Soumitra Roy : केवल मोदी सरकार ही क्यों, भारत की सभी राज्य सरकारें वही सुनना चाहती हैं जो उनके कानों को सुहाए। ताजा उदाहरण हमारे सहयोगी और मित्र Jean Dreze का है। जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां को दिल्ली इकोनॉमिक्स फोरम में भाग लेने से आखिरी मौके पर शायद इसीलिए रोक दिया गया कि वे ऐसा कुछ कह सकते हैं जो प्रधानमंत्री को पसंद न हो। सच कड़वा होता है। इससे सुनने, बर्दाश्त करने के लिए कलेजा चाहिए, 56 इंच की छाती नहीं। ज्यां के मुताबिक आखिर वक्त पर उनके पास वित्त मंत्रालय से मेल आया कि उन्हें न केवल बोलने, बल्कि फोरम में भाग लेने तक की अनुमति नहीं होगी। अब देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम यह सफाई देते घूम रहे हैं कि यह जेटली का आदेश था। अब तो बिहार हार गए जेटली जी। घमंड छोड़ दो। पप्पू भी धमकाने लगे हैं आपके बॉस को। सबको साथ लेकर चलो। विकास होकर रहेगा। Delhi Economics Conclave has turned into a mutual appreciation society with everyone on the same side.
Anil Singh : शाह-थैलीशाह! जनता बिकाऊ नहीं है.. अगर विज्ञापन व प्रचार पर पैसा बहाकर जनता के वोट जीते जा सकते तो एनडीए को इस बार बिहार में महागठबंधन से दोगुनी सीटें मिलनी चाहिए थीं। मिंट अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनडीए ने इन विधानसभा चुनावों में विज्ञापन व प्रचार पर लगभग 50 करोड़ रुपए खर्च किए जबकि महागठबंधन का कुल प्रचार व विज्ञापन खर्च 25 करोड़ रुपए रहा। लेकिन महागठबंधन को मिलीं 178 सीटें तो एनडीए को 58, यानी उसकी एक तिहाई से भी कम।
पत्रकार और एक्टिविस्ट सौमित्र राय व अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से.