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हरियाणा

राजनीति के शोर में दबती मुरथल की आवाज

-प्रभुनाथ शुक्ल-

मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं अपनी बात कहां से रखूं। हमारे पास विषय की कमी नहीं दिखी है। लेकिन मैं खुद से उलझा हूं कि क्या हम अपने सामाजिक और राष्टिय दायित्वों के प्रति न्याय कर पा रहा हूं। अपने आप में यह बड़ा सवाल है। देश आज भक्ति को लेकर जल रहा है। राष्टभक्ति और हमारी विश्वसनीयता सवालों के कटघरे में खड़ी है।  लेकिन देश और उसकी द्रोहता को लेकर संसद और उसका सत्र गर्म है। रोहित बेमुला के साथ कन्हैया कुमार भी है। साथ में हमारी कथित रुप से पंथ, धर्म और जाति निरपेक्षी राजनीति भी। अगर मैं किसी को छोड़ दूंगा तो यह हमारे लिए नाइंसाफी होगी, खैर हम कोई इंसाफ के देवता नहीं है मामूली इंसान हैं और गलती उसका स्वभाव है। लेकिन जब गलती जानबूझ कर की जाय तो उसे माफी नहीं दी जा सकती है। उसका प्रायश्चित सिर्फ दंड और उसका विधान ही है।

<p><span style="font-size: 8pt;"><strong>-प्रभुनाथ शुक्ल-</strong></span></p> <p>मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं अपनी बात कहां से रखूं। हमारे पास विषय की कमी नहीं दिखी है। लेकिन मैं खुद से उलझा हूं कि क्या हम अपने सामाजिक और राष्टिय दायित्वों के प्रति न्याय कर पा रहा हूं। अपने आप में यह बड़ा सवाल है। देश आज भक्ति को लेकर जल रहा है। राष्टभक्ति और हमारी विश्वसनीयता सवालों के कटघरे में खड़ी है।  लेकिन देश और उसकी द्रोहता को लेकर संसद और उसका सत्र गर्म है। रोहित बेमुला के साथ कन्हैया कुमार भी है। साथ में हमारी कथित रुप से पंथ, धर्म और जाति निरपेक्षी राजनीति भी। अगर मैं किसी को छोड़ दूंगा तो यह हमारे लिए नाइंसाफी होगी, खैर हम कोई इंसाफ के देवता नहीं है मामूली इंसान हैं और गलती उसका स्वभाव है। लेकिन जब गलती जानबूझ कर की जाय तो उसे माफी नहीं दी जा सकती है। उसका प्रायश्चित सिर्फ दंड और उसका विधान ही है।</p>

-प्रभुनाथ शुक्ल-

मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं अपनी बात कहां से रखूं। हमारे पास विषय की कमी नहीं दिखी है। लेकिन मैं खुद से उलझा हूं कि क्या हम अपने सामाजिक और राष्टिय दायित्वों के प्रति न्याय कर पा रहा हूं। अपने आप में यह बड़ा सवाल है। देश आज भक्ति को लेकर जल रहा है। राष्टभक्ति और हमारी विश्वसनीयता सवालों के कटघरे में खड़ी है।  लेकिन देश और उसकी द्रोहता को लेकर संसद और उसका सत्र गर्म है। रोहित बेमुला के साथ कन्हैया कुमार भी है। साथ में हमारी कथित रुप से पंथ, धर्म और जाति निरपेक्षी राजनीति भी। अगर मैं किसी को छोड़ दूंगा तो यह हमारे लिए नाइंसाफी होगी, खैर हम कोई इंसाफ के देवता नहीं है मामूली इंसान हैं और गलती उसका स्वभाव है। लेकिन जब गलती जानबूझ कर की जाय तो उसे माफी नहीं दी जा सकती है। उसका प्रायश्चित सिर्फ दंड और उसका विधान ही है।

