बाड़मेर पुलिस नौसिखिए पुलिस अधीक्षक की अगुवाई में अपराधियों पर अंकुश लगाने में नाकाम रही है। अपराधों पर लगाम लगाने की जगह पुलिस की पोल खोलने वाले पत्रकारों पर अपनी ताकत का इस्तेमाल कर लोकतंत्र को हत्या कर रही है।
हाल ही बाड़मेर में पेपर लीक की खबर छाप कर प्रशाशन की पोल खोलने वाले पत्रकार प्रेमदान का आज फिल्मी अंदाज में अपहरण हो गया। एक बार आमजनता में भय व्याप्त हो गया था, फिर पता चला प्रेमदान को हार्डकोर अपराधी की तरह उठा ले जाने वाले बाड़मेर पुलिस अधीक्षक के पसंदीदा होनहार सिपाही थे।
आज बाड़मेर पुलिस के पांच सिपाही सिविल ड्रेस में, सिविल गाड़ी में आकर कलेक्ट्रेट में पत्रकार साथियों के साथ बैठे प्रेमदान के साथ हाथापाई कर अपहरण कर ले गए। जब पत्रकार साथियों को पता चला कि उनको सदर थाने ले जाया गया है, सभी पत्रकार वहा जाकर जबरन दस्तयाब करने का कारण पूछा तो बताया गया कि इन्होंने प्रशाशन के खिलाफ खबर चलाई थी, उसके संबंध में पूछताछ करनी है। जब उनको नियमों का हवाला दिया तो थानेदार साहब बगलें झांकने लगे और प्रेमदान को छोड़ दिया।
अगर आम आदमी ऐसा कृत्य करता तो अब होता जेल में…. जिस तरह से बिना किसी मुकदमे के बाड़मेर पुलिस के पांच सिपाहियों ने एक राय होकर, सोची समझी साजिश के तहत एक सम्मानीय पत्रकार का अपहरण कर जबरन अपने साथ सिविल गाड़ी में ले कर गए थे। अगर यही घटना आम जनता ने की होती तो अपहरण व लूट के गैरजमानती संज्ञेय आपराधिक धाराओं में जेल में होते व उच्च न्यायालय से पहले जमानत भी नही होती।
होनहार पुलिस अधीक्षक पहले भी कर चुके है इससे बड़े कारनामे… बाड़मेर के पुलिस अधीक्षक व्हाट्सएप्प पर मिली सूचना के आधार पर बाड़मेर के एक पत्रकार को उसी के खर्चे पर पटना को सेर करा चुके है। व्हाट्सएप्प पर महाशय को बाड़मेर के किसी गिट्टी कारोबारी दुर्गेशसिंह के नाम का पटना पुलिस से वारंट मिला था। इन्होंने अपनी कोई खुन्नस निकालने व आकाओं को खुश करने के लिए बाड़मेर के सम्मानीय पत्रकार दुर्गसिंह राजपुरोहित को इसी तरह अपने आफिस में बुला जबरन पटना भेज दिया था। अब इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेकर जवाब तलब किया है।
सबल सिंह भाटी की रिपोर्ट.
पूरे घटनाक्रम पर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार Shripal Shaktawat लिखते हैं :
सीएमओ और पुलिस मुख्यालय के दखल के बाद अन्ततः हमारे साथी प्रेमदान को बाड़मेर सदर पुलिस ने भले ही अवैध हिरासत से छोड़ दिया हो ,सच यही है कि बाड़मेर पुलिस पत्रकारों से खार खाए है। प्रेमदान का दोष यह कि उसने आरपीएससी के एक्जाम मे पेपर लीक होने का सच पहले प्रशासन, फिर दर्शकों के सामने रखा था। एक तरफ पेपर लीक होने के सच को झुठलाने की कोशिश की गयी तो दूसरी तरफ पत्रकार को तंग करने की कोशिश तेज हो गयी। शाम 4.10 बजे एक नोटिस थमाया गया। कानूनी जवाब दिया जाता उससे पहले ही 5 मिनट बाद उसे बलात उठाकर थाने में बंद करने और ‘सोर्स ‘बताने का दबाव शुरू हो गया। पत्रकार के लिए ‘सोर्स ‘उतना ही अहम् है,जितना कि पुलिस के लिए ‘मुखबिर’। प्रेस काऊंसिल पत्रकार को आपने सोर्स प्रोटेक्ट करने का अधिकार भी देती है। लेकिन, पुलिस तो पुलिस है। वर्दी में है सो मनमानी को अधिकार समझती है। पत्रकारों के दमन में अगुआ वही एसपी-मनीष अग्रवाल है ,जिसने एक एससी एसटी के झूठे केस में बाड़मेर के ही पत्रकार दुर्ग सिंह को व्हाट्सएप पर मिले एक सम्मन के आधार पर इसी तरह पटना टिकवा दिया था। हमने तय किया है कि कानूनी तौर पर हम अपने ‘सोर्स’को ‘प्रोटेक्ट’ करेंगे। साथ ही इसी अन्दाज में खबर के खुलासे भी। अब पुलिस चाहे जो करे।