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पत्रकारों की ब्लैकमेलिंग से परेशान है हर आम-ओ-खास!

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में कुशीनगर महोत्सव के दौरान समाज के तमाम गणमान्य जनों, मंत्रीगण और साहित्य से जुड़ी  हस्तियों की उपस्थिति में लेखक पारस जायसवाल को उत्तर प्रदेश रत्न से सम्मानित किया गया। ७५ से ज्यादा धारावाहिकों के लेखक पारस जायसवाल ने सिर्फ दूरदर्शन के लिए ही पैंतालीस सीरियल लिखे हैं। निर्माता निर्देशकों के पसंदीदा लेखक रहे पारस को हर विषय की पकड़ है। इसमें कॉमेडी भी है, थ्रिलर भी है, साइन्स फिक्शन भी है, मैथोलॉजी और हिस्टोरिकल सीरियल भी हैं। हर तरह के विषय पर उन्होंने कलम चलाई है और उस विषय के साथ न्याय किया है।

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ब्लैकमेलिंग के खिलाफ कोई भी पत्रकार संगठन कभी नहीं बोला! अब नौबत यहां तक आ गई है कि सरकार और गैर सरकारी व्यवसायिक संस्थायें ब्लैकमेलिंग वाली पत्रकारिता से बचने की तरकीबों पर काम करने लगे हैं। पत्रकारिता के बलात्कार के इस तमाशे के दौरान ईमानदार पत्रकार और इनके संगठन अभी भी आंख, कान और मुंह बंद किये हैं। दूसरी के स्याह-सफेद में झांकने के प्रोफेशन पत्रकारिता में सक्रिय ये जिम्मेदार पत्रकार अपने घर में घुसे बहुरूपियों को खदेड़ने की जिम्मेदारी नहीं निभाते।

गली-गली में कुकुरमुत्तों की तरह फैले पत्रकार संगठनों में क्या कोई संगठन संभावनाओं का फूल बनकर खिलना चाहता है! भीड़ में अपनी अलग पहचान बनाना चाहता है! यदि हां, तो वो पत्रकारिता को सबसे ज्यादा कलंकित कर रही ब्लैकमेलिंग के खिलाफ तलवार उठा ले। सबसे बड़ी जरूरत तो इस बात की है कि वास्तविक पत्रकारिता की नदी को स्वच्छ रखने के लिए जबरन पैदा होने वाली जलकुंभी को हटाया जाये। पत्रकारिता की फसल की उन्नति के लिए खरपतवार से बचने की फिक्र की जाये।

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पत्रकारों के अधिकारों और उनकी जायज मांगों के समाधान के लिए पत्रकार संगठनों की जरूरत पड़ती है। संगठन सरकार से पत्रकारों की जायज मांगों को पूरा करने का आग्रह करते भी हैं, लेकिन कई बार मांगे पूरी नहीं होतीं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पत्रकारों का इकबाल नहीं रहा। इनका रसूक़, सम्मान और गुडविल खत्म होती जा रही है। सड़क छाप फर्जी पत्रकारों से लेकर फर्जी पत्रकार संगठनों की बाढ़ का पानी बढ़ता जा रहा है। पत्रकारिता के नाम पर फर्श की डग्गामारी से लेकर अर्श सी ऊंचाइयों पर काबिज़ न्यूज चैनल्स और अखबारों के बड़े-बड़े कुछ पत्रकार भी बड़ी ब्लैकमेलिंग कर रहे हैं। निचली जमात में तो ये अंधेरगर्दी है कि जिन्हें कलम पकड़ना भी नहीं आता वो पत्रकार का मुखौटा लगाकर पत्रकारिता के नाम पर धंधेबाजी कर रहे है।

वास्तविक संगठन और असली पत्रकार इस माहौल से आहत जरूर हैं लेकिन ये भी पत्रकारिता की बदनामी की तेज़ होती बयार के भागीदार हैं। आज यदि वास्तविक पत्रकारों का कोई संगठन पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग के खिलाफ कदम उठाये तो संगठनों की भीड़ में वो संगठन संभावनाओं के फूल की तरह खिल भी सकता है। भीड़ से अलग दिख कर अपनी अच्छी पहचान बना सकता है।

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सरकारी अमले से लेकर गैर सरकारी सैक्टर आज पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग से परेशान है। ये पीड़ा इतनी बढ़ गई है कि समाज हर पत्रकार को हेय दृष्टि से देखने लगा है। ब्लैकमेलिंग के शिकार लोगों/विभागों की शिकायत/फरियाद सुनने के लिए आजतक कोई भी संगठन सामने नहीं आया। कोई भी पत्रकार संगठन यदि आगे आये और ब्लैकमेलिंग करने वाले पत्रकारों को सजा दिलवाने का काम करे तो इस तरह की पहल से पत्रकारिता की लुटती इज्जत को बचाया जा सकता है।

