: संदर्भ – राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा : दूसरे अन्य दौरों की तरह ही कांग्रेस के युवराज तथा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ दौरे ने भी खासी सुर्खियां बटोरी। पार्टी के रॉक स्टार बन चुके युवराज राहुल गांधी के दौरे का मकसद साफ था कि वे यहां उन आदिवासियों की व्यथा-कथा जानने पहुंचे थे जो जल, जंगल, जमीन, आजीविका और अपनी संस्कृति बचाने के लिए सालों से उस औद्योगिक-माफिया से लड़ रहे हैं जिसकी गिद्धदृष्टि लगभग 30 हजार हेक्टेयर में फैली कोयला और बाक्साइट जैसी प्राकृतिक संपदा है और जिसे वह कोल आबंटन जैसी सरकारी प्रक्रिया का ठप्पा लगवाकर आराम से लीलना चाहते हैं।
किसानों, गरीबों और आदिवासियों के नए मसीहा के तौर पर उभरे राहुल ने दो दिनों तक छत्तीसगढ़ के मदनपुर, कोरबा, जांजगीर में जनसभाएं ली, रोड शो किए तथा आदिवासियों से रूबरू होते हुए दोहराया और विश्वास दिलाया कि वे उनकी आवाज बनकर उभरेंगे। राहुल गांधी ने सबसे पहले मदनपुर में केन्द्र और राज्य सरकार को निशाने पर लिया और आरोप लगाया कि वह चंद उद्योगपतियों के हाथों का खिलौना बन चुकी है और आदिवासियों की जमीनें तथा प्राकृतिक संपदा को इनके हाथों बेच रही है लेकिन उनका अगला आरोप चौंकाने वाला था।
चिलचिलाती धूप में पसीना पोंछते हुए राहुल गांधी के दौरे को कवर करने के लिए दिल्ली और रायपुर का जो मीडिया वहां चौबीस घण्टे से मौजूद था, उसे आड़े हाथों लेते हुए कांग्रेस के युवराज ने कहा : वैसे यह काम तो मीडिया को करना चाहिए मगर वह आपकी (आदिवासियों) आवाज नहीं उठाता इसलिए मुझे यहां आना पड़ा। राहुल गांधी यही नही रूके बल्कि उन्होंने मीडिया को पक्षपाती बताते हुए आरोप लगाया कि देश का मीडिया सरकारों के गुणगान और चंद उद्योगपतियों के हितों तक सीमित होकर रह गया है।
टीआरपी के लालच में मीडिया ने अपना जो नया चरित्र पेश किया है, उसके मुताबिक राहुल का यह आरोप नया नही है लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष ना भूलें कि पक्षपाती कौन है? क्या वे इसका जवाब दे सकते हैं कि यूपीए सरकार के दौरान इस इलाके के तीन कोल ब्लॉक जब आबंटित हो रहे थे तब उन्हें आदिवासियोंं या प्राकृतिक संपदा की चिंता क्यों नहीं हुई? राहुल बाबा को अच्छी तरह याद होगा कि यह वही मीडिया है जिसने कोल आबंटन भ्रष्टाचार का मुद्दा इस कदर उठाया कि कांग्रेस को इतिहास की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यह भी छुपा हुआ नही है कि राहुल गांधी के असफल नेतृत्व को लेकर दर्जनों उंगलियां उनकी अपनी ही पार्टी में उठती रही हैं और लोकसभा चुनाव के परिणामों ने तो इस पर गहरी और विश्वसनीय मुहर लगाई है
लेकिन देश के मीडिया ने हमेशा राहुल गांधी को नये अवतार के तौर पर पेश किया। गुजरे लोकसभा चुनाव को ही देखिए। प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर नरेन्द्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी बहुत हलके थे मगर मीडिया ने निष्पक्ष रहने की जिम्मेदारी दिखाते हुए राहुल गांधी को इस कदर प्रोजेक्ट किया था कि मायावी तौर पर ही सही, राहुल बाबा प्रधानमंत्री बनने का सपना पाल बैठे थे जो कांग्रेस के इतिहास की अब तक की सबसे बुरी हार के साथ ही जमींदोज हो चुका है।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी के फेसबुक वॉल से.