Connect with us

Hi, what are you looking for?

मध्य प्रदेश

सिंहस्थ में मप्र की थू-थू करवाने वाले अनुपम राजन प्रचार समितियों पर इतने मेहरबान क्यों?

हिंदी सम्मेलन ने अगर मध्यप्रदेश की शान बढ़ाई तो सिंहस्थ को विवादों अव्यवस्थाओं के लिये याद किया जायेगा और सिंहस्थ के कारण मध्यप्रदेश की अगर थू—थू होगी या हो रही है तो उसका श्रेय जायेगा मध्यप्रदेश जनसंपर्क के कमिश्नर अनुपम राजन को। इस सिंहस्थ में सरकार की जितनी छीछालेदर हो रही है उतनी होने की कभी नौबत नहीं आई। सिंहस्थ के प्रचार में हजारों करोड़ फूंकने वाले जनसंपर्क विभाग ने इस बार विज्ञापनों की सौगात से किसी को नवाजने में कोई कसर नहीं छोड़ी क्या अखबार, क्या चैनल क्या एफएम? हां जिन वेबसाईट्स पर जमाने भर की शर्तें लादकर महीनों प्रचार करवाया गया, सिंहस्थ आते ही उन्हें सिंहस्थ की विज्ञापन नीति से बाहर कर दिया गया।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- article inset link 468x15 --> <ins class="adsbygoogle" style="display:inline-block;width:468px;height:15px" data-ad-client="ca-pub-7095147807319647" data-ad-slot="6928277814"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script><p>हिंदी सम्मेलन ने अगर मध्यप्रदेश की शान बढ़ाई तो सिंहस्थ को विवादों अव्यवस्थाओं के लिये याद किया जायेगा और सिंहस्थ के कारण मध्यप्रदेश की अगर थू—थू होगी या हो रही है तो उसका श्रेय जायेगा मध्यप्रदेश जनसंपर्क के कमिश्नर अनुपम राजन को। इस सिंहस्थ में सरकार की जितनी छीछालेदर हो रही है उतनी होने की कभी नौबत नहीं आई। सिंहस्थ के प्रचार में हजारों करोड़ फूंकने वाले जनसंपर्क विभाग ने इस बार विज्ञापनों की सौगात से किसी को नवाजने में कोई कसर नहीं छोड़ी क्या अखबार, क्या चैनल क्या एफएम? हां जिन वेबसाईट्स पर जमाने भर की शर्तें लादकर महीनों प्रचार करवाया गया, सिंहस्थ आते ही उन्हें सिंहस्थ की विज्ञापन नीति से बाहर कर दिया गया।</p>

हिंदी सम्मेलन ने अगर मध्यप्रदेश की शान बढ़ाई तो सिंहस्थ को विवादों अव्यवस्थाओं के लिये याद किया जायेगा और सिंहस्थ के कारण मध्यप्रदेश की अगर थू—थू होगी या हो रही है तो उसका श्रेय जायेगा मध्यप्रदेश जनसंपर्क के कमिश्नर अनुपम राजन को। इस सिंहस्थ में सरकार की जितनी छीछालेदर हो रही है उतनी होने की कभी नौबत नहीं आई। सिंहस्थ के प्रचार में हजारों करोड़ फूंकने वाले जनसंपर्क विभाग ने इस बार विज्ञापनों की सौगात से किसी को नवाजने में कोई कसर नहीं छोड़ी क्या अखबार, क्या चैनल क्या एफएम? हां जिन वेबसाईट्स पर जमाने भर की शर्तें लादकर महीनों प्रचार करवाया गया, सिंहस्थ आते ही उन्हें सिंहस्थ की विज्ञापन नीति से बाहर कर दिया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सवाल यह है कि आखिर अनुपम राजन सबको बांटें, वेबसाईट्स को डांटें की नीति पर चल क्यों रहे हैं? जिन प्रचार समितियों को करोड़ों बांट दिये गये उनकी तो चर्चा ही नहीं है। और सबसे बड़े घोटालेबाज वेबमीडिया वाले घोषित हो गये।

समितियों की सूची देखने के लिए नीचे क्लिक करें…

Advertisement. Scroll to continue reading.

Samitiyon Ki Suchi

Advertisement. Scroll to continue reading.

