विवेक हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं! अगर आपकी हत्या पर 25 लाख का मुआवजे मिले तो आपको इससे ज्यादा क्या चाहिए जनाब. लखनऊ में पुलिस की गोली और पुलिस से मिलने वाली मौत के बदले पच्चीस लाख रुपये दिए जाते हैं. अब भी नहीं समझे तो आपके समझते समझते घर के दो लोगों को 25-25 लाख का मुआवजा और घर के सदस्य को सरकारी नौकरी मिल ही जाएगी, तब शायद आप समझ जाएंगे मैं क्या कह रहा हूं.
वैसे जिसे ये कहते हैं कानून व्यवस्था और गुंडों में डर पैदा करने के लिए किया गया प्रयास, मैं उसे हत्या कहता हूं. ऐसे हत्यारे दरिंदों के लिए फांसी की मांग करता हूं. ठीक वैसे ही जैसे रेप के केसों में पुलिस ने 24 घंटों के भीतर चार्जशीट पेश की और जज साहब ने 3 दिन के अंदर उसे सजा ए मौत दे दी.
इनका सिर तब नहीं झुका जब नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत ने ये कह दिया कि यूपी जैसे राज्यों की वजह से देश पिछड़ रहा है. तब शायद यूपी सरकार की जुबान को लकवा मार गया था. लेकिन देखिए एक सरकारी हत्या पर कैसे 25 लाख के मुआवजे का मुंह फाड़ दिया. जैसे कार्यकर्ताओं ने पैसा कमा के दिया था. पहले किसी की हत्या कर दो, फिर गुंडई के दम पर उसको डरा के कहना- ले पैसा ले, नहीं तो तुझको भी उड़ा देंगे.
कभी हम कहते थे कि मुस्काराइये कि आप लखनऊ में हैं. आज लगता है कि मुस्कुराना मुनासिब नहीं है. शर्म से सिर झुकाना ज्यादा जरूरी है. जो सरकार 1 करोड़ 33 लाख घरों तक बिजली ना पहुंचा पाई हो, उससे सवाल कैसा है कि ऊर्जा के लिहाज से आपने बहुत अच्छा काम किया है? जो केंद्र सरकार मजदूरों के नाम पर जमा किए गए 29 हजार करोड़ रुपए को सही जगह खर्च ना कर पाई हो, उससे सवाल कैसा है कि तुम रात को भूखे तो नहीं सोते हो? जिस केंद्र सरकार में बीते 3 सालों में 13 लाख 87 हजार दुकानों पर ताले लग गए हों, उससे ये सवाल कैसा है कि तुमने हमारी सरकार बनाकर क्या पाया?
जिस प्रदेश में रोजगार नहीं मिलने पर हर घंटे एक छात्र सुसाइड कर लेता हो, उससे सवाल कैसा है कि तुम्हे देश की युवा की फिक्र कितनी है? जो प्रदेश सरकार आज भी सांप बिच्छू जैसे मामूली डंक से साल भर में 5 हजार लोगों की जान ना बचा पाए, उससे ये सवाल कैसा है कि अच्छे दिन आ गए हैं ना?
यूपी में रहते हैं तो सड़क पर चलने वाले जानवरों से सावधान रहिए. इनसे लड़ेंगे तो ना मुआवजा मिलेगा और ना ही जिंदगी. आप दोनों हारेंगे. ये सरकार कोर्ट में कहेगी कि हमको जानवरों को भी तो बचाना है. हां हुजूर आपने सही कहा. आपको जानवरों को ही बचाना है. हमने भी सरकार जानवरों को बचाने के लिए ही चुनी है और कोर्ट का काम तो जानवरों को माफ करना है.
हम कैसे भूल सकते हैं कि यूनिक प्रदेश में तो भगदड़ मचने से हर साल सैकड़ों लोगों की जान जाती है. फिर ये सवाल कैसे पूछेंगे कि उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में कोई कसर तो नहीं छूटी? आप कैसे भूल सकते हैं अखबार के कोने में छपने वाली करंट लगने से होने वाली 1 हजार से ज्यादा मौतों को, जिस पर सरकार का खजाना अपने मुंह में जीरा रखकर चुप हो जाता है. पानी में डूबकर ऐसे मरने वालों के नाम कौन सा शहादत का पुरस्कार बंटता है. सम्मान तो तब होता है जब किसी निर्दोष को बीच चौराहे पर गोली मार दी जाए और माता पिता बिलखते रहें.
क्या आपने कभी सोचा कि छत से गिरने से, लू लगने से, ठंड लगने से करीब 10 हजार लोगों की मौत होती है लेकिन इसकी फिक्र किसको है जनाब? अगर जिक्र होता भी है तो हर साल कर्ज की वजह से मरने वाले किसानों का, क्योंकि वो सियासत का अभिन्न अंग हैं. लेकिन मुंह पर ताला पड़ जाता है इनको ये कहते हुए कि उत्तम प्रदेश में औसतन 10 हजार लोगों की जान सड़क हादसों में जाती है. इनसे तो बात करवा लो हिंदुओं की, इनसे बात करवा लो क्षत्रपों की, इनसे बात करवा लो स्मार्ट सिटी की. तुम्हारा प्रदेश तुम्ही को मुबारक, जहां कानून मौत बांटता हो और सरकारें मुआवजा.
अनुराग सिंह
प्रोड्यूसर
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