नई दिल्ली : सरदार सरोवर पुनर्वास संबंधी याचिका, नर्मदा बचाओ आंदोलन एवं विस्थापित आदिवासी-किसानों के मामले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की सामाजिक न्याय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। न्यायपीठ ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के मध्य प्रदेश शासन की ओर से पेश किए हलफनामे पर कड़ी फटकार लगाई। नाराज कोर्ट ने म.प्र. शासन के खिलाफ 25000 रुपये अर्थ दंड का आदेश दिया।
विस्थापितों की पैरवी करते हुए अधिवक्ता संजय पारीख ने न्यायपीठ को बताया गया कि सरदार सरोवर की ऊंचाई 122 मी. से 139 मी. बढ़ाते हुए हजारो-हजार किसान, मजदूर, मछुआरों, खेती, मकान, भरे-पूरे गांवों का डुबाने की शासन की मंशा अत्यंत अन्यायपूर्ण तथा कानून एवं न्यायालयीन फैसलों का उल्लंघन है।
मध्य प्रदेश शासन को उस समय बड़ा धक्का लगा, जब नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के हलफनामों पर कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ये हलफनामा बहुत ही हल्केपन से तथा बिना किसी गंभीरता के पेश किया गया है। यह मामला फाइल में सजाने के लिए नहीं है। यह हलफनामा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के संयुक्त संचालक ए.के.खरे की ओर पेश किया गया, जो विस्थापितों के पुनर्वास के संबंध में लगातार झूठे शपथपत्र पेश करते आए हैं।
कोर्ट ने पिछली बार शिकायत निवारण प्राधिकरण के अध्यक्ष पदों पर मध्य प्रदेश से पांच, गुजरात से तीन और महाराष्ट्र से एक भूतपूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति करने का आदेश दिया था। प्राधिकरणों को हर राज्य की लंबित शिकायतों (जिसमें मध्यप्रदेश के 1600, गुजरात के 1541, महाराष्ट्र के 350) मामलों का निपटारा करके हलफनामा पेश करना था। किसी भी राज्य में ये काम पूरा नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में तो न ही न्यायाधीशों की तरफ से रिपोर्ट पेश की गई, न ही अब तक हुए कार्यों का लेखा-जोखा दिया गया। इससे नाराज कोर्ट ने म.प्र. शासन के खिलाफ 25000 रुपये अर्थ दंड का आदेश दिया। म.प्र. शासन के अधिवक्ता पटवालिया की ओर से कोर्ट के समक्ष बचाव की काफी कोशिश की गई। उन्होंने तो एक बार माफी भी मांग ली लेकिन न्यायपीठ ने मामले से संबंधित उनकी दलीलों को नामंजूर कर दिया।
सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाना गैरकानूनी रूप से तथा एक फर्जी निर्णय प्रक्रिया के आधार पर हो रहा है, यह कहते हुए अधिवक्ता पारीख ने पुनर्वास की ताजा स्थिति कोर्ट के समक्ष पेश की। बांध का काम क्यों रोकना जरूरी है, इस पर पूरी सुनवाई का उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया लेकिन न्यायापीठ ने एक-एक कदम आगे बढ़ने का तर्क देते हुए 24 अप्रैल की अगली तारीख सुनवाई के लिए मोकर्रर कर दी। हजारों वयस्क पुत्रों को गैरकानूनी रूप से जमीन के अधिकार से वंचित करने की मध्यप्रदेश शासन की मांग संबंधी अंतरिम याचिका पर 27 मार्च को सुनवाई की जाएगी।
याचिकाकर्ता होने के नाते मेधा पाटकर ने स्वयं जब पैरवी करनी चाही तो केंद्र तथा राज्य स्तरीय अधिवक्ताओं ने विरोध करते हुए उनके प्रतिनिधित्व करने के कानूनी आधार पर सवाल किया लेकिन न्यायपीठ ने जवाब देते हुए कहा कि आज नहीं पर अगली बार आपकी सुनवाई जरूर होगी। घाटी के मौजूदा हालात संक्षिप्त में बयान करते हुए मेधा पाटकर ने आग्रह किया कि सामाजिक न्यायपीठ से अपेक्षा यही है कि हजारो-हजार परिवारों को बिना पुनर्वास डुबाने की कोशिश, बांध निर्माण आदि को तात्कालिक तौर पर रोका जाए।