Vimala Sakkarwal : दिल्ली सचिवालय पर प्रदर्शन के दौरान वहां जिस तरह लड़कियों को पीटा गया, वो काम इंसान नहीं कर सकते, सिर्फ जानवर ही कर सकते हैं। वहां महिला पुलिस तो थी, लेकिन पुरुष पुलिस ने जिस तरह टारगेट करके लड़कियों के सिरों पर डंडे मारे, उनके पेटों में डंडे घुसेड़े, उनके नीचे के हिस्से में ड़डे घुसेड़े, बहुत विमानवीय था। मेरे हाथों और पेट पर, … पड़ी नीलें इनकी बर्बरता बयान कर रही हैं।
शिवानी को जिस तरह बालों से पकड़कर घसीटा गया, उसके कपड़ों को फाड़ा गया, उससे बदतमीजी की गई; वर्षा के कपड़े फाडे गए, उसके पेट पर पड़े नोचने के निशान, कमर से लेकर घुटने तक पड़े नील के निशान (ये इसी हालत में अभी तीस हजारी कोर्ट में हैं) – नीलें और सूजन तो अथाह है साथियों… जिस बर्बर तरीके से हमारे एक-एक साथी को इन्होंने पीटा है, वह न सिर्फ इस केजरीवाल की असलियत को बयान कर रही है, बल्कि वह इस पूंजीवादी व्यवस्था के बलात्कारी चरित्र को दिखाता है।
यह बात हम सभी जानते हैं कि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि अगर पुलिस महिलाओं को घेरकर उन पर लाठियाँ बरसाए तो उसकी आलोचना करने के लिए अरविंद को दिल्ली पुलिस की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी। यही नहीं, हम यह भी जानते हैं कि प्रदर्शनकारियों को थाने में बंद करके उन्हें प्राथमिक उपचार से वंचित करने वाली पुलिस को फटकार लगाने के लिए उन्हें मोदी से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। और एक बात, हम यह भी जानते हैं कि अरविंद ने पर्यावरण की अनदेखी करके बिज़नेस को आगे बढ़ाने में जितनी मुस्तैदी दिखाई है उसका दसवाँ हिस्सा भी ठेके पर दिए जाने वाले काम को स्थायी बनाने के मुद्दे पर दिखाते तो मेहनतकशों में इतना ग़ुस्सा नहीं होता।
सोशल एक्टिविस्ट विमला सक्करवाल के फेसबुक वॉल से.