Ashwini Kumar Srivastava : 2017 मार्च में सरकार में आने के बाद योगी आदित्यनाथ ने सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार हटाने के लिए सिस्टम में जितनी हवा भरी थी, वह महज एक साल में ही निकल कर फुस्स हो गयी है। जनसुनवाई एप्प, वेबसाइट और कॉल सेंटर के जरिये जिस शिकायत तंत्र से मुख्यमंत्री महोदय उत्तर प्रदेश को सुधारने निकले थे, वह तंत्र भी इन दिनों में जिस रफ्तार में शिकायतें सुनकर उस पर कार्यवाही कर रहा है, उससे तो शायद कछुवा भी शर्मा जाए।
यही नहीं, प्रदेश के घाघ और भ्रष्ट अफसरों-कर्मियों ने अब लगता है कि जनसुनवाई जैसे शिकायती तंत्र के कर्मियों तक रिश्वत की गंगा भी पहुंचा दी है, लिहाजा अनाप-शनाप तरीकों से लोगों की समस्याओं का निस्तारण हो भी जा रहा है और समस्या वहीं जस की तस बनी भी रह रही है।
खुद मैंने बिजली विभाग में अपनी टाउनशिप के लिए लोड सेंक्शन का आवेदन करने के बावजूद कई महीनों तक उसकी मंजूरी न मिलने की जो शिकायत की थी, वह बाकायदा निस्तारित भी हो गयी और लोड भी सेंक्शन नहीं हुआ।
सितंबर 2017 में मैंने बिजली का लोड सेंक्शन करवाने का आवेदन दिलवाया था। बिजली विभाग में 10 हजार रुपये का शुल्क जमा करवाया और मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, लखनऊ के विभाग ने बाकायदा इसके लिए दिनांक 8 सितंबर 2017 को पुस्तक संख्या 151323 व रसीद संख्या 29 के जरिये इसके प्राप्त होने की रसीद भी दी।
फिर जब महीनों तक कुछ नहीं हुआ और फ़ाइल पर अफसर कुंडली मारकर बैठ गए तो दिनांक 23 जनवरी 2018 यानी चार माह बाद जनसुनवाई एप्प के जरिये मुख्यमंत्री तक इसकी शिकायत पहुंचाई।
लेकिन नतीजा तो खैर क्या निकलता, दो माह बाद मेरी शिकायत संख्या 40015718004702 को निस्तारित कर दिया गया। वह निस्तारित इस बिना पर हो गई कि बिजली विभाग ने आख्या लगा दी कि कार्यवाही चल रही है। अब बताइये कि छह माह से कार्यवाही चल रही है और हुआ कुछ नहीं है… मुख्यमंत्री के यहां इस पर ध्यान नहीं दिया गया और इसी आख्या को समस्या का निस्तारण मान लिया गया।
फिर मैने जब असंतुष्टि का फीडबैक दिया तो शिकायत पुनर्जीवित तो हो गयी मगर अब निर्धारित तिथि बीतने के बावजूद उस पर कुछ जवाब तक नहीं आ रहा है। आठ माह तो बीत ही गए हैं और लगता है कि देखते ही देखते एक साल भी निकल ही जाएगा।
इससे पहले ढाई बरस में मैंने अपना एक प्रोजेक्ट लीडा से अप्रूव कराने में सफलता पाई थी, वह भी एक के बाद एक महीनों तक लगातार सारे सुबूत जुटाकर शिकायतें करते रहने के बाद। लगता है अब बिजली विभाग से भी लोड सेंक्शन कराने के लिए ऐसे ही मोर्चा खोलना पड़ेगा। हालांकि लीडा में मुख्यमंत्री तक मामला पहुंचाने और महीनों तक लड़ाई लड़ने के बाद प्रोजेक्ट भले ही ढाई बरस की देरी से मंजूर हो गया हो…लेकिन योगी सरकार की महिमा देखिये कि ढाई बरस तक फ़ाइल को दबाए रखने वाले अफसर वहीं उसी मजबूती से अपनी अपनी कुर्सियों पर जमे हुए हैं।
समझ नहीं आता कि जब हम जैसे पूर्व पत्रकारों का यह हाल है इस सरकार के तंत्र के सामने तो आम जनता का क्या हाल होता होगा। हालत यह है कि आज मेरे ही कारोबारी सहयोगी ने बिजली विभाग से एक कनेक्शन को स्थायी रूप से कटवाने का आवेदन मेरे कहने पर जमा करने के बाद बताया कि बिना घूस दिए विभाग कनेक्शन भी नहीं काटेगा। उसने दैनिक जागरण के एक पत्रकार का जिक्र करते हुए कहा कि वह खुद वहां भारी घूस देकर आये हैं, तभी उनका काम हो पाया है। इससे पहले उन्होंने भी आईजीआरएस में मुख्यमंत्री तक शिकायत करके काम करवाने की कोशिश की लेकिन कोई सुनवाई न होने के बाद वह अंततः घूस की ही शरण में जा पहुंचे।
आखिर यह कैसा प्रदेश है और कैसी नाकारा सरकार है कि जहां बिजली का कनेक्शन लो तो भारी घूस दो और कटवाओ तो भारी घूस दो। और अगर लाखों रुपये की रिश्वत नहीं देने को तैयार हो तो फिर चाहे मुख्यमंत्री तक पहुंच जाओ, फ़ाइल टस से मस नहीं हो सकती। प्रोजेक्ट करना चाहो तो घूस दो, कोई एनओसी चाहो तो घूस दो…मतलब यहां के अधिकारी तो अब इस सरकार में इस दशा में पहुंच गए हैं कि लगता है कि ट्रेन, प्लेन या बस यात्रियों से यूपी से गुजरने के नाम पर भी घूस मांगने का सिस्टम डेवेलप कर देंगे।
और अपने योगी जी महाराज तो महज एक साल में ही भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के सामने असहाय नजर आने लगे हैं। फिर भी न जाने कैसे इन्वेस्टर्स सम्मिट के जरिये यहां देश-दुनिया भर से व्यापारियों और उद्यमियों की भरमार करने की आस भी लगाए बैठे हैं…महाराज जी, आपके अफसरों-कर्मियों की मेहरबानी से यहां जो पहले से ही व्यापार करने में अपना सब कुछ लुटाये जा रहे हैं, पहले उनको तो बचा लीजिये…फिर कहीं जाकर देश-दुनिया में न्योता बाँटियेगा…
दिल्ली में पत्रकारिता करने के बाद लखनऊ में रीयल इस्टेट फील्ड में सक्रिय अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.