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मध्य प्रदेश

एमपी में अब मंत्रालय परिसर में धरना-प्रदर्शन पर लगेगा प्रतिबंध

मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का डऱ गहराते जा रहा है। इन दिनों वे हर उस आवाज को जो उनके विरोध में उठती है सत्ता की ताकत से कुचल देना चाहते है। शिवराज सरकार ने हाल ही में एक ऐसा तुगलकी फैसला लिया है जिसके चलते अब किसी भी व्यक्ति या संगठन को राजधानी के मंत्रालय परिसर में किसी भी प्रकार के धरना-प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी। लोकतंत्र में धरना-प्रर्दशन आमजन का हक होता है। लोकतंत्र में अपनी मांगों के समर्थन में अहिंसक तरीके से कानून के दायरे में रह कर धरना-प्रदर्शन इंसान का अधिकार है। गर यह अधिकार है तो इसकी हिफाजत की जवाबदेही भी सरकार की ही बनती है।

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मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का डऱ गहराते जा रहा है। इन दिनों वे हर उस आवाज को जो उनके विरोध में उठती है सत्ता की ताकत से कुचल देना चाहते है। शिवराज सरकार ने हाल ही में एक ऐसा तुगलकी फैसला लिया है जिसके चलते अब किसी भी व्यक्ति या संगठन को राजधानी के मंत्रालय परिसर में किसी भी प्रकार के धरना-प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी। लोकतंत्र में धरना-प्रर्दशन आमजन का हक होता है। लोकतंत्र में अपनी मांगों के समर्थन में अहिंसक तरीके से कानून के दायरे में रह कर धरना-प्रदर्शन इंसान का अधिकार है। गर यह अधिकार है तो इसकी हिफाजत की जवाबदेही भी सरकार की ही बनती है।

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सत्ता शासकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि लोग अभिव्यक्ति के अपने अधिकार का प्रयोग सहज रूप से कर सके इसके लिए उन्हें समुचित जगह और अवसर प्रदान करना सरकार का नैतिक धर्म है। प्रदेश का केंद्र भोपाल है। भोपाल में भी जनता की आवाज को सताधारियों तक पहुंचाने का एकमात्र स्थान मंत्रालय परिसर है। लोग अपनी मांगें और शिकायतें लेकर बड़ी संख्या में यहां पहुंचेंगे ही। लेकिन अब शिवराज सरकार ने पूरा-पूरा प्रबंध कर लिया है कि किसी भी हाल में यहां लोगों की आवाज को बुलंद होने से पहले कुचल दिया जाए। इस संबंध में राज्यमंत्री लालसिंह आर्य ने सामान्य प्रशासन विभाग के काम की समीक्षा के दौरान एक आदेश जारी करते हुए स्पष्ट कहा कि अब मंत्रालय परिसर में किसी भी प्रकार का धरना, प्रदर्शन और आंदोलन निषेध होगा। इस निषेधात्मक आदेश का कड़ाई से पालन होना चाहिए। इसके लिए सभी संगठनों को सूचित किया जाए कि गरिमा के विरुद्ध कार्य नहीं करें। हालांकि आर्य ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह रोक आखिर क्यों लगाई जा रही है।

जाहिर है मंत्रालय परिसर वह स्थान है, जहां मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री और जिम्मेदार अधिकारी बैठते हैं। यही नीतियां बनाने से लेकर अहम फैसले तक लिए जाते हैं। लिहाजा तमाम लोग यहां आकर अपनी समस्या को लेकर आवाज उठाते हैं। अब सत्ताधीश यहां से उठने वाली न केवल आवाजें बंद कर देना चाहते है बल्कि भोपाल स्थित उस मंत्रालय परिसर का नजारा भी बदल देना चाहते है। जिस स्थान पर कभी आंदोलनकारियों के बैनरों-पोस्टरों की भरमार दिखती थी, वहां अब करीने से अप्राकृतिक फूल और गमले रख कर नकली बाग-बगीचे विकसित कर देना चाहते है। वैसे तो इस बात का अंदाजा तब ही लग गया था जब 6 नवंबर को सामान्य प्रशासन विभाग की समीक्षा बैठक में मंत्रालय परिसर पर धरना-प्रदर्शन बंद करने का आदेश दे दिया था। उसी दिन यह भी तय हो गया था कि अब दशकों पुरानी प्रथा को बेवक्त मौत के घाट उतार दिया जाएगा।

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काबिलेगौर हो कि मंत्रालय परिसर में प्रदेश भर से आम जनता, सामाजिक संगठन, कर्मचारी संगठन, व्यापारी संगठन सरकार के किसी निर्णय से असंतुष्ट या अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने को पहुंचते रहे है। असल में जहां आंदोलन होंगे, धरना-प्रदर्शन होगे, वहां आवाजों का शोर तो होगा ही। क्या दूसरी जगह जो भी निश्चित की जाएगी वहां ऐसा नहीं होगा? कोई कल इसी तर्क के साथ उस जगह का भी विरोध करते हुए न्यायालय पहुंच जाएगा तो?

