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दिल्ली

सम-विषम दौर-दौरे में इस बड़े फच्चर को दूर करने का जतन तुरंत किया जाना चाहिए

Om Thanvi : मुझे बहुत खुशी होगी, अगर सम-विषम प्रयोग सफल होता है। लेकिन सरकार को भी चाहिए कि आवागमन के वैकल्पिक, प्रदूषण रहित, साधनों की उपलब्धि में जी-जान लगा दे। दिल्ली की छाती पर एनसीआर हलकों में धुँआ उगलते वाहनों पर नियंत्रण के लिए पड़ोसी राज्यों की सरकारों से सहयोग की गुजारिश करनी चाहिए। एक और समस्या, जिसे तुरंत हल किया जाना चाहिए। रेडियो टैक्सी एक बेहतर सुविधा के रूप में विकसित हो रही है। लेकिन अपनी सफलता पर इतरा कर कंपनियां बेजा फायदा भी उठाने लगी हैं। मसलन ऊबर (Uber) को लें। “पीक आवर” अर्थात ज्यादा भीड़ के घंटों में चार-छः गुणा किराया झटकने लगे हैं। यह किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है, सरासर ब्लैकमेलिंग है। दूसरी कंपनियां – जैसे मेरु (Meru) – तो ऐसा नहीं करतीं। कुछ टैक्सी संचालकों को लूट की यह आजादी क्यों?

<p>Om Thanvi : मुझे बहुत खुशी होगी, अगर सम-विषम प्रयोग सफल होता है। लेकिन सरकार को भी चाहिए कि आवागमन के वैकल्पिक, प्रदूषण रहित, साधनों की उपलब्धि में जी-जान लगा दे। दिल्ली की छाती पर एनसीआर हलकों में धुँआ उगलते वाहनों पर नियंत्रण के लिए पड़ोसी राज्यों की सरकारों से सहयोग की गुजारिश करनी चाहिए। एक और समस्या, जिसे तुरंत हल किया जाना चाहिए। रेडियो टैक्सी एक बेहतर सुविधा के रूप में विकसित हो रही है। लेकिन अपनी सफलता पर इतरा कर कंपनियां बेजा फायदा भी उठाने लगी हैं। मसलन ऊबर (Uber) को लें। "पीक आवर" अर्थात ज्यादा भीड़ के घंटों में चार-छः गुणा किराया झटकने लगे हैं। यह किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है, सरासर ब्लैकमेलिंग है। दूसरी कंपनियां - जैसे मेरु (Meru) - तो ऐसा नहीं करतीं। कुछ टैक्सी संचालकों को लूट की यह आजादी क्यों?</p>

Om Thanvi : मुझे बहुत खुशी होगी, अगर सम-विषम प्रयोग सफल होता है। लेकिन सरकार को भी चाहिए कि आवागमन के वैकल्पिक, प्रदूषण रहित, साधनों की उपलब्धि में जी-जान लगा दे। दिल्ली की छाती पर एनसीआर हलकों में धुँआ उगलते वाहनों पर नियंत्रण के लिए पड़ोसी राज्यों की सरकारों से सहयोग की गुजारिश करनी चाहिए। एक और समस्या, जिसे तुरंत हल किया जाना चाहिए। रेडियो टैक्सी एक बेहतर सुविधा के रूप में विकसित हो रही है। लेकिन अपनी सफलता पर इतरा कर कंपनियां बेजा फायदा भी उठाने लगी हैं। मसलन ऊबर (Uber) को लें। “पीक आवर” अर्थात ज्यादा भीड़ के घंटों में चार-छः गुणा किराया झटकने लगे हैं। यह किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है, सरासर ब्लैकमेलिंग है। दूसरी कंपनियां – जैसे मेरु (Meru) – तो ऐसा नहीं करतीं। कुछ टैक्सी संचालकों को लूट की यह आजादी क्यों?

दूसरा उदहारण, जिससे रेडियो टैक्सी प्रयोग हतोत्साहित हो रहा है: टी-3 के हवाई अड्डे पर – जहाँ से अधिकांश उड़ानें संचालित होती हैं – उतर कर ऊबर या ओला टैक्सी लें तो 150 रुपये भाड़े के अतिरिक्त ठोंके जाने लगे हैं। अन्य टैक्सी संचालक – ट्रेफिक पुलिस सेवा या मेरु – यह अतिरिक्त राशि नहीं लेते। यह क्या गड़बड़झाला है? किसी ने कहा, ऊबर-ओला टैक्सी की परिभाषा में नहीं आते इसलिए उनसे एयरपोर्ट अथॉरिटी सरचार्ज वसूलने लगी है। कुछ की राय है कि मेरु आदि अन्य महँगी सेवा वाली कंपनियों ने अपना धंधा उखड़ता देख यह दबाव बनवाया है। जो कारण हो, है यह अव्वल दरजे की बेवकूफी का नियम कि मेरु पर सरचार्ज नहीं, ऊबर-ओला पर लगेगा। वह भी दस-बीस रुपये नहीं, हर भाड़े पर 150 रुपये। सम-विषम दौर-दौरे में इस बड़े फच्चर को दूर करने का जतन तुरंत किया जाना चाहिए।

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Mukesh Kumar : मैं दिल्ली में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए किए जा रहे सम-विषम फार्मूले के प्रयोग का समर्थन करता हूँ। मुझे लगता है कि ढेर सारी परेशानियों के बावजूद इस तरह के प्रयोग ज़रूरी हैं। इनकी सफलता-असफलता से सबक लेकर आगे की रणनीति बनाई जा सकती है। वैसे भी ये कोई स्थायी उपाय नहीं है। जब कभी प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक़ सीमा तक पहुँचेगा तभी इसे हफ़्ते या पंद्रह दिनों के लिए लागू किया जाएगा। ये भी हो सकता है कि प्रयोग के बाद इसे अव्यावहारिक पाया जाए और भविष्य में लागू ही न हो। इसलिए ज़्यादा हो हल्ला मचाने के बजाय सही ढंग से इस प्रयोग को करने में सहयोग करना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार द्वय ओम थानवी और मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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