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जिस घटना ने मुझे सबसे अधिक झकझोरा है वह है हरियाणा के सोनीपत जिले का मुरथल। जी हां अब तो हमारी बात आप समझ गए होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं। राजनीति के शोर और आरक्षण की आग में एक सच जिंदा जल गया। लेकिन हम मौन रहे। आखिर यह कैसी राजनीति है। आंखों देखे गए सच को दफना दिया गया। जाट आरक्षण उत्सव धर्मियों ने संपत्ति के साथ इज्जत और अस्मिता को भी खाक कर दिया। आज हमारे सामाने मुरथल का का नंगा सच परत दर परत खुल रहा है और देश का सिर शर्म से झुक गया है। देश में सबको अपने-अपने तरीके की आजादी है लेकिन ऐसी आजादी किस काम की जो दूसरे की निजता और स्वतंत्रता को जला कर राख कर  दे। क्या हमारी राजनीति, संसद और नेताओं के पास मुरथल के सवालों का जबाब है। शायद असंभव।

हरियाणा में जाटों को आरक्षण उत्सव के लिए खुली छूट दी गयी। आरक्षण की आग पूरे हरियाणा से निकल कर दिल्ली और यूपी पहुंच गयी लेकिन एक सबका साथ और सबका विकास के साथ सत्ता संभालनेवाली दिल्ली की मोदी और हरियाणा की ख्टटर सरकार मुंह पर मुंह और आंखों को बंद रखा और दुर्योधन की सेना और दुश्सासन नंगा नाच करते रहे। पुलिस और काननू व्यवस्था मूक बनी रही सेना भी हमारी बेवस दिखी। आरक्षण के जरिए आजादी चाहने वालों ने हरियाणा का जला कर राख कर दिया। 30 हजार करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो गयी। क्योंकि जाट वहां का सबसे मजबूत तबका है। खटटर सरकार उन उपद्रवियों का कुछ नहीं कर पायी। ऐसा लगता है कि यह सब कुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ। लेकिन बेमुला, कन्हैया कुमार और असहिष्णुता पर संसद ठप करने वाले लोगों की जुबान मुरथल के चीरहरण पर बंद क्यों है।

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जितने भी मसले हमने गिनाए आखिर उनमें सबसे अधिक हमारी संवेदना और कानून व्यवस्था को कौन झकझोरता है। हरियाणा में जिस तरह सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति को नुकसाना पहुंचाया गया। उसकी बानगी अब तक देश के किसी आरक्षण या अन्य आंदोलन में नहीं दिखी। यहंा तक की मंडल कमीशन लागू होने के बाद भी यह आंदोलन इस तरह का हिंसक नहीं हुआ। महिलाओं और बेटियों को अगवा कर उनकी आबरु लूटी गयी यह खुली छूट संविधान के किस व्यवस्था में है। बेमुला किस जाति का रहा, कन्हैया कुमार देशद्रोही है कि नहीं यह निर्णय अदालत करेगी। लेकिन हरियाणा में आरक्षण के आनंद उत्सव के दौरान जिस तरह की मानवीयता और इंसानियत की सारी हदें तोड़ दी गयी हमारे लिए यह चिंता का विषय है। क्या हमारी देशभक्ति का पैमाना यही है। गुलामी की दांस्ता को भी मुरथल ने मात दी है।

उस दौरान तो अनगिनत भगतसिंह, सुखदेव और राजगुुरु देश भक्ति का साफा बाद देश को बचाने कूद पडे थे। लेकिन यहां तो पूरी लोकतांत्रिक सरकार ही सब कुछ मौन होकर देखती रही। लेकिन आरक्षण के उस महाभारत और उपद्रवी जाट आंदोलनकारियों के आगे किसी की हिम्मत नहीं पडी। अब जब आंदोलन की आग खत्म हो चली है तो कुछ साहसी पत्रकारों के चलते इसकी परत दर परत खुलने लगी है। भीड़ अंधी बनी रही दिल्ली से सिर्फ 42 किमी दूर राष्टीयराजमार्ग पर निर्भयाओं की अस्मत खेतों में लूटती रही लेकिन किसी की आवाज नहीं निकली। कामांध जाट युवा खेतों में खींच कर उनकी इज्जत को लुटा।