लोगों के प्रतिरोध की गवाह ये जगह अब बहुत जल्दी इतिहास बनने को तैयार है। हालाकि मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ लोग या संगठन अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझ कर इसके विरोध में अपनी आवाज बुलंद करेगें लेकिन मुझे इस बात का भी पूरा-पूरा यकीन है कि सत्ताधारी उस आवाज को कुचलने में भी कोई कोर कसर नही छोडेगें।

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सच कहे तो इन्हें स्थान से नही बल्कि विरोध से चिढ़ होती है। अभिव्यक्ति की आजादी को ये किसी भी हाल में दबाना चाहते है। पैरों तले कुचल देना चाहते है। इसका कारण सत्ता के चरित्र में ही निहित है। हमने बड़े से बड़े क्रांतिकारी व्यक्ति को सत्ता में आने के बाद सत्तावादी होते देखा है फिर ये तो शिवराज सरकार है- जो खास नही बल्कि आम श्रेणी में आती है। दरअसल अब सत्ताधारियों की मानसिकता ही आंदोलनों, धरना-प्रदर्शनों को अपने शासन में बाधा मानने की हो चली है। वैसे भी प्रदेश में हाल का कुछ समय अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बेहतर नहीं कहा जा सकता है। यहां पर जिनकी आवाज का सुर और कलम की स्याही सत्ता से मेल नहीं खाते है उसे हर हाल में रोंद दिया जाता है।

वास्तव में लोकतंत्र की सच्चाई ये है कि असंतोष व्यक्त करने या अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए आमजन को कोई ऐसी जगह देनी चाहिए जहां से उसकी गूंज सत्ता के गलियारों तक आसानी से पहुंच सके। गर ऐसा हो तो सत्ताधारियों को भी अपनी गलतियों को सुधारने का मौका मिलता है। लेकिन दुर्भाग्यवश इसका उलट हो रहा है। सरकारों की सोच इस दिशा में संकुचित और कुंठित होती जा रही है। असल में जब सरकारें किसी प्रकार का तुगलकी फरमान जारी करती है उस समय ये भूल जाती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अपनाने के अभाव में स्वंय का पतन भी अवश्यंभावी हो जाता है। इसके अनेक प्रमाण हमारे सामने है।

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सबसे बड़ा और प्रसंगिक प्रमाण सोवियत संघ का है। लोकतंत्र के अभाव में सोवियत संघ जैसी विराट महाशक्ति ताश के पत्तों की तरह बिखर कर रह गई है। आज भी रूस चेचेन विद्रोह को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। इसी के चलते पिछले कुछ समय से प्रदेश में अभिव्यक्ति की आजादी की बहस बहुत तीखी हुई है। यह एक कटू सत्य है कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के साथ आत्म-सम्मान की भावना भी जुड़ी होती है। आत्म-सम्मान जितना सुरक्षित होगा, संघ और समुदाय की एकता उतनी ही मजबूत होगी। किसी समाज, समुदाय, राष्ट्र या संघ की एकता को केवल सत्ता के नशे या पुलिस बल के सहारे दमित नही किया जा सकता है।

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दमनकारी प्रयासों के बलबूते लंबे समय तक शांति कायम नही रखी जा सकती है। दमन के जरिए पाई गई एकता स्थायी भी नही होती है। यह बात खुद में अजीबों गरीब है कि ज्यादातर आंदोलन जिन सरकारों के खिलाफ होते हैं, वही यह तय करती हैं कि आप कहां, कैसे और कितनी देर तक आंदोलन करेगें और कहां मांगपत्र दे सकते है। अब तो इस व्यवस्था को भी स्थिर और सम्मानजनक ढंग से संचालित करना मुश्किल सा होते जा रहा है। सत्ताधारी लोग आमजन को अगर शांतिपूर्वक धरना-प्रदर्शन के लिए उचित स्थान और माहौल मुहैया नहीं कराएंगे तो फिर असंतुष्ट लोग क्या करेगें सिवाय हिंसा का रास्ता अख्तियार करने के।

वैसे भी प्रदेश में जिस राजनीतिक दल भाजपा की सरकार है वह आंदोलन की ही उपज या पैदाइश है। इस सरकार का मंत्रालय परिसर से कुछ ज्यादा ही भावनात्मक लगाव होना चाहिए। इस तरह के तुगलकी फरमान की जगह लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही सुचारू रूप से चलने देना चाहिए। कानूनन किसी को आवाज बुलंद करने के लिए प्रतिबंधित नहीं करने की कोशिश नही करनी चाहिए। लेकिन ऐसा नही किया गया और न नही जनता को अपनी आवाज रखने के लिए उचित स्थान देने की पहल की। फिलहाल मंत्रालय परिसर को इतिहास बना देने की पूरी-पूरी तैयारी कर ली गई है। असल में इस फैसले के विरुद्ध सशक्त संघर्ष की आवश्यकता है। न्ययायालय में अपील की जरूरत है। यदि वहां से राहत नहीं मिले तो हाईकोर्ट जाने की जरूरत है। यहां से भी राहत न मिले तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की जरूरत है। उम्मीद है हक की इस आवाज को बुलंद रखने के संघर्ष में बहुत सारे लोग सामने आएंगे।

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संजय रोकड़े
103,देवेन्द्र नगर अन्नपूर्णा रोड़ इंदौर
9827277518

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