Sharad Shrivastav : बीजेपी सरकार ने रायपुर मे हिन्दी साहित्य के एक उत्सव कराया है। रमण सिंह सरकार के 11 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मे रायपुर साहित्य सम्मेलन रचाया गया है। इस सम्मेलन मे बहुत से मूर्धन्य साहित्यकार शामिल होने गए हैं, और बहुत से बड़े साहित्यकारों ने बुलावे के बावजूद शामिल होने से इंकार किया है। ये भी पता चला है की साहित्यकारों को उनकी हैसियत के मुताबिक आने जाने का किराया और शामिल होने की फीस भी दी गयी है। इस सम्मेलन के उदघाटन मे रमण सिंह और अमित शाह दोनों थे। हिन्दी के विद्वान लोग इसलिए गए थे की वो रमण सिंह सरकार का प्रतिकार करेंगे, मंच से उनके खिलाफ साहित्य के माध्यम से आवाज उठाएंगे। लेकिन रमण सिंह और अमित शाह ने मामला पलट दिया। उदघाटन भाषण मे इस समारोह को रमण सिंह ने अपने 11 साल पूरे होने का जलसा बना दिया और अमित शाह ने बीजेपी सरकार की उपलब्धि बताने का जरिया।
अफसोस की बात है की हिन्दी साहित्यकारों की कोई कदर नहीं। अब जो साहित्यकार वहाँ नहीं पहुँच सके वो अपने ही साथियों की टांग खींच रहे हैं। उन्हें जलील कर रहे हैं। सालों की साहित्य साधना, गरीब दलित, मजदूर, स्त्री के हित मे लेखन बेकार हो गया। वो सब बुद्धिजीवी अब कम्युनिस्ट नहीं रहे, संघी हो गए। कम्युनिस्ट होने के लिए कैसे कैसे रास्ते पर चलना पड़ता है, कितनी सावधानी बरतनी पड़ती है। एक गलत कदम और आप संघी हो जाते हैं। इसके उलट पल्प साहित्य या लोकप्रिय साहित्य जो किसी गिनती मे नहीं आता। जिसका नाम लेने से इन तथाकथित बुद्धि जीवियों का धर्म भ्रष्ट हो जाता है। उसके लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का उनके फैन ने खुद सम्मान किया। किसी संस्था, किसी सरकार का मोहताज नहीं बने। किसी का मुंह नहीं देखा किसी से उम्मीद नहीं की कि वो मदद करें।
लेकिन हिन्दी के साहित्य मे ऐसा नहीं हो सकता। यहाँ लोग फैन नहीं एक दूसरे के दुश्मन हैं। गरीब दलित स्त्री के हित कि बात करने वाले असल मे ये लोग उनके सबसे बड़े दुश्मन खुद हैं। हिन्दी के दुश्मन, साहित्य के दुश्मन, जिसकी बात करते हैं उसके दुश्मन। यहाँ ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी पुरस्कार मे कोई राजनीति न हो, किसी के सम्मान से किसी और को दिक्कत न हो। एक ऊपर चढ़ता है तो चार उसे नीचे खींचते हैं। सबसे गंदी दुनिया हिन्दी के साहित्य की है। लेकिन दूसरी दुनिया पर हंसने मे सबसे आगे यही लोग होते हैं। इनकी बातें सुनिए, इनके लेख पढ़िये यही जैसे दुनिया के सबसे पवित्र इंसान हैं, कोई बुराई इन्हें छूकर नहीं गयी। दुनिया को सुधारने का ठेका इन्हीं ने लिया है। इनके अलावा बाकी सब भ्रष्ट हैं।
पाठक साहब जैसा सच्चा इंसान मिलना मुश्किल है। हम कुल जमा 40 लोग थे, जब दो साल पहले हम सबने मिलकर उनका सम्मान किया था प्रेस क्लब दिल्ली मेx। खुद सभी ने मिलकर पैसे जुटाये, पाठक साहब को बुलाया, उनके लिए उपहार लिया , सभी के खाने पीने का प्रबंध किया, सम्मान के बाद सबने पाठक साहब के साथ जीभर के बातचीत की। पाठक साहब भी बड़ी आत्मीयता के साथ सबसे मिले। लेकिन ऐसा आप हिन्दी के किसी साहित्यकार के साथ करने की सोच ही नहीं सकते। अगर मैं चाहूं की किसी बड़े नाम वाले साहित्यकार को बुलाकर सम्मान करूँ जहां हम उनके साथ बातचीत कर सकें उन्हें शुक्रिया अदा कर सकें तो वो नामुमकिन है। सबके अपने अहम हैं। ये लोग आपस मे एक दूसरे के लिए सिर्फ बने हैं। एक बुद्धिजीवी सिर्फ दूसरे बुद्धिजीवी की सुनता है। इनकी सीमित दुनिया है। ये बंगाल का भद्रलोक नहीं हिन्दी की गंदगी है। यहाँ फेसबुक पर खूब दिखती है।
शरद श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.