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मध्य प्रदेश

शिकागो भाषण ने बदल दिया था भारत के प्रति दुनिया का दृष्टिकोण

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर विश्व विजय दिवस का आयोजन

भोपाल । दुनिया में अनेक महापुरुषों के ऐसे भाषण हुए हैं, जिन्होंने इतिहास बना दिया। अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित धर्म संसद में दिया गया स्वामी विवेकानंद का व्याख्यान, ऐसा ही ऐतिहासिक भाषण था। इस व्याख्यान के बाद भारत की ओर देखने का दुनिया का दृष्टिकोण बदल गया। आज भी भारत के प्रति दुनिया जिस उम्मीद से देख रही है, उसके पीछे स्वामी विवेकानंद के भाषण की पृष्ठभूमि है। यह विचार सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्तिबोध ने पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों के बीच व्यक्त किए। वे स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर आयोजित ‘विश्व विजय दिवस’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने किया था।

<p><span style="font-size: 18pt;">पत्रकारिता विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर विश्व विजय दिवस का आयोजन</span></p> <p>भोपाल । दुनिया में अनेक महापुरुषों के ऐसे भाषण हुए हैं, जिन्होंने इतिहास बना दिया। अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित धर्म संसद में दिया गया स्वामी विवेकानंद का व्याख्यान, ऐसा ही ऐतिहासिक भाषण था। इस व्याख्यान के बाद भारत की ओर देखने का दुनिया का दृष्टिकोण बदल गया। आज भी भारत के प्रति दुनिया जिस उम्मीद से देख रही है, उसके पीछे स्वामी विवेकानंद के भाषण की पृष्ठभूमि है। यह विचार सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्तिबोध ने पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों के बीच व्यक्त किए। वे स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर आयोजित 'विश्व विजय दिवस' कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने किया था।</p>

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर विश्व विजय दिवस का आयोजन

भोपाल । दुनिया में अनेक महापुरुषों के ऐसे भाषण हुए हैं, जिन्होंने इतिहास बना दिया। अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित धर्म संसद में दिया गया स्वामी विवेकानंद का व्याख्यान, ऐसा ही ऐतिहासिक भाषण था। इस व्याख्यान के बाद भारत की ओर देखने का दुनिया का दृष्टिकोण बदल गया। आज भी भारत के प्रति दुनिया जिस उम्मीद से देख रही है, उसके पीछे स्वामी विवेकानंद के भाषण की पृष्ठभूमि है। यह विचार सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्तिबोध ने पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों के बीच व्यक्त किए। वे स्वामी विवेकानंद के शिकागो व्याख्यान प्रसंग पर आयोजित ‘विश्व विजय दिवस’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने किया था।

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श्री मुक्तिबोध ने कहा कि जिस वक्त स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में भाषण देकर दुनिया को भारत की संस्कृति और ज्ञान के प्रति आकर्षित किया, उस समय हमारा समाज आत्मविस्मृति से जूझ रहा था। हमारा समाज मूल्यों से विमुख हो गया था। हमने अपने सिद्धाँत और जीवनमूल्य पोथियों तक सीमित कर दिए थे। व्यवहार में उनका पालन नहीं कर रहे थे। लेकिन, इस अद्भुत भाषण के बाद न केवल भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला, बल्कि भारतीय समाज भी सुप्त अवस्था से जागने लगा। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि होता यह है कि समाज से व्यक्ति को ताकत मिलती है, लेकिन स्वामी विवेकानंद के संबंध में उल्टा है। यहाँ एक व्यक्ति से समाज को ताकत मिली। हमारा आत्मगौरव जागा। उन्होंने कहा कि धर्म संसद में जब दुनिया के सभी पंथ प्रतिनिधि सिर्फ अपने ही धर्म का बखान कर रहे थे और कह रहे थे कि कल्याण के लिए सबको उनके धर्म के छाते के नीचे आ जाना चाहिए। तब स्वामी विवेकानंद सबकी आँखें खोलते हैं और सबका सम्मान करने वाले भारतीय दर्शन को सबके सामने रखते हैं। स्वामी ने कहा कि वह उस धर्म के प्रतिनिधि बनकर आए हैं, जो कहता है कि सत्य तो एक ही है। उसको बताने के तरीके अलग-अलग हैं। केवल मेरा ही मत सत्य है, यह कहना ठीक नहीं। उन्होंने कहा कि मेरा धर्म सब पंथों-विचारों का सम्मान करता है, उनके प्रति भरोसा व्यक्त करता है।

