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पत्रकारों पर लगाम लगाने का एक और असफल प्रयास, मति मारी गई राजस्थान सरकार की!

राज की मंशा में खोट… दोस्तों, नमस्कार, लगता है अब राजस्थान सरकार की भी मति मारी गई है। उसके मंत्रियों का भी दिमाग खराब हो गया है।तभी तो पत्रकारों की लेखनी पर लगाम लगाने और भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने का असफल प्रयास किया जा रहा है। इससे लगता है कि राज की मंशा में खोट है। लेकिन यह सब सरकार का वहम है कि कथित कानून बना कर पत्रकारों को डरा दिया जाए।

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राज की मंशा में खोट… दोस्तों, नमस्कार, लगता है अब राजस्थान सरकार की भी मति मारी गई है। उसके मंत्रियों का भी दिमाग खराब हो गया है।तभी तो पत्रकारों की लेखनी पर लगाम लगाने और भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने का असफल प्रयास किया जा रहा है। इससे लगता है कि राज की मंशा में खोट है। लेकिन यह सब सरकार का वहम है कि कथित कानून बना कर पत्रकारों को डरा दिया जाए।

शायद कानून का प्रारूप तैयार करने वाले अफसरों और उसे पारित करने जा रहे विधायकों को यह कतई आभास नही है कि अभी भी बेधड़क प्रहार करने वाले पत्रकारों की कमी नहीं है। वे अपनी बात को सोशल मीडिया के जरिये भी आम अवाम तक पहुंचाने में कोई चूक नही करेंगे, चाहे नतीजा कुछ भी हो। पत्रकार भ्र्ष्टाचार के खिलाफ पहले भी लिखते थे, आज भी लिख रहे है और आगे भी लिखते रहेंगे। दो साल की सजा के डर से कोई डरने वाला नहीं है। मैं यह इसलिये लिख रहा हूँ कि मुझे जानकारी मिली है कि राजस्थान सरकार ने 7 सितम्बर 2017 को अध्यादेश जारी कर 156(3)CrPC में संशोधन किया है।

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इसके तहत किसी भी जज, मजिस्ट्रेट व लोकसेवक के विरुद्ध उसके पदीय कार्य के दौरान हुए अपराध के लिए बिना सरकार की स्वीकृति के कोई भी मजिस्ट्रेट मुकदमा दर्ज करने का आदेश नही दे पाएगा। 6 माह बाद में स्वीकृति नही मिलने पर भी अभियोग दर्ज हो सकेगा। इस दौरान मीडिया में सम्बंधित आरोपी की पहचान का फोटो, नाम व रिश्तेदार का नाम उजागर नहीं किया जायेगा।

इसका उल्लंघन करने वाले के विरुद्ध 228 (ब) IPC के तहत कानूनी कार्यवाही की जावेगी। जिसमे 2 वर्ष सजा का प्रावधान रखा गया है। इस कानून से सरकार ने भ्रष्ट लोगो को कानूनी रक्षा कवच पहनाने का प्रयास कर रही है। राजस्थान सरकार इस तरह के काले कानून को पारित कराने से पहले एक बार फिर सोचे। पत्रकारों की आजादी पर अंकुश लगाना, बर्दाश्त नही किया जाएगा।

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एल एल शर्मा
अध्यक्ष
पिंकसिटी प्रेस क्लब
जयपुर


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