकार निदेशक डॉ सीलविया व डॉ अमल मुखोपध्याय बस्तर पहुंचे थे। उन्होंने कोण्डागांव के मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म समूह के साथ जड़ी-बूटियों के लिए पांच साल का एमओयू किया है। समूह के संचालक राजाराम त्रिपाठी ने बताया, एक्सीलेंस कंपनी ने एक दर्जन जड़ी-बूटियों को जर्मनी भेजने एमओयू किया है। एमओयू के तहत वे इन हब्र्स का खुलासा नहीं कर सकते लेकिन इनसे अल्जाइमर रोग की दवा बनाई जाएगी। इनकी पहली खेप भेजने की तैयारी की जा रही है।

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वेबसाइट के जरिए हुआ संपर्क

त्रिपाठी ने बताया, जर्मन की एक्सीलेंस स्वास्थ्य कंपनी ने वेबसाइट से जरिए उनसे संपर्क किया था। यहां पहुंचे कंपनी के अधिकारियों ने बताया, उन्होंने जब नेट पर इससे संबंधित जड़ी-बूटियों की खोज की थी उन्हें मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म सबसे उपयुक्त लगी। इसके बाद उन्होंने यहां आकर पूरे फार्म का निरीक्षण करने के साथ हब्र्स की क्वालिटी देखी। पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद उन्होंने एमओयू किया है।

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बीस साल से उगा रहे 72 किस्म की जड़ी-बूटी

डॉ त्रिपाठी ने बताया, उनका समूह बीस साल से करीब 72 किस्म के जड़ीबूटी उगाता है। इसमें सफेद मूसली, स्टीविया या मीठी तुलसी, गुगल समेत अन्य हब्र्स शामिल है। 1999 में स्थापित यह फार्म देश का पहला अतंराष्ट्रीय जैविक फार्म है। 2001 में इस फार्म ने अपना वेबसाइट लांच किया था जिसे भारत के पहले किसान वेबसाइट फार्म का दर्जा मिला था।

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