मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्बारा आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं बिना किसी विवाद के संचालित हो जाएं, यह कई वर्षों से सम्भव नहीं हो पा रहा है। ताजा मामला प्रदेश की सिविल सेवा परीक्षा-2०14 की प्रारम्भिक परीक्षा का है। यह परीक्षा 9 मई 2०15 को सम्पन्न हुई जिसके परिणाम जुलाई माह में जारी हुए हैं। आयोग ने अपनी बेवसाइट पर विभिन्न कटेगरी के लिए ‘कटऑफ’ मार्क्स जारी किए हैं, जिसको लेकर प्रतियोगी परीक्षार्थियों में असंतोष है और उनका दावा है कि उन्होंने आयोग द्बारा घोषित ‘कटऑफ ’ मार्क्स से अधिक अंक हासिल किए हैं, लेकिन आयोग को इससे कोई लेना-देना नहीं है।
दरअसल, दाल में काला तब ही से नजर आने लगा था, जब आयोग ने परीक्षा की आंसर सीट के साथ कार्बन कॉपी लगाई थी, लेकिन उसे छात्रों को न देकर परीक्षा होने के बाद अपने पास ही रख ली। हास्यास्पद है कि जब यह देना ही नहीं था तो फिर सीट लागाई ही क्यों गई? सीट लगाने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकते हैं? दरअसल, विगत वर्षों में लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में धांधली के आरो लगे हैं जिनकी जांच चल है इसलिए आयोग ने पैंतरा अपनाया था पर कार्बन सीट न देना यह महज दिखावे की ईमानदारी नहीं तो और क्या है? गौरतलब है कि अन्य प्रदेशों मसलन- उत्तराखंड, हिमांचल, राजस्थान जैसे राज्यों में भी कार्बन कॉपी लगाने और परीक्षा के बाद विद्यार्थिंयों को लौटाने का प्रावधान किया है तो सवाल उठता है कि क्या मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग संविधान के अनुच्छेद-315 से परे संचालित है। जो यहां मनमानी से नियम बनाने और उनको अपनी तरह से हांकने छूट मिली हुई है। यहां तक कि यूजीसी और नेट की कई परीक्षाओं में भी आंसर सीट के साथ कार्बन कॉपी लगाई जाती है और परीक्षा के बाद प्रमाण स्वरूप परीक्षार्थी को सौंप दी जाती है ताकि वह परिणाम आने पर अपने को जांच सके कि उसने कितना किया था और कट ऑफ से वह कितने अंक पीछे रह गया। इस तरह परीक्षा में पारदर्शिता अपनाने की व्यवस्थागत जांच स्वत: बनी रहती है।
बहरहाल, प्रदेश की लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में विवाद न हो यह सम्भव नहीं। इस बार भी यही हुआ सामान्य ज्ञान और सी-सेट की प्रश्न पत्रों में कुछ सवाल विवादित होने से उन्हें दो बार मान मनौव्वल के बाद विलोपित तो किया गया, लेकिन साथ ही सामान्य अध्ययन के तीन प्रश्नों के उत्तर भी बदल दिए गए। आयोग के सचिव मनोहर दुबे का कहना है कि हम उत्तरों का निर्धारण एक्सपर्ट से कराते हैं और ये तीनों प्रश्नों के उत्तर उसने एक्पर्ट की राय से बदले गए हैं। प्रारम्भिक परीक्षा में जहां एक-एक प्रश्न से हजारों छात्र चयनित होने से वंचित रह जाते हैं, तो फिर तीन प्रश्नों के उत्तर जिन्हें पहले आयोग ने सही माना था और विद्यार्थियों की राय में सही भी हैं, लेकिन उत्तरों में बदलाव पर आयोग का अड़ियल रवैया किसी की एक सुनने को तैयार नहीं।
गौरतलब है कि वर्ष-2०13 की प्रारम्भिक परीक्षा के समान्य ज्ञान के प्रश्न-पत्र में भी एक प्रश्न ऐसा था जिसका उत्तर आयोग के कथित एक्सपर्ट ने प्रदेश की ऊर्जा राजधानी जो कि सिंगरौली है को इंदौर माना था। प्रदेश की ऊर्जा राजधानी जिसे मुख्यमंत्री, सरकारी आंकड़ों में और सामान्य जन तक जानता है कि वह सिंगरौली है। बाद में यह प्रश्न को ठीक करने के बजाय इसे विलोपित करके आयोग ने लीपापोती करने की कोशिश की थी। आयोग के एक्सपर्ट कैसे हैं इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। बीते कई वर्षों से आयोग की गतिविधियों को लेकर लगने लगा है कि आयोग अयोग्यों का गढ़ बनता जा रहा।
हाल यह है कि कई छात्र हैं जिन्हें अपने चयन की जारी ‘कटऑफ’ सूची के मुताबिक है, लेकिन वे इससे बाहर हैं। यह सवाल प्रदेश के मीडिया में उठा है, लेकिन ज्यादा समर्थन न मिल पाने से बड़ा नहीं बन पाया। यदि कार्बन कॉपी दी गई होती तो पहले यह होता कि सभी छात्र अपनी उत्तर सीट को आयोग की उत्तर सीट से मिलान कर सकते थे। दूसरा बड़ा सवाल है वह आयोग की कार्यशैली को लेकर है कि जिन उत्तरों को बदला गया है क्या वे पहले तुक्के में जारी कर दिए गए थे?
अलबत्ता, यह कोई नई बात नहीं है कि आयोग का विवादों से गहरा नाता रहा है। गौरतलब है कि पहले से ‘प्री’ और ‘मुख्य परीक्षा’ के पेपर बेचने के आरोप और उसकी जांच के चलते वर्ष 2०12 की मुख्य परीक्षा के परिणाम, साक्षात्कार न होने के वजह से लटके हुए हैं। क्या सरकार की यही संवेदनशीलता है कि वह अपनी मेहनत से रात दिन एक कर तैयार करें और संस्थाओं की कारगुजारियों के चलते छात्र दर-दर की ठोकरें खाते रहें और अपनी मनमानी पर उतारू रहे। व्यापमं मसले में वैसे भी कई योग्य छात्रों की प्रतिभा का हनन हो चुका है। ऐसे में भी आयोग इन लापरवाहियों से सबक कब लेगा चिंता का विषय है। लोकतंत्र में चाहे सरकार हो अथवा संवैधानिक संस्थाएं दोनों की जबावदेही अवाम के प्रति है जिसका संज्ञान यहा बैठे साहबानों को होनी चाहिए।
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