लेकिन दुर्भाग्य कि आज तक किसी एक भी पत्रकार संगठन ने इस दिशा में कभी कोई कदम नहीं उठाया । नतीजतन आज नौबत ये आ गई है कि तमाम व्यवसायिक संस्थानों में पेड दबंग इसलिए बैठाये जाने लगे हैं कि वो वसूली करने आये तथाकथित पत्रकारों को खदेड़ सकें। यही नहीं सरकारी विभाग भी ब्लैकमेलिंग और धन उगाही करने वाले पत्रकारों से इतने आजिज़ हो गये हैं कि इनसे बचने के लिए सरकारी सर्कुलर जारी होने लगे हैं।

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आश्चर्य की बात है कि दुनिया का पर्दाफाश करने वाले.. सच को सच और झूठ को झूठ लिखने वाले.. खोजी पत्रकारिता के तहत चोरों-डाकुओं और आतंकवादियों की निशानदेही करने वाले अपने घर में घुसे काले चोरों को क्यों नहीं पकड़ पा रहे! इसका एक सबसे बड़ा कारण सामने आ रहा है। कई ठीक-ठाक अखबार-चैनल अपनी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के लिए खूब पैसे वाले या अच्छे लाइजनर्स को गिव एंड टेक के सौदे में पत्रकार की मान्यता देकर इन्हें खुले सांड की तरह छोड़ देते है। अब ये पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग और वसूली नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे!

यही खेल पत्रकार संगठनों में भी हो रहा है। खालिस फर्जी पत्रकारों के संगठन तो छोड़िये वास्तविक पत्रकारों के संगठनों में भी फाइनेंसर के तौर पर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को बतौर पत्रकार जोड़ा जा रहा है।

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शिकायत के आधार पर यदि सरकार या प्रेस काउन्सिल आफ इंडिया इसकी जांच करे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। पत्रकारों की अग्रिम कुर्सी पर बैठने वाले इन कथित पत्रकारों की पत्रकारिता की बैकग्राउंड ही पूछ लीजिए तो ये देश के 4-6 अखबारों में काम का अनुभव गिना देंगे। लेकिन इनके पास किसी भी कायदे के/जाने पहचाने/पढ़े जाने वाले अखबार से जुड़े होने का रिकार्ड/प्रमाण या खबर की कटिंग वगैरह नहीं मिलेगी।

लेखक नवेद शिकोह लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और पोलिटिकल एक्टिविस्ट हैं. उनसे संपर्क 8090180256 के जरिए किया जा सकता है.

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इसे भी पढ़ें…

प्रधानों और ब्लाक-तहसील स्तर के अधिकारियों से उगाही करने वाले पत्रकारों की लिस्ट बनेगी

https://www.youtube.com/watch?v=UmK1ihBhbN0

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4 Comments

4 Comments

  1. मयंक साहू

    June 6, 2019 at 11:17 am

    जिला बदायूं में भी ग्राम स्तर पर ऐसे हजारो पत्रकार हैं जिनका काम सही खबर छापना नहीं होता वरन किसी भी तरह से शिकार फासना होता है ये सरकारी कर्मचारियों के नित्य के कार्यो में जान बूझ कर कोई कमी देखते रहते हैं और कहीं कोई कमी मिल जाये तो उस कर्मचारी को खबर न छपने देने के लिए उगाही के लिए बुलाते हैं ऐसे लोगो के विरुद्ध कोई तरीका हैं क्या

    • Chaitanya singh

      August 21, 2021 at 6:40 am

      Rae bareli me bhi ye smsya है क्या किया जाय

  2. Arvind yadav

    April 11, 2022 at 9:01 pm

    Sabse jyada yahi samasya hai. Dist.sambhal ke Nagar Panchayat Gawan me bahut hi Farji patrakaro ki bad aa gayi hai. Inme mukhya Patra kar.. Uttam Dixit hindustani. Bhupendra Rana. lalla khan salmani in 3 logo ka group logo se basooli kar rahe hai jabran sabse badi samshya….

  3. राजन शर्मा

    April 12, 2022 at 10:43 am

    महोदय
    पत्रकारिता की आड़ में परेशान किया जा रहा है
    उनका शासन प्रशासन से गठजोड़ है जिस कारण सुनवाई नहीं होती हैं मैं खुद फसा हुआ हूँ लोकपाल जन सुनवाई में शिकायत करने पर पुलिस के पास जाने को कह रहे है जहाँ कोई सुनवाई नहीं होनी है क्या करूँ किसके पास जाऊँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है

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