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दिल्ली

नेशनल हेराल्ड अखबार मामले पर अब सुनवाई अप्रैल में, सोनिया ने समन अवैध करार दिया

नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में उनके, राहुल गांधी और पांच अन्य लोगों के खिलाफ जारी समन अवैध थे और उन्होंने दावा किया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में किसी के साथ धोखा नहीं किया गया।

<p>नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में उनके, राहुल गांधी और पांच अन्य लोगों के खिलाफ जारी समन अवैध थे और उन्होंने दावा किया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में किसी के साथ धोखा नहीं किया गया।</p>

नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में उनके, राहुल गांधी और पांच अन्य लोगों के खिलाफ जारी समन अवैध थे और उन्होंने दावा किया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में किसी के साथ धोखा नहीं किया गया।

उल्लेखनीय है कि नेशनल हेराल्ड अखबार के कब्जे से जुड़े केस में सुब्रह्मणयम स्वामी की याचिका पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पिछले वर्ष दिल्ली की एक अदालत ने समन भेजा था। स्वामी का आरोप है कि कांग्रेस के पैसे से नेशनल हेराल्ड को एक नई कंपनी बनाकर खरीदा गया। नेशनल हेराल्ड अखबार की प्रकाशक कंपनी के अधिग्रहण पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कांग्रेस पर एसोसिएटेड जर्नल्स को 90 करोड़ रुपए कर्ज देने का आरोप लगाया था। उन्होंने अदालत को बताया था कि सोनिया और राहुल ने यंग इंडियन नाम से कंपनी बनाई। सोनिया, राहुल के नाम यंग इंडियन के 38%-38% शेयर रहा। यंग इंडियन ने एसोसिएटेड जर्नल्स का अधिग्रहण किया और डील के बाद दिल्ली के हेराल्ड हाउस से किराए के जरिए कमाई होने लगी। 

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कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति सुनील गौर की पीठ से कहा कि यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (वाईआईएल) द्वारा अब बंद हो चुके नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशक एसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के अधिग्रहण के दौरान किसी के भी साथ धोखाधड़ी नहीं की गयी। कोई आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक षड्यंत्र नहीं था और न ही कोई धोखाधड़ी हुई और यह कंपनी का सामान्य मामला है, जहां यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड ने एसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेड को खरीदा है। इस निजी लेनदेन से फरियादी, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी कैसे प्रभावित हो गये? सोनिया गांधी को समन भेजने का निचली अदालत का आदेश पूरी तरह अवैध है। 

उन्होंने अदालत को बताया कि एजेएल से कांग्रेस का भावनात्मक लगाव है क्योंकि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी ने इसका समर्थन किया था। इस भावनात्मक लगाव की वजह से पार्टी ने 50 साल की अवधि के लिए 90 करोड़ रुपये का लोन देकर इसकी मदद की। यंग इंडिया नाम की कंपनी चैरिटी के उद्देश्य से बनाई गयी थी और यह बिना लाभ-हानि वाली कंपनी है। कांग्रेस पार्टी ने यंग इंडियन को लोन के तौर पर 90 करोड़ रपये देने का फैसला किया था। क्या कानून में ऐसा कोई प्रावधान है जो किसी राजनीतिक दल को लोन देने से रोकता हो? वाईआईएल केवल एक शेयरधारक है और एजेएल से एक भी पैसा नहीं कमाता।

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सोनिया और राहुल के अलावा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, महासचिव ऑस्कर फर्नांडीज और सुमन दुबे ने मामले में उन्हें समन भेजने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ 30 जुलाई, 2014 को उच्च न्यायालय का रुख किया था। निचली अदालत ने वाईआईएल द्वारा नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशक एजेएल के अधिग्रहण में कथित धोखाधड़ी की स्वामी की शिकायत पर पिछले साल 26 जून को सोनिया, राहुल, वोरा, फर्नांडीज, दुबे और सैम पित्रोदा को सात अगस्त, 2014 को अदालत में पेश होने के लिए समन भेजे थे।

बाद में उच्च न्यायालय ने छह अगस्त को सोनिया, राहुल और अन्य के खिलाफ जारी समन पर रोक लगा दी थी और 15 दिसंबर, 2014 को मामले को दिन प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था।

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अदालत ने 15 दिसंबर, 2014 को याचिकाओं के अंतिम रूप से निपटारे तक समन पर भी रोक लगा दी थी। सिब्बल ने सुनवाई के दौरान निजी आपराधिक शिकायत दाखिल करने के स्वामी के अधिकार पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि यह कंपनी का मामला है और कोई भी अजनबी कंपनी के लेन-देन पर प्रश्न खड़ा नहीं कर सकता। स्वामी यह तक नहीं दर्शा सकते कि कुछ अवैध हुआ है और वह कहते हैं कि संपत्ति का किराया हमारी जेब में आता है। यहां सरकार भी तस्वीर में कहीं नहीं आती। इस मामले में बहस अधूरी रही। अब 22 अप्रैल 2015 को फिर से सुनवाई होगी।

इस मामले की पहले सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति वी पी वैश ने 12 जनवरी को कहा था कि मामलों का रोस्टर बदल गया है और उन्होंने निर्देश दिया कि याचिकाएं किसी उचित पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएं। स्वामी ने न्यायाधीश के मामले से हटने का विरोध किया था और अनुरोध किया था कि इसी अदालत द्वारा मामले की सुनवाई की जाए। उन्होंने कहा था कि नये सिरे से मामले में सुनवाई से इसमें और देरी होगी। हालांकि अदालत ने स्वामी के अनुरोध को खारिज कर दिया था और मामले को स्थानांतरित कर दिया।

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