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मध्य प्रदेश

पेन ड्राइव की जांच पर क्यों घबरा रही शिवराज सरकार !

इंदौर : पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी दिग्विजय सिंह द्वारा जो पेन ड्राइव व्यापमं घोटाले के मद्देनजर सौंपी गई थी जिसमें सनसनीखेज खुलासे का दावा किया था उसका भूत एक बार फिर जाग गया है। हालांकि हाईकोर्ट पेन ड्राइव के तथ्यों को खारिज कर चुकी है, लेकिन कल सुनवाई के दौरान इस पेन ड्राइव को जांच के लिए एसटीएफ को सौंपे जाने के निर्णय का शासन की ओर से विरोध किया गया। यह दलील दी गई कि पेन ड्राइव की जांच होने से कानूनी पेंचिदगियां बढ़ेंगी। लिहाजा हाईकोर्ट ने इस पर अंतिम निर्णय 7 जुलाई को लेना तय किया है।

<p>इंदौर : पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी दिग्विजय सिंह द्वारा जो पेन ड्राइव व्यापमं घोटाले के मद्देनजर सौंपी गई थी जिसमें सनसनीखेज खुलासे का दावा किया था उसका भूत एक बार फिर जाग गया है। हालांकि हाईकोर्ट पेन ड्राइव के तथ्यों को खारिज कर चुकी है, लेकिन कल सुनवाई के दौरान इस पेन ड्राइव को जांच के लिए एसटीएफ को सौंपे जाने के निर्णय का शासन की ओर से विरोध किया गया। यह दलील दी गई कि पेन ड्राइव की जांच होने से कानूनी पेंचिदगियां बढ़ेंगी। लिहाजा हाईकोर्ट ने इस पर अंतिम निर्णय 7 जुलाई को लेना तय किया है।</p>

इंदौर : पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी दिग्विजय सिंह द्वारा जो पेन ड्राइव व्यापमं घोटाले के मद्देनजर सौंपी गई थी जिसमें सनसनीखेज खुलासे का दावा किया था उसका भूत एक बार फिर जाग गया है। हालांकि हाईकोर्ट पेन ड्राइव के तथ्यों को खारिज कर चुकी है, लेकिन कल सुनवाई के दौरान इस पेन ड्राइव को जांच के लिए एसटीएफ को सौंपे जाने के निर्णय का शासन की ओर से विरोध किया गया। यह दलील दी गई कि पेन ड्राइव की जांच होने से कानूनी पेंचिदगियां बढ़ेंगी। लिहाजा हाईकोर्ट ने इस पर अंतिम निर्णय 7 जुलाई को लेना तय किया है।

