मोदी के आधार कार्ड ने आखिर ले ली संतोषी कुमारी की जान
विशद कुमार, रांची
रांची से लगभग 150 किमी दूर सिमडेगा जिला है। इस जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर जलडेगा प्रखंड का कारीमाटी गांव आजकल सुखियों में है। गांव की कोयली देवी की 11 वर्षीय बेटी संतोषी कुमारी की मौत भात—भात रटते रटते हो गई थी, क्योंकि उसे कई दिनों से खाना नहीं मिल पाया था। उसके परिवार का राशन कार्ड इसलिए रद्द हो गया था कि राज्य की रघुवर सरकार द्वारा साढ़े 11 लाख अवैध राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं जिसमें से एक राशन कार्ड कोयली देवी का भी था।
उल्लेखनीय है कि रघुवर सरकार द्वारा ऐसी अव्यवहारिक नीतियों का खामियाजा राज्य की गरीब, दलित, पीड़ित, आदिवासी जनता ही भुगत रही है। जो अवैध राशन कार्ड धारी थे उनकी सेहत पर सरकार की उक्त नीति का कोई असर नहीं पड़ा है। इससे संबंधित खबरें स्थानीय अखबारों में टूकड़े टूकड़े में आती रही हैं कि नेटवर्क नहीं रहने एवं आधार से लिंक नहीं होने के कारण अमुक गांव में उपभोक्ताओं को राशन नहीं मिल पा रहा है। यह कि फलां गांव के कई गरीब, दलित, आदिवासी परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया है, जिसे सरकारी स्तर से कोई तरजीह नहीं दी गई। कहना ना होगा कि प्रशानिक लापरवाही एवं सरकारी अड़ियलपन का ही नतीजा है संतोषी कुमारी की मौत।
बताते चलें कि इस तरह की मौतें रोज व रोज हो रही हैं। जो मौतें किन्हीं सूत्रों द्वारा सुर्खियों में आ गईं तो उसे हम जान पाते हैं वर्ना ऐसे प्रभावित लोगों का दर्द उन्हीं तक सिमट कर रह जाता है। दरअसल संतोषी कुमारी ने आठ दिन से खाना नहीं खाया था। नतीजतन बीते 28 सितंबर को भूख से उसकी मौत हो गई। इस घटना का खुलासा खाद्य सुरक्षा को लेकर काम करने वाली संस्था के सदस्यों ने किया। उनके अनुसार मृतका के घर में पिछले 8 दिन से राशन ही नहीं था। वहीं उसकी मां कोईली देवी ने बताया कि राशन कार्ड से आधार कार्ड लिंक नहीं होने की वजह से फरवरी में ही उसका राशन कार्ड रद्द हो गया था, जिसके कारण उसे पीडीएस स्कीम का सस्ता राशन नहीं मिल रहा था। 8 दिनों तक खाना नहीं खाने पर संतोषी की तबीयत खराब हो गई, भूख के कारण उसके पेट में काफी दर्द हो रहा था।
संतोषी की मां कोयली देवी ने बताया कि 28 सितंबर की दोपहर बेटी ने पेट दर्द होने की शिकायत की। वैद्य को दिखाया तो उन्होंने कहा कि इसको भूख लगी है। खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी। घर में राशन का एक दाना नहीं था। इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी। उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा। उसकी मां घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनाई और बच्ची को पिलाने की कोशिश की लेकिन तब तक भूख से छटपटाते हुए उसने दम तोड़ दिया।
कोयली देवी ने बताया कि स्कूल में संतोंषी मिड-डे मील से दोपहर का खाना खा लेती थी, लेकिन छुट्टियां होने की वजह से स्कूल बंद था और इस कारण वह कई दिन से भूखी थी और इसी भूख की वजह से उसकी जान चली गई। दिल को झकझोर देने वाली इस घटना से जेहन में कई सवालों में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या सच में इंसानियत मर गई है। छह महीने पहले पीड़ित परिवार का सरकारी राशन कार्ड सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह आधार से लिंक नहीं था। इस मामले में राइट टू फूड कैंपेन के एक्टिविस्ट्स का कहना है कि अगर पीड़ित परिवार को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम के तहत राशन दे दिया जाता तो बच्ची को 8 दिनों तक भूखा नहीं रहना पड़ता और उसकी जान नहीं जाती।
