दिल्ली : 1अप्रैल को कागज पर न्यूनतम वेतन बढ़ाने वाली आम आदमी पार्टी सरकार के वजीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता के पास मजदूरों ने हर फैक्टरी में न्यूनतम वेतन लागू करवाने के लिए उनके दफ्तर का घेराव किया परन्तु राजेश गुप्ता खुद अपने ही दफ्तर नहीं आये. यह दूसरी बार है जब दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन राजेश गुप्ता के दफ्तर पहुंची है और वे वहां से नदारद हो गए. उनके दफ्तर के बाहर बोर्ड पर लिखा है कि राजेश गुप्ता का कार्यालय तथा जहाँ बैठने का समय हर बुधवार को 9 से 11 बजे का है. 9 बजे से 11 बजे तक है, मज़दूर वहां अपनी सभा चलाते रहे। 11 बजे के बाद आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार का एक प्रतिनिधि वहां आया और यूनियन प्रतिनिधियों को बोलने लगा कि यह सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है कि सरकार फैक्टरियों में न्यूनतम वेतन लागू करवाये। उन्होंने कहा कि अगर मज़दूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है तो मज़दूर फैक्टरी में काम करते ही क्यों है और अगर २ दिन मज़दूर काम नहीं करेंगे तो भूखे थोड़ी मरेंगे, जहाँ न्यूनतम वेतन पर काम मिले वहां काम करें वर्ना भूखे बैंठे!
इस पर मज़दूरों का गुस्सा बढ़ गया और दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि को उलटे पाँव वहां से दौड़ना पड़ा. १ अप्रैल को कागज़ों पर न्यूनतम वेतन बढ़ाने वाली सरकार असल में कितना न्यूनतम वेतन मज़दूर को देना चाहती है वह इस बातचीत से साफ़ हो जाता है कि फैक्टरी मालिकों पर दबाव बनाने की जगह आम आदमी पार्टी सरकार कहती है कि मज़दूर ऐसी जगह काम तलाशें, जहाँ न्यूनतम वेतन मिलता हो। परन्तु दिल्ली में 70 लाख आबादी जो ठेके पर काम करती है उसे न तो न्यूनतम वेतन मिलता है और न ही अन्य श्रम कानूनो के तहत मिलने वाली सुविधाएं। यह भी बड़ी हैरानी की बात है कि राजेश गुप्ता का दफ्तर ए ब्लॉक की फैक्टरी ए -73 में है, (जिसमे वे पार्टनर भी हैं और मज़दूरों ने बताया की फैक्टरी उनके साले की है ) जहाँ खुद मज़दूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। जब विधायक महोदय की खुद की फैक्टरी में न्यूनतम वेतन नहीं लागू होता है वे वजीरपुर के अपने मालिक भाइयों की फैक्टरियों में न्यूनतम वेतन करवाएंगे?