नई दिल्ली : विज्ञान भवन में सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के पांचवें राष्ट्रीय सम्मेलन का उदघाटन करते हुए वित्त एवं सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सामुदायिक रेडियो, संचार के एक माध्यम के रूप में बोलने तथा अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का आतंरिक तत्व है। सूचना के प्रसार के माध्यम के रूप में इसकी ‘रेडियो तरंगें’ राज्य नहीं, बल्कि लोगों के अधिकार क्षेत्र में आती हैं, ये तरंगें सार्वजनिक होती हैं और सरकार का इस पर एक छत्र अधिकार होने का मुद्दा अब समाप्त हो गया है।
उन्होंने कहा कि संचार के एक मंच के रूप में सामुदायिक रेडियो एक त्रिकोणीय हितधारक साझीदार बनाता है, जिसमें यानी प्रसारक, सूचना का प्रसार करने वाला व्यक्ति और श्रोता-सूचना प्राप्त करने वाला होता है। रेडियो ने भूतकाल में सूचना के प्रचार के एक यंत्र के रूप में कार्य किया और यह भविष्य में भी ऐसा ही करेगा, जिसमें सामुदायिक रेडियो, रेडियो के माध्यम से प्रचार की विषय वस्तु के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा है। उन्होंने विभिन्न श्रेणियों में पांचवें राष्ट्रीय सामुदायिक पुरस्कार प्रदान किए। सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय में सचिव बिमल जुलका ने कहा कि सामुदायिक रेडियो वाणिज्यिक और सार्वजनिक के अतिरिक्त प्रसारण का तीसरा मॉडल है, एक संचार प्लेटफार्म के रूप में यह भौगोलिक तौर पर दूर दराज के क्षेत्र में बसे समुदायों के हितों का माध्यम है। सामुदायिक रेडियो, ग्रामीण रेडियो, कॉरपोरेटिव रेडियो, विकास रेडियो भाषाई तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विविधता भरे देश को एक सूत्र में पिरोने का माध्यम है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के हाल ही के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि रेडियो तरंगों को सार्वजनिक संपत्ति घोषित किया जा चुका है।
सुशासन के लिए सामुदायिक रेडियो’ विषय पर 5वें राष्ट्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन में विचारों के आदान-प्रदान और परस्पर जानकारी लेने के लिए सामुदायिक रेडियो परिचालक, नीति निर्माता, मंत्री, विभाग, यूनिसेफ और यूनेस्को जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकाय एवं संयुक्त राष्ट्र और अन्य हितधारकों ने सम्मेलन में भाग लिया। भारत में सामुदायिक रेडियो आंदोलन के दृष्टिकोण तथा स्थानीय स्तर पर इसकी भूमिका के बारे में सत्र के दौरान प्रकाश डाला गया।