आधुनिक बनें, अंधानुकरण नहीं करें : श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। स्वामी सदैव आधुनिक बनने की बात कहते थे। वह कहते थे कि हमें अपने घर के सब खिड़की-दरवाजों को खोल देना चाहिए। सब ओर से आने वाले सद्विचारों का स्वागत करना चाहिए। लेकिन, ऐसा करते समय हमें ध्यान रखना है कि पश्चिम का अंधानुकरण न करें। आधुनिक बनें, लेकिन अपनी संस्कृति और परंपरा को न छोड़ें। श्री मुक्तिबोध ने बताया कि समाज और देश निर्माण के लिए स्वामी विवेकानंद तीन बातों पर जोर देते थे। एक, अपने लोगों पर भरोसा करना सीखो। दो, ईर्ष्या और निंदा करना छोड़ो। तीन, सच्चे और अच्छे लोगों के साथ खड़े होना सीखो।

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स्वामी विवेकानंद से सीखें युवा : श्री मुक्तिबोध ने बताया कि शिकागो की धर्म संसद में दिया प्रारंभिक भाषण जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार नई बातें सीखने को मिलेंगी। अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रत्येक युवा को स्वामी विवेकानंद से गुर सीखने चाहिए। यथा –  1. प्रबंधन 2. विपणन 3. संवाद कौशल 4. प्रभावी संचार 5. आत्मविश्वास 6. धैर्य 7. निर्भयता।

संचार  माध्यमों का महत्त्व समझते थे विवेकानंद : कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि स्वामी विवेकानंद समाज जागरण में मुद्रण और संचार माध्यमों का महत्त्व समझते थे। इसके दो प्रसंग हैं। स्वामी से शीघ्र भारत लौटने का आग्रह करते हुए उनके मित्र ने पत्र लिखा, इसके जवाब में विवेकानंद ने कहा कि भारत आने पर मेरे लिए एक मंदिर, एक कमरा और एक मुद्रण मशीन का प्रबंध कर देना। इसी तरह अपने सहयोगियों से स्वामी विवेकानंद कहते थे कि एक ग्लोब तथा एक कैमरा (पिनहोल) लो और देशभर में स्थान-स्थान पर जाकर विज्ञान एवं अध्यात्म का प्रचार-प्रसार करो। प्रो. कुठियाला ने कहा कि प्रत्येक विद्यार्थी को स्वामी विवेकानंद का शिकागो का भाषण पढऩा चाहिए, मनन करना चाहिए और अपने मित्रों के साथ उसकी चर्चा करनी चाहिए। इसके साथ ही हिंदी दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें हिंदी के संवर्धन का संकल्प लेना चाहिए। विश्व हिंदी सम्मलेन की अनुशंसाओं के सम्बन्ध में विश्वविद्यालय ने एक महत्वपूर्ण शोधकार्य किया है, जिसमें करीब 20 हजार अंग्रेजी के शब्दों को चिन्हित किया गया है, जिनका उपयोग हिंदी के समाचार पत्रों में किया जाता है। जल्द ही सर्वाधिक उपयोग होने वाले 600 शब्दों की पुस्तिका प्रकाशित की जाएगी। पुस्तिका में अंग्रेजी शब्दों के हिंदी विकल्प भी प्रकाशित किये जायेंगे। पत्रकार बंधुओं से आग्रह किया जायेगा कि अंग्रेजी के इन शब्दों की जगह हिंदी के शब्दों का उपयोग किया जाये।

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कट्टरता और असहिष्णुता का किया विरोध : स्वामी विवेकानंद ने अपने शिकागो भाषण में सभी प्रकार की कट्टरता और असहिष्णुता का विरोध किया। यह बात दोनों वक्ताओं ने अपनी व्याख्यान में कही। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हम दुनिया को असहिष्णुता नहीं सिखाते। भारतीय जनमानस केवल सहनशील नहीं है, बल्कि भारतीय जनमानस में सभी को स्वीकारने की प्रवृत्ति है। स्वामी विवेकानंद ने दुनिया में रक्त की नदियाँ बहाने वालों को आईना दिखाते हुए कहा था कि भारतीय संस्कृति सभी प्रकार की कट्टरता और असहिष्णुता का विरोध करती है। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया में जाकर मूल जातियों को नष्ट करने वाले यदि नहीं होते, तो प्रत्येक समाज कहीं बेहतर स्थिति में होता। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि प्रत्येक भारतीय दुनिया में कहीं भी गया, तलवार लेकर नहीं गया बल्कि ज्ञान का प्रकाश लेकर गया। जब वह वहाँ से आया तो अपने पीछे रक्त का भंडार और अस्थियों के ढेर छोड़कर नहीं आया बल्कि जीवन का प्रकाश छोड़कर आया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय ने किया।

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)
निदेशक, जनसंपर्क

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