हम पत्रकारों की जमात की सबसे बडी मुश्किल ये है कि हम आपस में एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि दुश्मन की भूमिका निभाते हैं और ये भूमिका निभाते निभाते सच्चाई को भी ताक पर रख देते हैं। संदर्भ इंदौर में इंडिया टीवी के एमपी सीजी के हेड पुष्पेन्द्र वैद्य पर एक मेडिकल कॉलेज माफिया द्वारा किये गये हमले का है।
भड़ास पर गुरुवार को किसी दिलजले ने पुष्पेन्द्र वैद्य के मामले में एक पोस्ट लिखी। इस पढ़कर ऐसा लगता है कि भाई कोई व्यक्तिगत दुश्मनी निकाल रहा है। इसकी भड़ास पढ़कर ऐसा लगा कि इसका इंदौर से दूर-दूर का ही रिश्ता है। इसलिये इंदौर, इंदौर प्रेस क्लब, इंदौर का मीडिया और इंदौर के माहौल के बारे में भी इसने दूर की कौड़ी लगाई है। पहली बात तो ये कि जिस दिन ये मामला हुआ उस दिन इंदौर के 250 से ज्यादा पत्रकार पुष्पेन्द्र के लिये दोपहर डेढ़ बजे से लेकर रात 8 बजे तक थाने पहुंचे थे। ये सब फील्ड पर काम करने वाले असली पत्रकार थे। जो पत्रकार साथी किसी कारणवश थाने नहीं पहुंच पाये उन्होंने उनके मेडिकल के लिये एमवाय अस्पताल में मोर्चा संभाल रखा था, जो वहां भी नहीं पहुंच पाये वो अपने स्तर पर सोशल मीडिया में मोर्चा संभाले हुऐ थे।
जिस इंदौर प्रेस क्लब की बात इन महाशय नें लिखी है, उसके अध्यक्ष अरविंद तिवारी खुद उपाध्यक्ष संजय जोशी के साथ एमवाय अस्पताल में मौजूद थे और महासचिव नवनीत शुक्ला और सभी पदाधिकारी थाने पर मौजूद थे। 10 सितम्बर को इंदौर प्रेस क्लब ने पुष्पेन्द्र के खिलाफ हमले को लेकर सीएम से मुलाकात की और उनको एक ज्ञापन भी सौंपा है और मुद्दा सिर्फ इंदौर का नहीं है, देवास प्रेस क्लब के पदाधिकारियों और पत्रकारों ने वहां के कलेक्टर और उनके अलावा करीब 13 जिलों के पत्रकारों ने अपने अपने पत्रकार संगठनों के बैनर पर इकट्ठा होकर एसपी और डीएम को ज्ञापन सौंपे हैं।
एक बात और ये सारे लोग असली पत्रकार हैं। पुष्पेन्द्र वैद्य से सालों से परिचित हैं। किसी के दबाव या प्रभाव में आकर इन्होंने ऐसा नहीं किया। महाशय की भाषा पढ़कर ऐसा लगता है कि ये इंडिया टीवी से बहुत अच्छे से वाकिफ हैं। शायद इनको ये बतानें की जरुरत नहीं है कि इंडिया टीवी भी पुष्पेन्द्र की कथित कारगुजारियों (?) से वाकिफ है। इसीलिये इंडिया टीवी ने उन्हें डेढ़ साल पहले इंदौर के ब्यूरो के पद से हटा दिया था, ये बात अलग है कि उनको इंदौर के ब्यूरो से हटाकर इंडिया टीवी ने एमपी सीजी का हेड बना दिया था। उम्मीद है इनके मन मस्तिष्क के बंद दरवाजे खुल गये होंगे।
इंदौर के असल पत्रकार इस प्रकरण को लेनेदेन का मामला मानते हैं और इससे पर्याप्त दूरी बनाये हुए हैं। इसके पीछे की वजह भी बड़ी साफ़ है कि पुष्पेंद्र इंदौर में लंबे समय तक इण्डिया टीवी के रिपोर्टर रहे हैं और उनकी कारगुजारियों से इंदौर के पत्रकार भलीभांति परिचित हैं। इस घटना के बाद इण्डिया टीवी ने भी इस मसले से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं।
प्रेस क्लब पत्रकार पुष्पेन्द्र वैद्य के साथ घटना के वक्त से साथ खड़ा है- आपको एक पत्रकार के ऊपर हुऐ हमले में इस तरह बेबुनियादी लेख नहीं लिखना चाहिये। इंदौर से लेकर भोपाल तक पुष्पेन्द्र वैद्य की पत्रकारिता और साफ सुथरी छवि को पत्रकार जगत ही नहीं बल्कि उनके परिचित भी अच्छी तरह जानते हैं। इसी वजह से प्रेस क्लब उनके साथ खड़ा है। इस सम्बन्ध में प्रेस क्लब का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें लिखित में शिकायत कर चुका है। प्रेस क्लब लगातार अस्पताल में उन्हें हर तरह की मदद देने के लिये कटिबद्ध है। जब पुष्पेन्द्र वैद्य पर हमला हुआ था उस वक्त भी पूरे प्रेस क्लब पदाधिकारी सहित इंदौर के सभी पत्रकार थाने और अस्पताल में उनके साथ मौजूद थे और आगे भी रहेंगे।
माननीय कथाकार जी, आपने जो बेसिर पैर की मनगढंत कहानी लिखी है उससे कई बातें साफ हो जाती हैं। पहली बात आपने लिखी कि पुष्पेन्द्र वैद्य पर हमले की घटना के बाद असली पत्रकारों ने इस मामले से दूरियां बना ली हैं। तो आपको बता दूं कि पहले दिन से लेकर आज तक सभी असली पत्रकार और पूरा प्रेस क्लब पुष्पेन्द्र के साथ खड़ा है। हां ये जरुर है कि नकली, दलाली करने वाले पत्रकार आज भी मॉर्डन मेडिकल कॉलेज के मैनेजमेंट के पास चोरी, छिपे जाकर उन्हें इस घटना को ठंडी करने, पुष्पेन्द्र के बयान को फर्जी प्रचारित करने और पुष्पेन्द्र वैद्य को बदनाम करके पीछे हटने को मजबूर करने के तरीके बता रहे हैं। और इसके एवज में कॉलेज से मोटी रकम भी वसूल रहे हैं। जहां तक सवाल है लेन-देन का, तो पुष्पेन्द्र को ये असाईन्मेंट उनके ऑफिस से मिला था, ना कि वे खुद अपनी मर्जी से कॉलेज प्रबन्धन को डराने धमकाने गये थे।
इंडिया टीवी के जिन चैनल प्रमुख का आपने जिक्र किया है तो आपको उन्हीं से एक बार फोन करके पूछना चाहिये था कि वे लगातार पुष्पेन्द्र को ढाढस बंधा रहे हैं, लगातार फोन पर बात कर रहे हैं या फिर कन्नी काट कर बैठ गये हैं। आपका कहना है कि इंडिया टीवी का मैनेजमेंट भी पुष्पेन्द्र के खराब ट्रैक रिकॉर्ड को जानता है। अगर ऐसा होता तो कम्पनी पुष्पेन्द्र को इंदौर से भोपाल भेजकर पूरे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का हेड नहीं बनाती। कम्पनी इस मामले में इतनी स्ट्रिक्ट है कि भोपाल के ही उनके एक कुलीग की कारगुजारियों का सबूत मिलने के बाद नौकरी से निकालने में देरी नहीं की थी। आपनें लिखा कि पुष्पेन्द्र के बैक बॉन में 10 साल से प्रोब्लम है। तो आपको बता दूं कि दस साल से प्रोब्लम नहीं है बल्कि 10 साल पहले प्रॉब्लम हुई थी, जिसका इलाज होकर वे स्वस्थ्य हो गये थे। मगर डॉक्टरों ने ऐहतियात बरतनें को कहा था।
उस दिन की घटना में उन्हें जमीन पर गिराकर लातों से मारा गया, जिसकी वजह से नये सिरे से प्रॉब्लम खड़ी हो गई। आपने तो ये बात कर दी कि किसी का एक्सीडेंट में हाथ टूट जाये तो दस साल बाद लोहे की रॉड लेकर किसी को भी उस शख्स का हाथ तोड़ने का अधिकार मिल जाता है, क्योंकि उसका हाथ तो पहले भी टूट चुका था। आपकी सोच पर हंसी भी आती है और इस लेख को लिखने की पीछे आपकी मंशा भी साफ हो जाती है। मगर आप इंदौर के पत्रकारों की एकता को तोड़ नहीं सकते चाहे आपके पीछे कितने भी बड़े मेडिकल माफिया का हाथ हो।
एक पत्रकार द्वारा भेजा गया पत्र.