विज्ञापनों में बढ़चढ़कर बताया गया कि सिंहस्थ में 5 करोड़ लोग आयेंगे यह इसलिए भी कि भीड़ का आंकड़ा जितना बड़ा बताया जायेगा उस हिसाब से बजट भी होगा और अफसरों की कमाई के रास्ते भी उतने ही ज्यादा खुलेंगे। सो इसका इंतजाम करने में माननीय अनुपम राजन ने कोई कसर नहीं छोड़ी।लेकिन इसका असर हुआ उलटा सिंहस्थ में लोग उस संख्या में पहुंचे ही नहीं जो होने चाहिये थी। बची—खुची कसर अव्यवस्थाओं को लेकर साधु—संतों की नाराजगी ने पूरी कर दी। आलम यह है कि कइ्र अखाड़े सिंहस्थ में पहुंचे ही नहीं।

सिंहस्थ या कुंभ की परंपरा रही है कि शाही स्नान में पहले साधु—संत स्नान करते हैं लेकिन इस बार नये जनसंपर्क कमिश्नर की व्यवस्थाओं के अनुसार यह धार्मिक परंपरा भी खंडित हो गई। अफसरों ने साधु—संतों से पहले शाही स्नान कर लिया। जिससे साधु—संतों की नाराजगी झेलनी पड़ी सरकार और मुख्यमंत्री को।  बात यहीं खत्म नहीं हुई इस बार मीडिया को जनसंपर्क से जितना जलील किया गया शायद यह कभी नहीं हुआ। पूरे मध्यप्रदेश में पत्रकारों को सिंहस्थ के पास के लिये जनसंपर्क ने पानी भरवा दिया। चंद चटाई के चौकीदारों को डिजीटल पास थमाकर बाकी पत्रकारों को सैकड़ों चक्कर काटने के बाद जो पास दिये गये उनसे ज्यादा बेहतर स्कूल के बच्चों के आईकार्ड होते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिलचस्प बात ये कि सिंहस्थ आधा होने को आया मगर पत्रकारिता में अपनी आधी जिंदगी खपा देने वाले पत्रकारों को पास जारी नहीं किये गये। पास उन्हीं को जारी किये गये जिन मीडिया संस्थानों को विज्ञापनों से नवाजा गया। कई जिलों में जिनमें खुद उज्जैन भी शामिल है के पत्रकारों को मीडिया पासेस के लिये धरना प्रदर्शन करना पड़ा। आखिर को झक मारकर सरकार को घोषणा करनी पड़ी पूरे मेला क्षेत्र को पास फ्री करने की। अब सवाल यह है कमिश्नर साहब से कि पत्रकारों से जो ढेर सारे डॉक्यूमेंट मंगाये गये पास बनाने के लिये उनका क्या हुआ? जिस एजेंसी को यह काम सौंपा गया क्या उसने काम बीच में ही रोक दिया जो सरकार को यह घोषणा करने मजबूर होना पड़ा।

वैसे अनुपम राजन को उनके पूर्व विभाग से इसलिए हटाया गया था क्योंकि उस विभाग में बैठकर भी इन्होंने विवादों को ही जन्म दिया और सरकार की किरकिरी करवाई इसलिए इन्हें यहां लाया गया।  अब बात करें उस घटना की जिसे विज्ञापन घोटाला कहा जा रहा है। यह अनुपम राजन की शह का ही कमाल है कि 150 करोड़ की लूट का जिम्मेदार सिर्फ वेब मीडिया को ही बताया गया। जबकि वेब मीडिया के नाम कुल 12 करोड़ है। क्या कारण है कि अनुपम राजन उन प्रचार सोसायटीज के खिलाफ कोई एक्शन लेने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं जिनमें एक—एक सोसायटी को करोड़ों के भुगतान कर दिये गये। प्रचार कहां क्या हुआ क्या यह तो ये सोसायटियां और जनसंपर्क विभाग ही जाने। लेकिन एक सीधा सवाल सारे वेबमीडिया की तरफ से अगर यह घोटाला है तो जिनके हिस्से में इस घोटाले का सबसे बड़ा हिस्सा है उनके नाम पर अनुपम राजन का मुंह क्यों सिला हुआ है और भेड़चाल में खबरें चलाने वाले मीडिया की भी नजर इन पर क्यों नहीं पड़ी?

Advertisement. Scroll to continue reading.

लिस्ट देखने के लिए आगे क्लिक करें : dekhiye List

Advertisement. Scroll to continue reading.

अनुपम राजन ने जो नीति वेबमीडिया के लिये बनाई वह भी दोहरी नीति ही है। इस नीति की हर लाईन बताती है कि सरकार वेबमीडिया को मुख्य धारा में मानना ही नहींं चाहती तो क्या अनुपमराजन यह दिखाना चाहते हैं कि डिजीटल युग में भी मध्यप्रदेश सरकार पिछड़ी सोच लेकर चल रही है। इस पॉलिसी में लिखा गया है कि अगर बजट होगा तो वेबसाइट्स को विज्ञापन दिया जायेगा। तो इसमें अलग क्या है यह तो पहले भी प्रावधान था। वेबसाईट्स को बचा—खुचा ही मिला है अनुपम जी। इस पॉलिसी में यह भी लिखा है कि अगर सरकार को किसी वेबसाईट की सामग्री औचित्य और लक्ष्य समूह की पात्रता देखते हुये विज्ञापन संबंधी पात्रता अस्वीकृत करने का अधिकार जनसंपर्क का होगा। कुलमिलाकर यह कि अनुपम राजन ने वेब मीडिया को यह जताया है कि अगर सरकार के खिलाफ लिख गया तो विज्ञापन बंद किए जायेंगे। इसका सीधा अर्थ यह है कि वे खुद वेबमीडिया की ताकत से डरे हुये हैं। इसमें यह तय नहीं हैं कि अगर कल को किसी वेबसाईट के 25—30 हजार से उपर यूजर हो गये तो क्या आप 50 हजार से उपर का विज्ञापन देंगे या बजट का हवाला देकर उन्हें वही पुरानी दर से विज्ञापन टिकायेंगे।