कुछ समय पूर्व इस चर्चित पेन ड्राइव को लेकर जबरदस्त हल्ला मचा और इंदौर-भोपाल से लेकर नई दिल्ली तक इस पेन ड्राइव की गूंज रही। दिग्विजय सिंह द्वारा सौंपी गई इस पेन ड्राइव में सीधे-सीधे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, उनकी पत्नी और अन्य नामी-गिरामी लोगों पर आरोप लगाए गए थे, जिसको लेकर दिल्ली के न्यूज चैनलों में भी खबरें खूब चलीं और राजनीतिक रूप से भी जबरदस्त सरगर्मी रही, लेकिन जबलपुर हाईकोर्ट ने पेन ड्राइव की सत्यता को स्वीकार नहीं किया और शासन द्वारा कराई गई जांच को ही मान्य कर लिया। हालांकि दिग्विजय सिंह ने बाद में सुप्रीम कोर्ट की भी शरण ली है। उनका तो अभी भी पुख्ता दावा है कि पेन ड्राइव सही है और मध्यप्रदेश सरकार खुद चाहे तो इसकी जांच केन्द्र सरकार के अधीन आने वाली प्रयोगशाला में करवा सकती है। दरअसल यह पेन ड्राइव व्यापमं घोटाले के विसल ब्लोअर प्रशांत पांडे ने उपलब्ध करवाई थी, जिसने दिल्ली हाईकोर्ट से अपनी सुरक्षा ली हुई है। कल व्यापमं घोटाले की सुनवाई के वक्त पेन ड्राइव का मामला फिर उठा, जिस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि यह पेन ड्राइव जांच के लिए एसटीएफ को सौंपी जा सकती है, लेकिन इसका विरोध शासन की ओर से खड़े हुए महाधिवक्ता ने किया और दलील दी कि दोबारा जांच करने से कई कानूनी पेंचिदगियां खड़ी होंगी और अभी एसटीएफ द्वारा जो जांच की जा रही है उसमें भी दिक्कतें आएंगी। यह भी कहा गया कि संभव है कि एसटीएफ को पेन ड्राइव सौंपे जाने से पहले उसमें किसी तरह की छेडख़ानी कर दी गई हो। लिहाजा हाईकोर्ट ने कल निर्देश दिए कि इस संबंध में कानूनी रास्ता महाधिवक्ता के साथ-साथ कोर्ट मित्र द्वारा निकाला जाए और इस संबंध में 7 जुलाई को रिपोर्ट सौंपे ताकि हाईकोर्ट फिर उस पर अंतिम निर्णय लेगी। उल्लेखनीय है कि पेन ड्राइव और उसमें मौजूद एक्सल शीट को शासन की ओर से हाईकोर्ट में फर्जी बताया गया है और मुख्यमंत्री से लेकर तमाम भाजपा के पदाधिकारी भी इस एक्सल शीट को फर्जी बोल चुके हैं। अब सवाल यह है कि जब पेन ड्राइव और एक्सल शीट ही अगर वाकई फर्जी है तो फिर शिवराज सरकार को उसकी जांच करवाने में किस बात का परहेज है और क्यों वह एसटीएफ को पेन ड्राइव सौंपे जाने से डर रही है? इधर व्यापमं घोटाले के लगभग 45 आरोपियों की मौत का मामला भी इन दिनों चर्चा में है, जिसकी सीबीआई जांच की मांग भी तेज हो गई। हालांकि दारोमदार सुप्रीम कोर्ट पर टीका है जहां दिग्विजय सिंह सहित अन्य ने याचिकाएं फिर से दायर की हैं। इधर जेल में बंद घोटाले के आरोपियों पर अब निगाह भी रखी जा रही है ताकि  उनके साथ कोई हादसा ना हो। इनमें से कई ने तो आत्महत्याएं भी की हैं।

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व्यापमं घोटाले के मामले में अभी तक 1800 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और 500 आरोपी फरार बताए गए हैं। इनमें तो कई बेकसूरों को तो जेलों में ठूंस दिया गया है इसके चलते कई परिवार तबाह हो गए। बाप के साथ-साथ बेटा भी जेल में है। वहीं एक मामला ग्वालियर का भी सामने आया, जिसमें 28 साल के आरोपी बनाए गए रामेन्द्रसिंह भदौरिया ने कुछ समय पहले आत्महत्या कर ली थी, जब एसटीएफ ने उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। मगर बाद में एसटीएफ ने उसे निर्दोश भी बता दिया, लेकिन तब तक वह आत्महत्या कर चुका था। अब उसके 62 साल के बूढ़े  पिता नारायणसिंह भदौरिया न्याय की मांग करते हुए खुद अपनी मौत का भी इंतजार कर रहे हैं। उनका सवाल यह है कि मेरे बेटे ने किसी का क्या बिगाड़ा था और उसे निर्दोश भी माना गया, लेकिन तब तक वह दुनिया ही छोड़ चुका था और उनका तो पूरा परिवार ही तबाह हो गया। ऐसे एक नहीं सैंकड़ों किस्से इस घोटाले से जुड़े हैं। अब कांग्रेस ऐसे तमाम पीडि़तों के घर-घर जाएगी ताकि उनकी कहानिया जनता और अदालत के सामने लाई जा सके।

इंदौर के सांध्य दैनिक अग्निबाण से संबद्ध लेखक-पत्रकार राजेश ज्वेल से संपर्क : 09827020830, [email protected])

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