नई दिल्ली : दिल्ली में बदले हुए राजनैतिक माहौल में यहां झंडेवालान स्थित आंबेडकर भवन प्रांगण में शुरू हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम ( एआईपीएफ ) के स्थापना सम्मेलन ने कारपोरेट घरानों की लूट के खिलाफ देश भर में प्रतिरोध का साझा और व्यापक मंच बनाने की दिशा में नई उम्मीद जगा दी है। ‘जन जन की है ये आवाज, नहीं चलेगा कंपनी राज’ के नारे के साथ शुरू हुए एआईपीएफ का स्थापना सम्मेलन में करीब पंद्रह राज्यों के कार्यकर्त्ता शामिल हुए जिनमे नौजवानो और महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। यह सम्मेलन देश में विभिन्न धारा के वामपंथियों, समाजवादियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, किसान संगठनों और जन आंदोलन के कार्यकर्ताओं की साझा पहल है, जिसकी तैयारी करीब छह महीने से चल रही थी।
सम्मेलन दो दिन चलेगा और तीसरे दिन यानी सोलह मार्च को विभिन्न मुद्दों को लेकर जंतर मंतर पर बैठेंगे। आज के सम्मेलन में नौजवानों की सहभागिता और उनका उत्साह नारों, पोस्टरों और क्रांतिकारी गीतों के रूप में झलक रहा था। दोपहर बाद तक देश के करीब पंद्रह राज्यों से आए प्रतिनिधियों की संख्या पांच से ऊपर जा चुकी थी। इन राज्यों में झारखण्ड, उत्तर प्रदेश , दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, बंगाल, ओडिसा, असम, कर्णाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रदेश शामिल थे। सम्मेलन में भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य, कविता कृष्णन, रामजी राय, समाजवादी नेता विजय प्रताप, झारखंड की आदिवासी नेत्री दयामनी बरला, विनायक सेन, गौतम मोदी, फैसल अनुराग, पत्रकार अरुण त्रिपाठी, रोमा, अशोक चौधरी, चितरंजन सिंह, राजाराम, एनडी पंचोली, ताहिरा हसन, राधिका, प्रोफ़ेसर ऋतुप्रिया, ज्यांद्रे आदि शामिल थे।
स्वागत सत्र सांप्रदायिक और कारपोरेट हमले पर केंद्रित रहा। इस सत्र में भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने इस पहल का विस्तार से ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि जिन सपनों को लेकर हम यहां पहुंचे हैं, यह सम्मेलन उन सपनों को साकार करने में मदद करेगा। जिस एकता तलाश में हम यहां इकठ्ठा हुए हैं, उसकी तलाश पुरानी है। पर लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही देश में जो माहौल बनने लगा था उसने वामपंथी और समाजवादी ताकतों को उद्वेलित किया और फिर व्यापक संवाद शुरू हुआ। इसमें वामपंथी, समाजवादी धारा के साथ जन आंदोलनों के कार्यकर्ताओं से लेकर विभिन्न सवालों पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ता भी शामिल थे। इस दौरान भूमि अधिग्रहण का सवाल हो, पर्यावरण का सवाल हो, कारपोरेट लूट का मुद्दा हो या फिर सांप्रदायिक उन्माद हो सभी ने हम सबको एक साथ आने पर बैठने पर मजबूर किया है। उदारीकरण की जो शुरुआत नब्बे के दशक में हुई उसे बहुमत की सरकार की ताकत तो अब मिली है। यह सरकार तो जो कुछ हक़ हमें कानून से मिले थे उसे भी ख़त्म करने पर आमादा है। सत्ता का बुलडोजर हमारे ऊपर चल रहा है।
इस मौके पर समाजवादी चिंतक विजय प्रताप ने इसे चार दशक का वह ऐतिहासिक पल बताया जिसका इन्तजार था। उन्होंने समाजवादी धारा के राजनैतिक दलों और संगठनो की तरफ से शुरू हुए समाजवादी समागम प्रक्रिया की ब्योरेवार जानकारी दी और इसे इस मौके पर एक व्यापक मंच की जरुरत पर जोर दिया। यह भी कहा कि ऐसे व्यापक मंच बनाने में ज्यादा ऊर्जा इस बात पर नही लगनी चाहिए कि चौबीस कैरेट वाला कौन है या नहीं है। विजय प्रताप के साथ समाजवादी समागम में शामिल कई संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष दस ग्यारह अगस्त को मुंबई के पनवेल में दिग्गज समाजवादी डा जीजी पारीख के नब्बे वर्ष पूरे होने के मौके पर देशभर के समाजवादी मिले थे और फिर समाजवादी समागम की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसी समागम में वामपंथियों और समाजवादियों के बीच संवाद शुरू करने और नई पहल की बात कही गई थी। डा सुनीलम इस अभियान में लगे हुइ है वे सोलह मार्च को जंतर मंतर पर होने वाले एआईपीएफ कार्यक्रम में भी शामिल होंगे।
एआईपीएफ बनाने की ठोस पहल पिछले वर्ष ग्यारह अक्टूबर को दिल्ली में हुई बैठक में हुई थी, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे जन आंदोलनों के साथ समाजवादी और वामपंथी धारा के कार्यकर्त्ता शामिल हुए। दिल्ली के एनडी तिवारी भवन में दिन भर चली बैठक के बाद राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा राजनैतिक मोर्चा बनाने का फैसला हुआ जिसमे सभी धर्म निरपेक्ष ताकतों को शामिल होने की अपील भी की गई। यह पहल वाम धारा के कई संगठनों के साथ भाकपा माले, समाजवादी समागम और विभिन्न जन आंदोलनों की तरफ से हुई थी। बैठक में इंकलाबी नौजवान सभा, क्रन्तिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, पंजाब से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, जन संस्कृति मंच, एटमी उर्जा विरोधी आंदोलन, आइसा, रिहाई मंच, खेत मजदूर सभा, सोशलिस्ट पार्टी इण्डिया, लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी, समाजवादी समागम, एआईसीसीटीयू जैसे कई जन संगठनों के साथ देश के महत्वपूर्ण चिन्तक और सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्त्ता शामिल हुए। उस बैठक में भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य, कविता कृष्णन, रामजी राय, प्रणय कृष्ण, बिहार के खांटी समाजवादी और मजदूर नेता विद्या भूषण , राजा राम, गौतम नवलखा, मेनस्ट्रीम के संपादक सुमित चक्रवर्ती, विनायक सेन, एंडी पंचोली, विजय प्रताप, अशोक चौधरी, रोमा, सुन्दरलाल सुमन, पत्रकार अनिल चमडिया , आइसा की राधिका, गौतम मोदी, वैज्ञानिक मेहर इंजीनियर, अनिल सदगोपाल, प्रोसेनजीत बोस, राजीव यादव, मंगतराम पासला समेत देश के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधि शामिल थे। मुंबई से आनंद पटवर्धन ने तो असम से अखिल गोगोई ने इस पहल का समर्थन करते हुए अपनी एकजुटता दर्शाई थी। उसके बाद इस दिशा में कई छोटी बड़ी बैठके हुई और फिर आज इसका स्थापना सम्मेलन शुरू हुआ।
(‘हस्तक्षेप’ से साभार अंबरीश कुमार की रिपोर्ट)