सेवा में,
श्रीमान् शिव प्रसाद सेमवाल
संचालक महोदय,
पर्वत जन
मासिक पत्रिका,
देहरादून।
विषय- पत्रकारिता बनाम धंधेबाजी की आपकी शातिर चाल के चक्रव्यूह में मेरा पिस जाना
महोदय,
मैं विगत दस वर्षों से आपके साथ काम करता आ रहा था, परंतु आपने मुझे अपनी पत्रिका से बाहर निकालने में एक पल का भी समय नहीं लगाया। मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि मैंने आप पर अपनी उस खबर को प्रकाशित करने का दबाव बनाया जो मैं आपको जुलाई में ही दे चुका था। यदि आप इस खबर को उसी समय छाप देते तो आज राज्य को ऐसा मुख्य सचिव नहीं मिलता जो प्रमुख सचिव के पद का दुरुपयोग कर एक भ्रष्ट अधिकारी को बचाने के लिए बिन सर-पैर वाली रिपोर्ट बना रहा है। जबकि उसके समकक्ष अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में उसी डीएफओ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उनकी रिपोर्ट को कोई भी पढ़कर ये अनुमान लगा लेगा कि ये आरोपी को बचाने मात्र के लिए बनाई गई रिपोर्ट है। उस रिपोर्ट से ये बात भी साफ होती है कि उसे बनाने में मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी हाथ है। तभी हरीश रावत द्वारा राज्य के मुख्य सचिव का पद इन महाशय को दिया गया, जो मुख्यमंत्री के कहने पर आरोपी को अपनी जांच रिपोर्ट से साफ बचा रहा है।
सही मायने में कहा जाए तो मुझे बेखौफ पत्रकारिता आप ही ने सिखाई। परंतु खबर को रोक कर अपने हित को साधना तो आपने नहीं सिखाया था। आप विज्ञापन लेने के मामले में ये भी बताते थे कि सामने वाले को कहो कि हमारी तलवार म्यान में ही रहने दो वरना यदि ये निकल गई तो आपको नुकसान होगा। कहीं इससे आपका ये मतलब तो नहीं था कि खबर के बदले विज्ञापन पर ही ध्यान दो। जब हमें विज्ञापन को ही प्राथमिकता देनी थी तो आपको ये पहले ही सिखा देना चहिए था। पर ये सिखाने के बदले आप मुझे भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने के लिए ही प्रेरित करते रहे और मैं आपकी इस प्रेरणा को सच समझते हुए मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखता रहा। आपने एक बार भी ये नहीं कहा कि चुनाव के समय उस सरकार के खिलाफ खबर मत करो जो मोटे विज्ञापन दे रही हो।
वैसे आपने मुझे पैसों के प्रति अपने प्रेम को पहले भी उस खबर को प्रकाशित करने पर इंगित करवा दिया था जब मैंने 2010 में कबीना मंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी के सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर खबर छापी थी। उसके बाद आपने दूसरे पत्रकार को लगाकर उस कब्जाधारी मंत्री से लाखों रुपए के विज्ञापन इकट्ठे करवाए थे। पर तब मैंने सोचा कि पत्रिका की आय के लिए विज्ञापन भी जरुरी होते हैं। पर आपने तब मुझपर उस एफ आई आर की कॉपी लाने का बहुत दबाव बनाया जब मैंने एक इंटरव्यू पर भंडारी के महाविद्यालय से कुर्सी चोरने वाली बात छापी थी। जबकि ये बात गोपेश्वर महाविद्यालय में आम बात थी। मेरी समझ में बाद में आया कि आपका वो दबाव मुझे आगे से मंत्री के खिलाफ खबर न करने के लिए था।
आपके मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रति प्रेम पर मुझे तब शक हो गया था जब मैंने ‘ये हरीश चंद्र तो झूठा है’ की खबर भेजी थी पर आपने इसका टाइटल बदलकर ‘सीएम का अवैध शपथ पत्र’ कर दिया। और आपने इस खबर को कमजोर करने के लिए अपनी तरफ से एक बयान लगाकर खबर को बेअसर कर दिया। आपकी विगत एक साल से छपने वाले अंकों में भी आप दूसरी पार्टी पर जितने ज्यादा हमलावर रहे उतना ही बचाव आपने सरकार के खिलाफ खबरों पर मुख्यमंत्री का किया। आप यदि मुझे बता देते कि अब हम मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं छापेंगे और कोई मजबूर भी न करे तो शायद हम इस पत्रिका के हित में कोई फैसला मान लेते। पर अंदरखाने मुख्यमंत्री की पैरवी करना और खबर को रोककर ये बरगलाना कि मैं दूसरी सूचनाएं या फोटो इकट्ठी कर रहा हूं और जैसे ही वो मिल जाएगी खबर लग जाएगी। पर आपकी मंशा थी कि इस खबर को चुनाव के समय न लगाकर इसको बेअसर किया जाए।
महोदय आपकी ये अंदरखाने वाली डीलिंग मुझे काफी देर में समझ आई जबकि आपको छोड़ चुके पुराने साथियों ने मुझे ये पहले भी आगाह किया था। परंतु मेरी आपके प्रति अगाध श्रद्धा ने मुझे अंधा बना दिया था। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आप ज्ञानी हैं परंतु आपका ज्ञान तब बेमतलब हो जाता है जब आप इसे सिर्फ अपने स्वहित के लिए प्रयोग करते हैं। राज्य हित की बात करके पत्रकारिता के नाम पर आरोपी के खिलाफ लिखकर हम तबतक सिर्फ अपनी भडास निकालते हैं जबतक हम खुद इमानदारी की कसौटी पर सही नहीं है।
धन्यवाद
भवदीय
योगेश डिमरी,
पूर्व ब्यूरो गढ़वाल,
पर्वत जन मासिक पत्रिका,
940, आवास विकास कॉलोनी,
ऋषिकेश, देहरादून, उत्तराखंड।
9997276070, 9411351082.
दिनांक- 30.12.2016
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Atul Thapliyal
February 9, 2017 at 7:37 am
ईन सब चोरो कि वजह से ही उत्तराखंड का विकास नही हो रहा है , बस अपना और अपने परिवार का कर रहे है ये विकास । लानत है ऐसे मंत्रीयो और न्यूज एजेंसियों पर लानत है ।