अनुपम राजनजी क्या कारण है कि जब आपने विज्ञापन नीति बनाई तो कुल 10 पत्रकार भी आपको इस लायक नहीं लगे कि उनसे मश्विरा किया जाये सिर्फ दो पत्रकारों को बिठाकर नीति बना दी गई और महिला पत्रकारों को तो पूछा तक नहीं क्योंकि आपका जनसंपर्क विभाग तो उन्हें  प्राइम जर्नलिस्ट ही नहीं मानता शायद यही कारण है दो—चार वेबसाईट्स के संचालकों के अलावा और किसी का नाम जनसंपर्क की उस सूची में नहीं जोड़ा जा रहा जो संवाददाता सूची होती है। जिसमें शामिल पत्रकारों को सरकारी कॉन्फ्रेंस आदि की सूचना दी जाती है। निष्क्रिय तो छोड़िये सक्रिय पत्रकारों को भी इसमें शामिल नहीं किया जा रहा बार—बार बोलने के बाद भी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपने नियम बनाया अच्छी बात है क्या आप बड़े—बड़े मीडिया संस्थानों के लिये भी यह नियम बनायेंगे कि एक व्यक्ति एक संस्थान को ही विज्ञापन दिया जायेगा। क्या उन अधिकारियों के लिये नियम बनायेंगे जिनकी वेबसाईट तो हैं मगर सामने नहीं आईं। कया जनसंपर्क के उन अधिकारियों के लिये नियम बनायेंगे जो रिटायरमेंट के बाद लाखों की पेंशन के साथ तमाम सुविधायें प्राप्त कर रहे हैं और वेबसाईट्स चलाकर भी कमा रहे हैं। क्या कारण है कि एक जनसंपर्क अधिकारी को रिआयर होते ही राज्यस्तरीय अधिमान्यता का हकदार बना दिया जाता है मगर पत्रकारिता में जिंदगी खपा चुके पत्रकारों को सिर्फ जिला स्तर की अधिमान्यता पर संतोष करना पड़ा है उस नियम के तहत जो कि अलिखित है लेकिन जनसंपर्क और ​अधिमान्यता कमेटियों ने इसे घोषित बना रखा है।

अगर आप वाकई पारदर्शिता के पक्षधर हैं तो खुन्नस सिर्फ वेबमीडिया से ही क्यों? नीति बननी  है तो पूरे मीडिया के लिये नये सिरे से बनाईये। क्या आप बता सकते हैं कि क्या कारण है कि सारे प्रिंट मीडिया के 25 हजार तक के सिंगल पेमेंट रेगुलर होते हैं और वेबसाईट वालों का पेमेंट दिसंबर से ही यह कहकर रोक दिया जाता है कि नये साल में बजट आयेगा तब पेमेंट होंगे। वेबसाईट वालों के नाम पर घोटाला दिखाने वालों के पास हमेशा इसी के नाम पर बजट का टोटा क्यों होता है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर वेबमीडिया को अपना अस्तित्व साबित करने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ रहा है तो इसके जिम्मेदार वे पत्रकार भी हैं जो तमाम तह की लानत मलानत के बाद चुप हैं और जिनकी चुप्पी ने वेबमीडिया को मध्यप्रदेश में शर्म का विषय बना दिया है। आप किसी अधिकारी से मिलिए जब तक उन्हें यह पता नहीं होता कि आप वेबसाईट संचालक नहीं हैं उनका रवैया कुछ और होता है लेकिन जैसे ही पता चले कि आप वेबसाईट चलाते हैं तो इनकी भाव—भंगिमा ही बदल जाती है। दो—चार लोगों ने आवाज उठाई भी तो यहां के महान वेबसाईट संचालक उन्हीं के खिलाफ लामबंद हो गये। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छुपाने की आदत जो ठहरी। क्यों नहीं सारे वेब मीडिया के लोग अनुपम राजन से सवाल करते कि नियम सबके लिये एक जैसे क्यों नहीं बनाये जा रहे? और वेबसाईट्स पर ही इतनी कंडीशन क्यों? आपने विज्ञापन लिया है चोरी—चकारी नहीं की। बकायदा टीडीएस कटकर आपका पेमेंट आता है तो घोटाला कहां है? फिर मुंह छिपाने की जरूरत क्या? तो अब सरकार को तय करना है कि वह मध्यप्रदेश की छवि में इस तरह से और चार चांद लगाना चाहती है या फिर चंद सिरफिरे लोगों की भेंट इसे चढ़ाना चाहती है।

उज्जैन से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement