Yashwant Singh : इस देश के जन-मानस में पीड़ित या प्रताड़ित के प्रति सिंपैथी रखने की प्रवृत्ति बहुत भयंकर है. इमोशनल देश जो ठहरा. एक जमाने में मोदी जी इसी टाइप सिंपैथी गेन कर कर के इतने मजबूत हुए कि अब पीएम हैं. पीएम पद ने मोदी का दिमाग घुमा दिया है. या यूं कहिए कि प्रकृति अब मोदी के हाथों मोदी के नाश का इंतजाम करा रही है, उसी तर्ज पर जिस तर्ज पर मोदी एक बार कांग्रेस के नाश के लिए कारण बन गए थे.
तो प्रकृति मोदी के हाथों केजरी के लिए वैसा ही प्रयोग करवा रही है जैसा प्रयोग कांग्रेस के हाथों मोदी के लिए कराया था. यह सौ आने सच है कि अब केजरी सिर्फ दिल्ली वाला केजरी बन कर नहीं रह पाएगा. यह अगले लोकसभा चुनाव तक मोदी की मार खा खा के देशव्यापी हैसियत अपना लेगा.
केजरी गलत हैं या सही, यह बहस उसी तरह बेमानी हो चुकी है जिस तरह मोदी नरसंहार के दोषी है या नहीं. असल बात पावर पालिटिक्स की है. मोदी के अंदर एक अहंकारी और तानाशाही व्यक्तित्व तो है ही. वह विरोध व विरोधियों को पसंद नहीं करता. कांग्रेस को निपटा कर मोदी पीएम बने हैं और उन्हें कांग्रेस से निपटना आता है. लेकिन केजरी की काट मोदी नहीं ढूंढ पा रहे. उल्टे केजरी जब तब मोदी को पोलिटिकल पीट देता है.
ऐसे में गुस्साए तमतमाए मोदी ने सीधे सीबीआई को घुसवा दिया केजरी के आफिस में. ले बेटा, कर मोदी से पंगा. लेकिन हमारा गुस्सा कई बार दूसरों को बहुत फायदा दे जाता है. केजरी कैश कराने में जुट गया है. जुटना भी चाहिए. आखिर ये लोकतंत्र है. घुसखोरी के जो किस्से यूपी, एमपी और राजस्थान में सुने जाते हैं, उस तक तो सीबीआई कभी नहीं पहुंचती क्योंकि उधर मलाई मारो अभियान में भाईचारा है. सारा नैतिकता कानून आदर्श उस केजरी के इर्दगिर्द ही क्यों घूम रहा जो बिना फौज पुलिस के एक छोटे से भूभाग में किसी प्रकार शासन करते हुए दिन रात काट रहा है. : इस मामले में कुछ टिप्पणियां जो फेसबुक पर आई हैं, उसका लिंक दे रहा हूं. पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें>
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से