प्रचार से पुरस्कार और पुरस्कार का प्रचार
आज के अखबारों में पूरे पन्ने का एक विज्ञापन है जिसमें भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नवीन और नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समस्त भारत की ओर से बधाई दी है। यह बधाई प्रधानमंत्री को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार “चैम्पियन ऑफ दि अर्थ” से सम्मानित किए जाने के लिए दी गई है। विज्ञापन कहता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पर्यावरण संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम (पर) अंकुश लगाने के प्रयासों में सराहनीय नेतृत्व प्रदान करने के लिए पॉलिसी लीडरशिप श्रेणी में पुरस्कृत किया गया है। विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पर्यावरण संरक्षण : विजन, कार्य एवं मिशन का भी जिक्र है।
इसमें अन्य बातों के अलावा भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के “उन्मूलन” की भी चर्चा है जिसमें कहा गया है कि भारत को पॉलीथीन आदि जैसे सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों से मुक्त कराने की दिशा में भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की संयुक्त राष्ट्र ने प्रशंसा की है। यही नहीं, देश के प्रधानमंत्री ने चार साल से ज्यादा पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जो योगदान किया था उसकी भी चर्चा इसमें है और उनके प्रयास बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं – पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में जल संरक्षण के प्रयास, बहु-आयामी उपायों के फलस्वरूप अहमदाबाद में प्रदूषण में भारी गिरावट, पर्यावरण संरक्षण नीतियों के फलस्वरूप पूरा गुजरात नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का केंद्र बन सका।
डीएवीपी (नाम बदल गया है पर विज्ञापन में यही लिखा है) का यह विज्ञापन अंग्रेजी अखबारों में तो है ही हिन्दी अखबारों में उसका अनुवाद छपा है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे पहले पन्ने से पहले छापा है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस ने अंदर के पन्ने पर छापा है। हिन्दी अखबारों में भी यह विज्ञापन दैनिक भास्कर और दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पेज पर है। करोड़ों रुपए खर्च करके भारत सरकार के तीन मंत्रालयों ने यह विज्ञापन तब छपवाया है जबकि इससे संबंधित खबरें टीवी पर दिखाई जा चुकी थी और व्हाट्सऐप्प के जरिए पहले से घूम रहीं थीं। यही नहीं, दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित एक खबर के अनुसार दो अक्तूबर को राष्ट्रपति भवन में स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम आयोजित किया गया था और इसमें प्रधानमंत्री को सम्मानित करने वाली संस्था, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतरेस भी मौजूद थे।
खबर के मुताबिक, उन्होंने भारत के स्वच्छता अभियान को सराहा जबकि भारत में साफ सफाई का काम नगर निगमों और स्थानीय निकायों का है तथा मुख्य सड़कों और प्रमुख इलाकों को छोड़ दिया जाए तो आम तौर पर कोई सफाई नहीं हुई है। और तो और गैर कानूनी होने के बावजूद लोग सीवर में घुस कर सफाई करते हैं और दिल्ली में ही मर भी जाते हैं। नालियां इस कदर जाम हैं कि जरा सी बारिश में सड़कें चलने लायक नहीं रहती हैं और जाम लग जाता है। संयुक्त राष्ट्र को यह सब नहीं पता है उसने सम्मानित कर दिया तो इसे सरकारी पैसे से प्रचारित करने की क्या जरूरत?
कहने की जरूरत नहीं है कि कायदे से काम किया जाता तो कल के राष्ट्रपति भवन का कार्यक्रम सभी अखबारों में प्रमुखता से मुफ्त में छपता और विज्ञापन की जरूरत ही नहीं पड़ती। पर कल दिन भर भारत सरकार देश भर से आए किसानों से दिल्ली सीमा पर जूझती रही और संख्या में किसान इतने ज्यादा थे कि उन्हें रोकने के लिए लाठी चलाने, आंसू गैस और पानी की धार छोड़ने जैसे तमाम उपाय किए गए जो बड़ी खबर बनी और आज देश भर के तमाम अखबारों में फोटो के साथ पहले पन्ने पर हैं। यहां तक कि कोलकाता के टेलीग्राफ ने शहर में एक विस्फोट में एक बच्चे की मौत के बावजूद दोनों खबरों को मिलाकर लीड बनाया है और व्यंगात्मक र्शीर्षक है गांधी ट्रिब्यूट्स (गांधी को श्रद्धांजलि)। इसके ‘ट्रिब्यूट्स’ में एक ‘आर’ अलग से जोड़ा गया है जो गांधी जयंती पर हुई बर्बरता के लिए है।
कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि सरकार का मीडिया मैनेजमेंट बहुत कमजोर है। कल सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि दो अक्तूबर को दिल्ली आने की किसानों की योजना पहले से थी और उसे रोकने या उससे निपटने की कोई व्यवस्था पहले नहीं की गई जिसका नतीजा हुआ कि गांधी जंयती के दिन देश के जवान और किसान आमने सामने रहे। जवानों ने कई बूढ़े और बुजुर्ग किसानों को लहू-लुहान किया जो अपने आप ऐसी खबर बनती है जो राष्ट्रपति भवन में होने वाले समारोह से महत्वपूर्ण और ज्यादा पठनीय है। लिहाजा सरकार अपनी बात और अपना प्रचार पीआईबी जैसा विभाग रहते हुए पैसे खर्च करके बता रही है। पैसा वह जो पेट्रोलियम उत्पादों को अपने ही प्रिय टैक्स प्रणाली से अलग रखकर भारी टैक्स के जरिए वसूला जा रहा है और जिसपर अलग से किरकिरी हो रही है। इस साल आंट्रप्रेन्यूरियल विजन की श्रेणी में कोचिन इंटरनेशनल एयरपोर्ट को चुना गया है। अच्छा होता सरकार इस विज्ञापन में इसका भी जिक्र करती पर ऐसा लगता है कि सरकार गुजरात से आगे बढ़ ही नहीं पाई है।
पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]
Dheeraj
October 3, 2018 at 7:50 pm
Ye bik gaye h government! Inka kuch nhi hoo sekta..