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मुरथल लजीज व्यंजनों और पिकनिक के लिए इस हाइवे पर बेहतर स्थान है। यहां लोग परिवार के साथ सप्ताहांत के दिन अक्सर आते हैं। हलांकि इसकी सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी लेकिन जिन लोगों के मीडिया में बयान आए हैं उन्होंने कबूला है कि आरक्षण के अलंबरदारों ने दस महिलाओं और लड़कियों को कार से जबरिया खींच कर खेतों की ओर ले गए वे चिल्लाती रही लेकिन आरक्षण और जाति की आग में एक सच जलता रहा। घटना स्थल पर मीडिया में एक चश्मदीद गवाह का नाम आया है उसके अनुसार महिलाओं ने खुद को बचाने का प्रयास किया। खेतों से चींखने की आवाजें गूंज रही थी। घटना स्थल पर मलिाओं के अतः वस्त्र फटे कपड़े मिले हैं।

एक बुजुर्ग टक चालक ने यह कबूला है कि महिलाओं की इज्जत को तार-तार किया गया और औरतों का खेतों तक पीछा किया गया। यह सब क्यों किया गया। इतने के बाद क्या उनके साथ कोई वफादारी बात सोची जा सकती है। आरक्षण का यह आंदोलन किसी नीति और सिद्धांत पर आधारित नहीं था। यह दिशाहीन था। यह छुटटे सांड की तरह था जिससे यह अपने उदेदेश्यों और हितों को भूल गया था। सरकार को अपना वोट बैंक बचाना था किसी की अस्मत से भला क्या मतलब। मुरथल के साथ न्याय होना चाहिए। इसे हम सबसे बड़ा देशद्रोह मानते हैं। अगर किसी को अपना सिर किसी के चरणों में रखना है तो उन पीड़ित महिलाओं और बेटियों के सामने रखें। हलांकि जब इतना कुछ हुआ है तो इन घटनाओं की वीडियों क्लीप भी बनायी गयी होगी। लेकिन अभी यह बात सामने नहीं आ रही है। लेकिन अब जब इसकी परत खुलने लगी है तो आज नही तो कल यह सच सामने आएगा।

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राजनीति के सामने देश गौंण हो चुका है। केवल वोटबैंक का खुला नर्तन है। मुरथल की पीडा अंतहीन है। इसका सच सामने आना चाहिए। पीड़ित महिलाएं और लड़कियां कौन थी। क्या वे जाट नहीं रही। क्योंकि आंदोलन की मूल दिशा इसी ओर दिखी। गैर जाटों की संपत्तियों को आग के हवाले नहीं किया गया। इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए। क्योंकि बगैर न्यायिक जांच के इस इसका सच सामने नहीं आएगा। इस मसले पर कांग्रेस, वामपंथ और भाजपा समेत गैर सत्ताधारी दलों को सकारात्मक रवैया अपना चाहिए। क्योंकि पीड़ित महिलाएं इसे एक .त्रासदी मान भूनाना चाहेंगी। वे कानूनी पचड़ों पड़ मीडिया में एक बार फिर अपनी जगहंसाई कराने से बचना चाहेंगी। कोई भी परिवार यह नहीं चाहेगा की इस पर फिर से बावेला हो, क्योंकि इस घटना में गैर शादीशुदा लड़कियों के होन की बात भी आयी है। इस स्थिति में इस पूरे मामले की केंद्र सरकार खुद सीबीआई से जांच कराए और दोषियों को उनके पापों की सजा दिलाए। वरना ऐसी घटनाएं आंदोलन की भाषा की परिभाषा बन जाएगी।

लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क सूत्र : मोबाइल 892400544

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0 Comments

  1. Jaswant rao

    March 7, 2016 at 5:10 am

    sarkar, jab bhi ambedkarvaadio ne awaaj uthai to unhe dharmik kattarpanthi sangathno ne kucalne ki kosis ki kabhi bomb blast( atankvaad ka naam dekar) , kabi dharmik dango ke roop me, kabhi arakshan ki aadhn me , aur ab fir hindu muslim ki aag sulgai ja rahi he(jisme dalito ko savdhaan rahnaa he) jin jhaso me hindhu muslim ko nahi aana he.

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