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मध्य प्रदेश

आदिवासी बच्चे बने ‘संगवारी खबरिया’ के रिपोर्टर और कैमरामैन

सरगूजा जिले के बालमजूदर आदिवासी बच्चों को यूनिसेफ की अनूठी पहल पर हैदराबाद विश्वविद्यालय ने अपने मुद्दे उठाने के लिए मीडिया का जरिया प्रदान किया है। यूनिसेफ द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम संगवारी खबरिया यानी मित्र संवाददाता अब आदिवासी इलाकों में बच्चों में ही नहीं बल्कि वयस्कों में भी नई अलख जगा रहा है।

<p>सरगूजा जिले के बालमजूदर आदिवासी बच्चों को यूनिसेफ की अनूठी पहल पर हैदराबाद विश्वविद्यालय ने अपने मुद्दे उठाने के लिए मीडिया का जरिया प्रदान किया है। यूनिसेफ द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम संगवारी खबरिया यानी मित्र संवाददाता अब आदिवासी इलाकों में बच्चों में ही नहीं बल्कि वयस्कों में भी नई अलख जगा रहा है।</p>

सरगूजा जिले के बालमजूदर आदिवासी बच्चों को यूनिसेफ की अनूठी पहल पर हैदराबाद विश्वविद्यालय ने अपने मुद्दे उठाने के लिए मीडिया का जरिया प्रदान किया है। यूनिसेफ द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम संगवारी खबरिया यानी मित्र संवाददाता अब आदिवासी इलाकों में बच्चों में ही नहीं बल्कि वयस्कों में भी नई अलख जगा रहा है।

सरगूजा के चार ब्लाकों मेनपट, अंबिकापुर, उदयपुर तथा बतौदी में संगवारी खबरिया में 20 बच्चों की टीम है, जो खबरिया चैनलों के पत्रकारों की बात काम कर रही है। हर सदस्य या तो रिपोर्टर है या फिर कैमरामैन। वे कंप्यूटर पर अपनी खबरें खुद ही एडिट भी करते हैं। ये ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। ज्यादातर स्कूल से ड्राप आउट हैं। लेकिन कैमरा चलाना उन्हें यूनिसेफ ने सिखाया है जिसके जरिये वे उन मुद्दों की वीडियो बनाकर प्रशासन को पेश करते हैं जो उन्हें प्रभावित करते हैं।

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सरगूजा की कलक्टर रितु सेन ने बताया कि इन बच्चों ने एक ऐसा शिक्षक का वीडियो बनाकर दिया जो स्कूल में नहीं पढ़ा रहा था। जब ये बच्चे स्कूल जाते थे तो शिक्षक का नहीं पढ़ाना आम बात थी लेकिन तब वे इसका महत्व नहीं जानते थे। लेकिन इस मंच पर आकर वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए हैं।

संगवारी खबरिया की सोच हैदराबाद विश्वविद्यालय की देन है। वहां के मीडिया विभाग के प्रोफेसर वासुकी बेलवाडी ने बताया कि शोध में हमने पाया कि मीडिया में बच्चों के बारे में जो कुछ आता है, वह बड़े की सोच पर आधारित है, क्यों न बच्चे अपने मुद्दे खुद तलाशें ? यही सोचकर पहले विवि ने मेडक जिले में एक पायलट प्रोजेक्ट किया। उसके बाद यूनिसेफ की मदद से सरगूजा जिले को चुना। जो नक्सल समस्या के कारण विकास में काफी पिछड़ा गया। हालांकि हाल के वर्षों में उसमें कमी आई है।

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बतौदी ब्लाक की संगवारी टीम की सदस्य रवीना बताती है कि वह दसवीं में फेल हो गई थी। गांव में गाय, भैंस चराती थी। लेकिन अब वह कैमरा चलाती है। गांव में जो भी गलत हो रहा है, उसे कैमरे में रिकार्ड कर लेती है तथा प्रशासन को सौंप देती है। यह ग्रुप बाल मजदूरी, बच्चों एवं महिलाओं के शोषण, स्कूल छोड़ने, अवैध शराब की बिक्री, लैंगिक मुद्दों को उठाने में सफल रहा है। इसी प्रकार उदयपुर के दिनेश कुमार ने बताया कि उनके गांव खसूरा में मां-बाप बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे। उनके काम करते थे। इस मुद्दे को हमने उठाया और आज मां-बाप शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं तथा बच्चे स्कूल जाने लगे हैं।

जिला कलक्टर सेन की मानें तो सांगवारी खबरिया की यह टीम अब जिला प्रशासन की आंख और कान बन चुकी है। हम अपने हर कार्यक्रम में इन्हें बुलाते हैं। वे मुद्दों की अपने हिसाब से रिकार्डिग करती हैं तथा उन्हें पेश करते हैं। यूनिसेफ के छत्तीसगढ़ के प्रभारी प्रसन्न दास के अनुसार ये बच्चे आज आत्मविश्वास से लबालब हो रहे हैं। ये कभी घर या गांव से बाहर नहीं निकले थे लेकिन आज इन्हें देखकर गांव के दूसरे बच्चे भी उनकी तरह से समाज की मुख्यधारा में जुड़ना चाहते हैं और अपना कौशल विकसित करना चाहते हैं। बड़े पैमाने पर बच्चे इस कार्यक्रम से जुड़ना चाहते हैं। उनमें कुछ सीखने की ललक पैदा हो रही है।

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हिंदुस्तान से साभार मदन जैड़ा की रिपोर्ट

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