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इन 23 मौतों पर मीडिया चुप क्यों है?

जेसिका लाल हत्याकांड पर आए कोर्ट के फैसले को लेकर नाखुश मीडिया ने इसे यूं सुर्खी बनाया- “नो वन किल्ड जेसिका”. इसके बाद मीडिया सहित तमाम लोगों की आत्मा जाग उठती है और नतीजा जेसिका को इंसाफ के रूप में सामने आता है. उपहार सिनेमा कांड में भी मीडिया की सक्रियता से अंसल बंधुओं को 60 करोड़ रुपए का जुर्माना होता है लेकिन जालंधर में एक फैक्ट्री की छत गिरने से हुई 23 मजदूरों की मौत के मामले में जब अदालत का फैसला आता है तो न तो नेशनल मीडिया की आत्मा जगती है और न ही इस खबर को रिपोर्ट करने लायक तक समझा जाता है.

<p>जेसिका लाल हत्याकांड पर आए कोर्ट के फैसले को लेकर नाखुश मीडिया ने इसे यूं सुर्खी बनाया- "नो वन किल्ड जेसिका". इसके बाद मीडिया सहित तमाम लोगों की आत्मा जाग उठती है और नतीजा जेसिका को इंसाफ के रूप में सामने आता है. उपहार सिनेमा कांड में भी मीडिया की सक्रियता से अंसल बंधुओं को 60 करोड़ रुपए का जुर्माना होता है लेकिन जालंधर में एक फैक्ट्री की छत गिरने से हुई 23 मजदूरों की मौत के मामले में जब अदालत का फैसला आता है तो न तो नेशनल मीडिया की आत्मा जगती है और न ही इस खबर को रिपोर्ट करने लायक तक समझा जाता है.</p>

जेसिका लाल हत्याकांड पर आए कोर्ट के फैसले को लेकर नाखुश मीडिया ने इसे यूं सुर्खी बनाया- “नो वन किल्ड जेसिका”. इसके बाद मीडिया सहित तमाम लोगों की आत्मा जाग उठती है और नतीजा जेसिका को इंसाफ के रूप में सामने आता है. उपहार सिनेमा कांड में भी मीडिया की सक्रियता से अंसल बंधुओं को 60 करोड़ रुपए का जुर्माना होता है लेकिन जालंधर में एक फैक्ट्री की छत गिरने से हुई 23 मजदूरों की मौत के मामले में जब अदालत का फैसला आता है तो न तो नेशनल मीडिया की आत्मा जगती है और न ही इस खबर को रिपोर्ट करने लायक तक समझा जाता है.

कारण सिर्फ एक है कि यह हादसा जालंधर में हुआ और जालंधर दिल्ली नहीं है. दिल्ली के लोगों की जान जान है और जालंधर के लोग कीड़े मकोड़े. शीना बोरा हत्या कांड पर छाती पीट पीट कर टी वी पर डिबेट करने वाले संपादक अब कहाँ है? क्यों नहीं उन 23 लोगों की मौत पर कोई बहस हो रही. 2012 में 15 और 16 अप्रैल की रात हुई इस घटना में 23 लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 27 अन्य घायल हुए थे. अदालत ने इस मामले में सारे छह आरोपियों को बाइज्जत रिहा कर दिया. इस पूरे मामले में सिर्फ अंग्रेजी अख़बार ट्रिब्यून ने विश्लेषण छापा जबकि अन्य अख़बार इस मामले में चुप ही रहे. शायद किसी भी अख़बार को उन लोगों के दर्द से दर्द नहीं जो इस हादसे में मारे गए. टीवी चैनल्स को मजदूरों की मौत से टीआरपी नहीं मिलेगी, इसलिए इनने भी ध्यान नहीं दिया.

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