कारीमाटी गांव की रहने वाली मृतक संतोषी कुमारी के परिवार के पास न तो जमीन है, न कोई नौकरी और न ही कोई स्थायी आय है। इसके कारण उसका परिवार पूरी तरह से नेशनल फूड सिक्यूरिटी के तहत मिलने वाले राशन पर ही निर्भर था और इसी से पूरा परिवार को भोजन मिल रहा था। मालूम हो कि संतोषी के पिता का दिमागी हालत ठीक नहीं होने के कारण वह काम करने में अक्षम है जिस कारण मां दातुन बेच कर हफ्ते भर में 80 से 100 रुपये की कमाई कर पाती है और किसी तरह घर का गुजारा करती है। इसके अलावा गांव के लोग जानवरों को चराने के बदले उन्हे चावल दे दिया करते हैं।
आधार के साथ राशन कार्ड लिंक न होने पर उन्हें राशन देना बंद कर दिया गया था। इससे पिछले आठ दिनों से घर में अन्न का एक दाना नहीं था और न ही इतने पैसे थे कि वे राशन खरीद सकते। घर के सभी लोग भूखे थे लेकिन बच्ची यह भूख बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने दम तोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद झारखंड सरकार ने जनता को सरकारी सुविधा प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड जरूरी किया हुआ है। वहीं 30 सितंबर को लातेहार के डिस्ट्रिक्ट सप्लाई ऑफिसर ने लोगों को धमकी दी थी कि अगर उनका नवंबर तक राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हुआ तो उनका नाम पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन लिस्ट से हटा दिया जाएगा। झारखंड और राजस्थान में ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें आधार कार्ड का हवाला देते हुए राशन नहीं दिया जा रहा है। वहीं कुछ सामाजिक संगठनों का कहना है कि राज्य सरकार आधार को हर कार्य में अनिवार्य कर साल 2013 के सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश की अवहेलना है जिसमें कहा गया था सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए आधार को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री ने मांगी रिपोर्ट… बच्ची की मौत पर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जांच के आदेश दिए हैं। वे 17 अक्टूबर को सिमडेगा पहुंचे थे। उन्होंने जिले के डिप्टी कमिश्नर मंजूनाथ भजंत्री से पूरे मामले की जानकारी ली। सीएम ने पूछा कि मीडिया में जो भूख से मौत की खबर चल रही है, उसका सच क्या है। इसपर डीसी ने बताया कि बच्ची की मौत मलेरिया से हुई है। तीन सदस्यीय जांच कमिटी ने मौत की जांच की है। सीएम ने पूरे मामले की डीसी को खुद जांच करने के ऑर्डर दिए और कहा है कि 24 घंटे के अंदर इसकी रिपोर्ट दी जाए। दूसरी तरफ प्रतिपक्ष के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रघुवर सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि यह सरकार नहीं सरकस है। वैसे तो मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि रिपोर्ट में आने के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवायी की जाएगी। उन्होंने पीड़ित परिवार को 50 हज़ार की सहायता देने का निर्देश भी दिया है। दूसरी तरफ सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने डीसी को भीतरी आदेश यह दिया है कि मामले पर भूख से हुई मौत की प्राथमिकता को जैसे भी हो समाप्त करें। यही वजह कि जिला प्रशासन कोयली देवी से झूठा बयान दिलाने की पूरी कोशिश में लगा है कि संतोषी की मौत मलेरिया की बीमारी से हुई है। उल्लेखनीय है कि झारखंड देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है, यहां गरीब परिवारों को प्रत्येक राशन कार्ड के बदले 35 किलोग्राम चावल देने का प्रावधान है। मामले पर मीडिया से बात-चीत करते हुए झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री ने कहा कि ऐसे साफ निर्देश दिए गए हैं कि जिन लोगों के राशन कार्ड आधार कार्ड से नहीं जुड़े हुए हैं उन्हें भी राशन मिलना चाहिए। इस मामले की छानबीन की जाएगी साथ ही मैं अपने आदेश की एक और कॉपी फिर से भिजवा रहा हूं ताकि सनद रहे। अभी भी परिवार की हालत ठीक नहीं बताई जाती है। पूरा परिवार अभी भी आंगनबाड़ी से मिले खाने के पैकेट के भरोसे जिंदा है। सरकार हर काम के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य कर रही है। बैंक खातों से लेकर हर छोटे- बड़े काम के लिए आधार कार्ड अनिवार्य होता जा रहा है।
