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अंग्रेजी के अखबार और अंग्रेजी चैनल दिल्ली पुलिस के मुखिया बी.एस. बस्सी से क्यों नाराज हो गए?

दिल्ली की पुलिस के मुखिया बी.एस. बस्सी से कुछ अंग्रेजी के अखबार और चैनल नाराज़ हो गए हैं| उनकी नाराज़ी का कारण यह है कि बस्सी ने अपने सारे पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपना काम हिंदी में करें| उन्होंने कहा है कि हम सारी भाषाओं को सम्मान करते हैं लेकिन हिंदी हमारी मातृभाषा है और राष्ट्रभाषा है| इसके अलावा पुलिस को यदि सीधे जनता की सेवा करनी है तो उसे अपनी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए| उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं कोई अड़चन हो तो अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है|

<p>दिल्ली की पुलिस के मुखिया बी.एस. बस्सी से कुछ अंग्रेजी के अखबार और चैनल नाराज़ हो गए हैं| उनकी नाराज़ी का कारण यह है कि बस्सी ने अपने सारे पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपना काम हिंदी में करें| उन्होंने कहा है कि हम सारी भाषाओं को सम्मान करते हैं लेकिन हिंदी हमारी मातृभाषा है और राष्ट्रभाषा है| इसके अलावा पुलिस को यदि सीधे जनता की सेवा करनी है तो उसे अपनी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए| उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं कोई अड़चन हो तो अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है|</p>

दिल्ली की पुलिस के मुखिया बी.एस. बस्सी से कुछ अंग्रेजी के अखबार और चैनल नाराज़ हो गए हैं| उनकी नाराज़ी का कारण यह है कि बस्सी ने अपने सारे पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपना काम हिंदी में करें| उन्होंने कहा है कि हम सारी भाषाओं को सम्मान करते हैं लेकिन हिंदी हमारी मातृभाषा है और राष्ट्रभाषा है| इसके अलावा पुलिस को यदि सीधे जनता की सेवा करनी है तो उसे अपनी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए| उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं कोई अड़चन हो तो अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है|

बस्सी ने बड़ी व्यावहारिक बात कही है लेकिन अंग्रेजी के पक्षपाती पत्रकारों ने लिखा है कि बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानअल्लाह याने दिल्ली पुलिस का मुखिया अपने गृहमंत्री से भी आगे निकल गया| गृहमंत्री राजनाथसिंह ने सरकारी कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे कम से कम अपने हस्ताक्षर तो हिंदी में करें लेकिन बस्सी कह रहे हैं कि पुलिसवाले सारा काम हिंदी में करें| उ.प्र. में पुलिस का सारा काम हिंदी में ही होता है|

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यह ठीक है कि दिल्ली और उ.प्र. में फर्क है| दिल्ली में भारत की लगभग सभी भाषाओं के बोलनेवाले रहते हैं और हजारों विदेशी भी रहते हैं लेकिन बस्सी ने किसी भी भाषा पर प्रतिबंध नहीं लगाया है| उनका लक्ष्य सिर्फ यह है कि आम लोगों की सुविधा बढ़े| यदि पुलिस थानों और अदालतों में अंग्रेजी चलती है तो आम जनता को अंधेरे में रखना आसान होता है| इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है| न्याय और व्यवस्था जादू-टोना बन जाती है| गरीब, ग्रामीण और वंचित लोगों की जमकर लुटाई और पिटाई होती है| इसीलिए बस्सी को बधाई! वे हिंदी थोप नहीं रहे हैं, उसे सिर्फ प्रोत्साहित कर रहे हैं|

जहां तक हिंदी में दस्तखत करने की बात है, इस आंदोलन को लगभग साल भर पहले मैंने शुरु किया था| मुझे खुशी है कि हजारों लोग अपने दस्तखत अंग्रेजी से बदलकर हिंदी व अपनी मातृभाषाओं में कर रहे हैं| देश के सभी दलों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, आर्यसमाज और सभी साधु-संतों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है| यदि गृहमंत्री राजनाथसिंह इसका समर्थन कर रहे हैं तो उन पर ताना कसना कहां तक उचित है? मैं तो चाहता हूं कि प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और अन्य मंत्री भी इस मामले में आगे बढ़ें|

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लेखक डॉ.वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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