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हिमाचल प्रदेश

‘हिमाचल दस्तक’ से पिटता नजर आ रहा ‘अमर उजाला’

अमर उजाला को बाय-बाय करने के साथ ही राजेश मंढोत्रा ने हिमाचल दस्तक के राज्य ब्यूरो प्रमुख के पद पर शिमला ज्वाइन किया है। ज्वाइनिंग के बाद से ही वे एक के बाद एक ताबड़तोड़ खबरें छाप रहे हैं। प्रदेश सरकार की अंदर की खबरों के मामले में अमर उजाला हाल ही में प्रकाशित छोटी से लोकल अखबार के आगे पिटता नजर आ रहा है। ज्ञात रहे कि स्व. राजन टोडरिया के समय में अमर उजाला का राज्य ब्यूरो दमदार भूमिका में रहा है। हालांकि बीच में उदय कुमार के नकारात्मक और निहित स्वार्थी किस्म के प्रयोगों के चलते यह धार बीच में कुछ कम जरूर हुई थी, मगर गिरीश गुरुरानी जैसे अनुभवी के कारण स्थिति काबू में आ गई थी। उन्हें गए भी तीन साल हो चुके हैं। तब से लेकर धर्मशाला ट्रांसफर किए जाने तक राजेश मंढोत्रा ने अपने संपर्कों के जरिये राज्य ब्यूरो को बाकी अखबारों के मुकाबले अच्छी स्थिति में रखा था।

<p>अमर उजाला को बाय-बाय करने के साथ ही राजेश मंढोत्रा ने हिमाचल दस्तक के राज्य ब्यूरो प्रमुख के पद पर शिमला ज्वाइन किया है। ज्वाइनिंग के बाद से ही वे एक के बाद एक ताबड़तोड़ खबरें छाप रहे हैं। प्रदेश सरकार की अंदर की खबरों के मामले में अमर उजाला हाल ही में प्रकाशित छोटी से लोकल अखबार के आगे पिटता नजर आ रहा है। ज्ञात रहे कि स्व. राजन टोडरिया के समय में अमर उजाला का राज्य ब्यूरो दमदार भूमिका में रहा है। हालांकि बीच में उदय कुमार के नकारात्मक और निहित स्वार्थी किस्म के प्रयोगों के चलते यह धार बीच में कुछ कम जरूर हुई थी, मगर गिरीश गुरुरानी जैसे अनुभवी के कारण स्थिति काबू में आ गई थी। उन्हें गए भी तीन साल हो चुके हैं। तब से लेकर धर्मशाला ट्रांसफर किए जाने तक राजेश मंढोत्रा ने अपने संपर्कों के जरिये राज्य ब्यूरो को बाकी अखबारों के मुकाबले अच्छी स्थिति में रखा था।</p>

अमर उजाला को बाय-बाय करने के साथ ही राजेश मंढोत्रा ने हिमाचल दस्तक के राज्य ब्यूरो प्रमुख के पद पर शिमला ज्वाइन किया है। ज्वाइनिंग के बाद से ही वे एक के बाद एक ताबड़तोड़ खबरें छाप रहे हैं। प्रदेश सरकार की अंदर की खबरों के मामले में अमर उजाला हाल ही में प्रकाशित छोटी से लोकल अखबार के आगे पिटता नजर आ रहा है। ज्ञात रहे कि स्व. राजन टोडरिया के समय में अमर उजाला का राज्य ब्यूरो दमदार भूमिका में रहा है। हालांकि बीच में उदय कुमार के नकारात्मक और निहित स्वार्थी किस्म के प्रयोगों के चलते यह धार बीच में कुछ कम जरूर हुई थी, मगर गिरीश गुरुरानी जैसे अनुभवी के कारण स्थिति काबू में आ गई थी। उन्हें गए भी तीन साल हो चुके हैं। तब से लेकर धर्मशाला ट्रांसफर किए जाने तक राजेश मंढोत्रा ने अपने संपर्कों के जरिये राज्य ब्यूरो को बाकी अखबारों के मुकाबले अच्छी स्थिति में रखा था।

पिछले कुछ माह से हालत यह है कि यह अखबार अपनी धार खोती नजर आ रही है। हालांकि राजेश मंढोत्रा ने धर्मशाला में रहते हुए भी कुछ अच्छी खबरें निकाल कर अखबार को सुर्खियों में रखा, मगर अखबार प्रबंधन उनके अनुभव का फायदा उठाने के बजाय उन्हें बाहर करने की जुगत में लगी रही। बताया जा रहा है कि उन्हें शिमला से बाहर करने के लिए उदय कुमार ने पूरा जोर लगा रखा है। हालांकि अखबार प्रबंधन की कोशिश यही रहती है कि किसी एक को एक जगह पूरी तरह हावी न होने दिया जाए। इसी रणनीति के तहत राज्य ब्यूरो प्रमुखों को कुछ सालों के बाद हटाया जाता रहा है, मगर उन्हें उनके कार्यों के लिए प्रमोट करके आगे की जिम्मेवारी सौंपी जाती रही है।

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राजेश मंढोत्रा के मामले में ऐसा नहीं किया गया। उन्हें बिना प्रमोट किए राज्य ब्यूरों से नीचे एक जिला कार्यालय में बिठा दिया गया। बताया जाता है कि उनके साथ यह सलूक उदय कुमार ने अपने चेले का बदला लेने के लिए किया है। उनका यह चेला हिमाचल के संपादकों तक पर भारी पड़ता है। गिरीश गुरुरानी के समय उनके इस चेले को राज्य ब्यूरो प्रमुख के पद से हटाकर डेस्क पर ट्रांस्फर कर दिया गया था। उसके हटते ही राजेश मंढोत्रा को यह गद्दी मिली थी, मगर गिरीश के जाने के बाद भी मंढोत्रा को नहीं हटाया गया। इस पर कहा जाता था कि मंढोत्रा ने उदय कुमार को पटा लिया है, मगर धर्मशाला पटके जाने के बाद सबको समझ में आया कि उदय कुमार के वार से टोडरिया जैसे दिगगज नहीं बच पाए तो वह क्या चीज है। फिलहाल इस सारी अंदरूनी राजनीति में अखबार की लुटिया डूबती नजर आ रही है।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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