सरकार को केवल किसानों की चिंता है… लगता है कोई और तबका इस देश में रहता ही नहीं…
श्रीगंगानगर। पटाखा फैक्ट्री मेँ आग से दो दर्जन से अधिक व्यक्ति मारे गए। एमपी मेँ सरकारी गोली से आंदोलनकारी 6 किसानों की मौत हो गई। दो दर्जन से अधिक संख्या मेँ मारे व्यक्तियों का जिक्र कहीं कहीं है और किसानों के मरने का चप्पे चप्पे पर। राजनीतिक गलियारों मेँ। टीवी की डिबेट मेँ। अखबारों के आलेखों मेँ। संपादकीय में। बड़े बड़े कृषि विशेषज्ञ लेख लिख रहे है। उनकी इन्कम का लेख जोखा निकाला जा रहा है। उनके कर्ज माफ करने की चर्चा है। उस पर चिंतन और चिंता है। कुल मिलाकर देश का फोकस किसानों पर है।
लगता है कोई और तबका इस देश मेँ रहता ही नहीं।
किसानों को छींक भी आ जाए तो सरकारें कांपने लगती हैं। राजनीतिक दलों मेँ हल चल मच जाती है। नेताओं के दौरे शुरू होते हैं। किसानों के अतिरिक्त किसी की चिंता नहीं। कमाल है! हद है! बड़े शर्म की बात है इस लोकतन्त्र मेँ, जो केवल एक वर्ग की बात करता है। मात्र एक तबके पर अपना पूरा ध्यान लगाता है। सबसिडी किसानों को। कर्ज माफ किसानों का। फसल खराब तो मुआवजा किसान के खाते मेँ। टैक्स की फुल छूट किसानों को। सस्ती बिजली किसानों को।
कोई पूछने वाला हो इनसे कि ऐसा क्यों! करो माफ किसानों के कर्ज, क्योंकि आधे से अधिक विधायक, सांसद के प्रोफाइल में किसान लिखा मिलेगा। अपने क्षेत्र मेँ देख लो, पूर्व मंत्री गुरजंट सिंह बराड़ किसान। पूर्व मंत्री गुरमीत सिंह कुन्नर किसान। पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर, संतोष सहारण, विधायक राजेन्द्र भादू किसान। पूर्व विधायक गंगाजल मील किसान। मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी, डॉ राम प्रताप किसान….अनगिनत हैं इस लिस्ट मेँ। देश मेँ कितने होंगे! कोई भी कल्पना करके देख ले। कर दो इन सबके कर्जे माफ। क्योंकि ये सब के सब बेचारे हैं। हालत के मारे हैं। इससे बड़ा मज़ाक कोई और हो भी सकता है क्या!
एक दुकानदार को घाटा हो गया। कर्ज नहीं चुका सका। बैंक वाले आ गए ढ़ोल लेकर। उसके घर के सामने खूब बजाए। उस बंदे की इज्जत का तो हो गया सत्यानाश। कोई मुसीबत का मारा नहीं चुका सका कर्ज, कर दिया उसका मकान नीलाम। आ गया बंदा सड़क पर। क्योंकि ये किसान नहीं थे। ये बड़े लोग नहीं थे। देश मेँ हर प्रकार की छूट किसान को। हर प्रकार का टैक्स कारोबारी पर । व्यापारियों से टैक्स लेना, चंदा लेना और फिर इसी तबके को बात बात पर चोर कहना। इससे अधिक अपमान किसी तबके का इस देश मेँ क्या होगा! जो सरकार, अफसरों और नेताओं का पेट भर रहा है वह तो चोर और जिनको सरकार हर प्रकार की सुविधा दे रही है, वे बेचारे। कभी इन का रहन सहन भी देख ले सरकार।
बड़े बड़े नेता बेचारे हो जाते हैं, क्योंकि ये किसान कहलाते हैं और गली मोहल्ले मेँ छोटे छोटे दुकानदार, जो जीएसटी की परिभाषा पूछते घूम रहे हैं वकीलों के पास, वे धनवान है। जो किसान ईमानदारी से लिया कर्ज वापिस कर देते हैं, उन पर क्या गुजरती है, कर्ज माफी से। वे मूर्ख कहलाते हैं। इस कर्ज माफी से सरकारों पर कितना बोझ पड़ता है, इसका आंकलन करने की योग्यता इन शब्दों मेँ तो है नहीं। सरकार कोई खेती थोड़ी ना करती है जो बोझ को वहन कर लेगी। वह जनता पर टैक्स लगाएगी। कोई नई तरकीब निकालेगी।
कमजोर का कल्याण सरकार की प्राथमिकता हो, परंतु उसे केवल इसलिए पोषित किया जाए कि वह किसान है, ये गलत है। जो मदद का हकदार है, मदद उसकी होनी चाहिए। ताकि किसी दूसरे का मन ना दुखे। उसे ऐसा ना लगे कि उसके अपने ही देश मेँ उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इस देश मेँ तो यही हो रहा है। दो लाइन पढ़ो-
परिंदे ने तूफान से पूछा है
मेरा आशियाना क्यों टूटा है।
लेखक गोविंद गोयल Govind Goyal राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.