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मध्य प्रदेश

ग्वालियर में मंत्री के कार्यक्रम में ‘लपके पत्रकारों’ ने मंच और मंत्री को तुरंत लपक लिया!

ग्वालियर में रविवार को एक अजीब बात देखने को मिली। प्रदेश सरकार के जनसंपर्क मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों के लिए भोज का आयोजन किया। जनसंपर्क मंत्रालय मिलने के बाद वे पहली बार पत्रकारों से मिल रहे थे, इसलिए जनसंपर्क विभाग ने सभी पत्रकारों को आमंत्रण दिया कि मंत्री रात्रि भोजन पर आप से मिलना चाहते हैं। लेकिन वहां माजरा ही अजीब था। लपकों की भीड़ थी। यह वे लपका थे जो ग्वालियर के हर मंत्री को लपकते हैं। कायदे से मंत्री को पत्रकारों की अगवानी करनी थी पर मंत्री पहुंचे रात आठ बजे के बजाय नौ बजे और लपका मंत्री को लपकने के लिए इतने बेताब थे कि वे आयोजन स्थल छोड़ सड़क पर आ जमे और मंत्री का इंतजार ऐसे करने लगे मानो कार्यक्रम लपकों ने ही आयोजित किया हो।

<p>ग्वालियर में रविवार को एक अजीब बात देखने को मिली। प्रदेश सरकार के जनसंपर्क मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों के लिए भोज का आयोजन किया। जनसंपर्क मंत्रालय मिलने के बाद वे पहली बार पत्रकारों से मिल रहे थे, इसलिए जनसंपर्क विभाग ने सभी पत्रकारों को आमंत्रण दिया कि मंत्री रात्रि भोजन पर आप से मिलना चाहते हैं। लेकिन वहां माजरा ही अजीब था। लपकों की भीड़ थी। यह वे लपका थे जो ग्वालियर के हर मंत्री को लपकते हैं। कायदे से मंत्री को पत्रकारों की अगवानी करनी थी पर मंत्री पहुंचे रात आठ बजे के बजाय नौ बजे और लपका मंत्री को लपकने के लिए इतने बेताब थे कि वे आयोजन स्थल छोड़ सड़क पर आ जमे और मंत्री का इंतजार ऐसे करने लगे मानो कार्यक्रम लपकों ने ही आयोजित किया हो।</p>

ग्वालियर में रविवार को एक अजीब बात देखने को मिली। प्रदेश सरकार के जनसंपर्क मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों के लिए भोज का आयोजन किया। जनसंपर्क मंत्रालय मिलने के बाद वे पहली बार पत्रकारों से मिल रहे थे, इसलिए जनसंपर्क विभाग ने सभी पत्रकारों को आमंत्रण दिया कि मंत्री रात्रि भोजन पर आप से मिलना चाहते हैं। लेकिन वहां माजरा ही अजीब था। लपकों की भीड़ थी। यह वे लपका थे जो ग्वालियर के हर मंत्री को लपकते हैं। कायदे से मंत्री को पत्रकारों की अगवानी करनी थी पर मंत्री पहुंचे रात आठ बजे के बजाय नौ बजे और लपका मंत्री को लपकने के लिए इतने बेताब थे कि वे आयोजन स्थल छोड़ सड़क पर आ जमे और मंत्री का इंतजार ऐसे करने लगे मानो कार्यक्रम लपकों ने ही आयोजित किया हो।

मंत्री पहुंचे तो लपकों ने उन्हें तुरंत लपक लिया। बात यहीं नहीं थमी, इसके बाद लपकों ने मंच भी लपक लिया। एक लपके ने माइक थामा तो दूसरे ने यह तय करना शुरू कर दिया कि माला कौन-कौन मंत्री के गले में डालेंगे। जब तक कार्यक्रम चला, यह लपके, मंत्री को लपके ही रहे। आगे-पीछे जमे ही रहे। मंच से लेकर खाने तक लपके मंत्री के पीछे मंडराते रहे। यह वही लपके हैं जो किसी भी मंत्री के ग्वालियर आने पर उसे सबसे पहले लपकने की कोशिश में रहते हैं और इनकी कोशिश बेकार भी नहीं जाती।

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मंत्री भी हैं, जानते हैं कि यह लपका हैं, हम इन्हें थोड़े ही लपका रहे हैं। यह तो खुद लपक रहे हैं। आयोजन में भोजन को लेकर जो भव्वड़ मचा तो भी देखते ही बना। किसी ने सूखी रोटी खाई तो कोई किस्मत वाला रहा, जिसे चावल के ऊपर दाल डालने को मिल गई। तीन सौ के आसपास पत्रकार इस आयोजन में पहुंचे और जब सभी एक साथ भोजन पर जाएंगे तो व्यवस्था ध्वस्त होना तय ही था। आयोजन वैसे तो मंत्री का था पर इसमें भी सब गड्ड-मड्ड हो गया। बीजेपी के मीडिया प्रभारी बने लोकेंद्र पाराशर का भी इस मौके पर लगे हाथों सम्मान हो गया। कुल मिलाकर कार्यक्रम तीन चरणों में  पूरा हुआ। लपकों ने मंच लपका। मंत्री को लपका। बीजेपी के मीडिया प्रभारी का अपने घर में स्वागत हुआ और जनसंपर्क मंत्री ने पत्रकारों को भोज दिया, जिसे शायद ही कोई पत्रकार भर पेट खाया होगा।

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