स्थानीय राशन डीलर खाद्य सामग्री देने से इनकार कर दिया था… स्थानीय समाचार रिपोर्टों और गैर-लाभ अधिकार खाद्य अभियान और नरेगा वॉच के सदस्यों की एक स्वतंत्र तथ्य-रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय राशन डीलर ने संतोषी के परिवार को पिछले छह महीनों से उनके राशन के आधार पर खाद्य सामग्री देने से इनकार कर दिया था। कारण यह बताया गया कि उनका राशन कार्ड आधार संख्या से जुड़ा नहीं था। यह 2013 के बाद से जारी किए गए कई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। फरवरी में केंद्रीय सरकार के एक आदेश के बाद सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सब्सिडी वाले अनाज को लेने के लिए आधार अनिवार्य बना दिया गया है। कार्यकर्ताओं के मुताबिक, यह 2013 के बाद से जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार संख्या का अधिकार अनिवार्य नहीं किया जा सकता। विशेषकर सब्सिडी वाले अनाज खरीदने के लिए। इसके बावजूद, झारखंड ने नागरिकों पर आधार को और अधिक कठोर रूप से लागू करना जारी रखा है।
आधार से जुड़ा न होने के कारण परिवार का राशन कार्ड लिस्ट से हटाया गया… सिमडेगा के जलडेगा ब्लॉक के ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर ने पुष्टि की कि संतोषी के परिवार के राशन कार्ड को हटा दिया गया था क्योंकि यह आधार से जुड़ा नहीं था। 21 अगस्त को जिला कलेक्टर द्वारा आयोजित एक जनता दरबार में सार्वजनिक सुनवाई के दौरान रद्द किए गए राशन कार्ड की जारी की गई थी। उसके बाद 1 सितंबर को संतोषी कुमारी की माँ कोयली देवी ने एक लिखित शिकायत पत्र जिला आपूर्ति अधिकारी को भेज कर नया राशन कार्ड प्राप्त करने का अनुरोध किया था। फिर भी नया राशन कार्ड पूरे महीने नहीं बनाया गया। संतोषी की मौत के दो सप्ताह बाद प्रशासन की नींद तब खुली जब उसकी मौत पर पूरे राज्य में हंगामा हुआ और नया राशन कार्ड उसके घर पहुंचा। स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, ब्लॉक अधिकारियों ने कहा है कि यह इस वजह से हुआ क्योंकि इस दौरान ऑनलाइन पोर्टल काम नहीं कर रहा था।
राज्य सरकार को लक्ष्य हासिल करने की जल्दबाजी है… धीरज कुमार ने कहा “यह एक आम समस्या है जिसे हम झारखंड में देख रहे हैं – भले ही लोगों के आधार कार्ड हों फिर भी अधिकारी उनके राशन कार्ड से लिंक करने में सक्षम नहीं हैं। क्योंकि इंटरनेट नेटवर्क अक्सर ख़राब रहते हैं, उनके सर्वर काम नहीं करते। तकनीकी ऑपरेटर अनुपस्थित है या पोर्टल सिर्फ महीने के कुछ दिनों में काम नहीं करता है। ” वो कहते हैं, उन्हें संदेह है कि पिछले कुछ महीनों में योजना के मुकाबले कई पात्र सार्वजनिक वितरण योजना लाभार्थियों को हटा दिया गया है, क्योंकि राज्य सरकार को लक्ष्य हासिल करने की जल्दबाजी है।
खाद्य और नागरिक आपूर्ति के राज्य सचिव के दावे और सरकारी आंकड़े मेल नहीं खाते… 7 सितंबर को एक संवाददाता सम्मेलन में, खाद्य और नागरिक आपूर्ति के राज्य सचिव विनय चौबे ने घोषणा की थी कि झारखंड ने राशन कार्ड के साथ 100% आधार सीडिंग हासिल की है। इस प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने दावा किया था कि 11.6 लाख लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली सूची से हटा दिया गया है क्योंकि वे नकली या नकली राशन कार्ड रखे थे। हालांकि, 2.3 करोड़ झारखंड के नागरिक जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आते हैं, में सरकार के खुद के ऑनलाइन उपलब्ध आंकड़े दिखाते हैं कि केवल 1.7 करोड़ लोगों ने आधार संख्या में वरीयता दी है।
खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने अपनी ही सरकार की ही कार्यप्रणाली पर उठाए गंभीर सवाल… संतोषी कुमारी की मौत के बाद राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने अपनी ही सरकार की ही कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। वैसे सरयू राय ने वही बात कही है, जिसकी चर्चा पिछले कई महीने से ब्यूरोक्रेसी में जोरशोर से हो रही थी। उन्होंने सीएम मुख्य सचिव राजबाला वर्मा की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि मुख्य सचिव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये वैसे लोगों का राशन कार्ड को रद्द करने का निर्देश दिया था, जिनके पास आधार कार्ड नहीं है। मुख्य सचिव का निर्देश सुप्रीम कोर्ट की आदेश की अवमानना है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये कहा था कि आधार कार्ड नहीं होने से सरकार किसी को राशन के लाभ से वंचित नहीं कर सकती।
सरयू राय ने यह भी कहा कि विभागीय मंत्री होने के बाद भी मेरी बात नहीं सुनी जाती है। इस घटना की स्वतंत्र जांच करने वाली फैक्ट-फाइंडिंग टीम का आरोप है कि परिवार को 6 महीने से राशन नहीं मिला, क्योंकि राशन दुकान वाला बताता रहा कि परिवार का राशन कार्ड आधार नंबर से जुड़ा नहीं है। खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अफसरों का कहना है कि राशन दुकान वाले ने जो किया, वह बिल्कुल नाजायज है कहीं भी आधार को राशन कार्ड के लिए अनिवार्य नहीं बनाया गया है। जाहिर है, ये लापरवाही आपराधिक है जिसकी वजह से एक बच्ची की जान चली गई।
चूहे खाने को मजबूर बच्चे… बताते चले कि झारखंड के पहाड़ियों पर एक इलाका ऐसा भी है जहां के बच्चे मिड डे मिल के बजाय चूहे, खरगोश और पक्षी खाते हैं। यहां के स्कूलों की हालत बहुत खराब है। स्कूलों से टीचर नदारद हैं। कई बार तो बच्चे साल में एक-दो बार ही स्कूल आते हैं। यहां के बच्चे संक्रमित खान-पान के चलते बीमार भी पड़ रहे हैं। टीचर नहीं हैं तो साफ है कि मिड डे मील न बन रहा और न ही बच्चों को मिल पा रहा है।
ऐसा भी नहीं है कि इन बच्चों को खरगोश, चूहे और पक्षी बिना कुछ किए खाने को मिल जाएं। इन बच्चों को बकायदा शिकार करना पड़ता है और उसके बाद इन्हें इस तरह का भोजन नसीब होता है। सरकार जहां देशभर में मिड डे मिल चलाने की बात करती है, वहीं झारखंड के इस इलाके की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सरकार अक्सर बयान देती दिखती है कि हमने तो पैसा भेज दिया है, लेकिन बच्चों को मिड डे मील मिल रहा है या नहीं इसकी हकीकत जानना किसी की जिम्मेदारी नहीं है क्या?
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों मिड डे मील में आधार नंबर को लेकर केंद्र सरकार को खासी आलोचना का सामना करना पड़ा। इसके बाद मोदी सरकार ने इस पर यू-टर्न लिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि किसी को भी आधार संख्या के अभाव में सब्सिडी योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं रखा जाएगा और अन्य पहचान प्रमाण पत्र स्वीकार किए जाएंगे। विभिन्न विपक्षी दलों ने इस पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद केंद्र का यह कदम सामने आया था। इससे पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रवृत्तियों और मिड डे मील आदि के लिए आधार को अनिवार्य बनाए जाने की घोषणा की थी। वैसे पूरी दुनिया समेत भारत भुखमरी की गंभीर स्थिति से जूझ रहा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 119 देशों में भारत 100वें स्थान पर है। वहीं देश में कुपोषण के चार इंडिकेशन में झारखंड पहला स्थान पर है जो झारखंड दशा को बयां करने के लिये काफी है।
विशद कुमार
रांची
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