मुंबई : ”जिस देश में हर बच्चे का मां से लोरी सुनना शाश्वत सत्य है, वहां कविता कितनी भी प्रगतिशील हो जाय, गीत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. छंद का पताका फहरानेवाली अनुष्का जैसी पत्रिकायें अपने आपमें एक आंदोलन हैं जिनमें भाग लेकर हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिये.” उक्त बातें नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने हिन्दी के वरिष्ठ गीतकार डॉ.सुरेश (लखनऊ) को चौथा अनुष्का सम्मान प्रदान करते हुये कही.
दोपहर का सामना के संपादक प्रेम शुक्ल ने कहा कि विभिन्न धर्मों ने अपनी भाषा की सर्वोत्तम कृतियों को अपने धर्मग्रंथों के रूप में चुना जो छंदबद्ध हैं. हमारे युगों की धरोहर छंदों में ही सन्निहित है. अनुष्का द्वारा दिया जा रहा यह सम्मान उसी परंपरा का सम्मान है. आधुनिक कविता तो मुंबई के यातायात व्यवस्था की तरह जटिल होती जा रही है. अनुष्का के संपादक रासबिहारी पाण्डेय ने गीत को अप्रासंगिक बताये जानेवाले वक्तव्यों पर तंज करते हुये कहा कि जिन कविताओं को लिखने वाले स्वयं याद नहीं रख पाते उन्हें समाज कैसे याद रख पायेगा.
तकनीक के विकास के साथ साथ गीत का दायरा और भी व्यापक होता जा रहा है. हिंदी सिनेमा में सौ वर्षों बाद भी गीत की जगह कोई अन्य विधा नहीं ले पायी है. इस अवसर पर डॉ. सुरेश ने लगभग एक घंटे तक अपने गीतों के मधुर पाठ से उपस्थित जन समुदाय को भाव विभोर कर दिया. समारोह में पं.किरण मिश्र, अभिजीत राणे, ओमप्रकाश तिवारी, उमाकांत वाजपेयी, राजेश विक्रांत, आफतब आलम समेत मुंबई महानगर में कला, साहित्य एवं संस्कृति जगत से जुड़ी अनेक शख्सियतों की महत्वपूर्ण सहभागिता रही. समारोह का संचालन आलोक भट्टाचार्य ने किया.
प्रेस विज्ञप्ति